वृद्धिरादैच् ॥ १,१.१ ॥ अदेङ्गुणः ॥ १,१.२ ॥ इको गुणवृद्धी ॥ १,१.३ ॥ न धातुलोप आर्धधातुके ॥ १,१.४ ॥ क्ङिति च ॥ १,१.५ ॥ दीधीवेवीटाम् ॥ १,१.६ ॥ हलोऽनन्तराः संयोगः ॥ १,१.७ ॥ मुखनासिकावचनोऽनुनासिकः ॥ १,१.८ ॥ तुल्यास्यप्रयर्नं सवर्णम् ॥ १,१.९ ॥ नाज्झलौ ॥ १,१.१० ॥ ईदूदेद्द्विवचनं प्रगृह्यम् ॥ १,१.११ ॥ अदसो मात् ॥ १,१.१२ ॥ शे ॥ १,१.१३ ॥ निपात एकाजनाङ् ॥ १,१.१४ ॥ ओत् ॥ १,१.१५ ॥ सम्बुद्धौ शाकल्यस्येतावनार्षे ॥ १,१.१६ ॥ उञः ॥ १,१.१७ ॥ ऊं ॥ १,१.१८ ॥ ईदूतौ च सप्तम्यर्थे ॥ १,१.१९ ॥ दाधा घ्वदाप् ॥ १,१.२० ॥ आद्यन्तवदेकस्मिन् ॥ १,१.२१ ॥ तरप्तमपौ घः ॥ १,१.२२ ॥ बहुगणवतुडति सङ्ख्या ॥ १,१.२३ ॥ ष्णान्ता षट् ॥ १,१.२४ ॥ डति च ॥ १,१.२५ ॥ क्तक्तवतू निष्ठा ॥ १,१.२६ ॥ सर्वादीनि सर्वनामानि ॥ १,१.२७ ॥ विभाषा दिक्षमासे बहुव्रीहौ ॥ १,१.२८ ॥ न बहुव्रीहौ ॥ १,१.२९ ॥ तृतीयासमासे ॥ १,१.३० ॥ द्वन्द्वे च ॥ १,१.३१ ॥ विभाषा जसि ॥ १,१.३२ ॥ प्रथमचरमतयाल्पार्धकतिपयनेमाश्च ॥ १,१.३३ ॥ पूर्वपरावरदक्षिणोत्तरापराधराणि व्यवस्थायामसञ्ज्ञायाम् ॥ १,१.३४ ॥ स्वमज्ञातिधनाख्यायाम् ॥ १,१.३५ ॥ अन्तरं बहिर्योगोपसंव्यानयोः ॥ १,१.३६ ॥ स्वरादिनिपातमव्ययम् ॥ १,१.३७ ॥ तद्धितश्चासर्वविभक्तिः ॥ १,१.३८ ॥ कृन्मेजन्तः ॥ १,१.३९ ॥ क्त्वातोसुन्कसुनः ॥ १,१.४० ॥ अव्ययीभावश्च ॥ १,१.४१ ॥ शि सर्वनामस्थानम् ॥ १,१.४२ ॥ सुडनपुंसकस्य ॥ १,१.४३ ॥ न वेति विभाषा ॥ १,१.४४ ॥ इग्यणः सम्प्रसारणम् ॥ १,१.४५ ॥ गाङ्कुटादिभ्योऽञ्णिन्ङित् ॥ १,२.१ ॥ विज इट् ॥ १,२.२ ॥ विभाषोर्णोः ॥ १,२.३ ॥ सार्वधातुकमपित् ॥ १,२.४ ॥ असंयोगाल्लिट्कित् ॥ १,२.५ ॥ इन्धिभवतिभ्यां च ॥ १,२.६ ॥ मृडमृदगुधकुषक्लिशवदवसः क्त्वा ॥ १,२.७ ॥ रुदविदमुषग्रहिस्वपिप्रच्छः संश्च ॥ १,२.८ ॥ इको झल् ॥ १,२.९ ॥ हलन्ताच्च ॥ १,२.१० ॥ लिङ्सिचौ आत्मनेपदेषु ॥ १,२.११ ॥ उश्च ॥ १,२.१२ ॥ वा गमः ॥ १,२.१३ ॥ हनः सिच् ॥ १,२.१४ ॥ यमो गन्धने ॥ १,२.१५ ॥ विभाषोपयमने ॥ १,२.१६ ॥ स्थाघ्वोरिच्च ॥ १,२.१७ ॥ न क्त्वा सेट् ॥ १,२.१८ ॥ निष्ठा शीङ्स्विदिमिदिक्ष्विदिधृषः ॥ १,२.१९ ॥ मृषस्तितिक्षायाम् ॥ १,२.२० ॥ उदुपधाद्भावादिकर्मणोरन्यतरस्याम् ॥ १,२.२१ ॥ पूङः क्त्वा च ॥ १,२.२२ ॥ नोपधात्थफान्ताद्वा ॥ १,२.२३ ॥ वञ्चिलुञ्च्यृतश्च ॥ १,२.२४ ॥ तृषिमृषिकृशेः काश्यपस्य ॥ १,२.२५ ॥ रलो व्युपधद्धलादेः संश्च ॥ १,२.२६ ॥ ऊकालोऽज्झ्रस्वदीर्घप्लुतः ॥ १,२.२७ ॥ अचश्च ॥ १,२.२८ ॥ उच्चैरुदात्तः ॥ १,२.२९ ॥ नीचैरनुदात्तः ॥ १,२.३० ॥ समाहारः स्वरितः ॥ १,२.३१ ॥ तस्यादित उदात्तमर्धह्रस्वम् ॥ १,२.३२ ॥ एकश्रुति दूरात्सम्बुद्धौ ॥ १,२.३३ ॥ यज्ञकर्मण्यजपन्यूङ्खसामसु ॥ १,२.३४ ॥ उच्चैस्तरां वा वषट्कारः ॥ १,२.३५ ॥ विभाषा छन्दसि ॥ १,२.३६ ॥ न सुब्रह्मण्यायां स्वरितस्य तु उदात्तः ॥ १,२.३७ ॥ देवब्रह्मणोरनुदात्तः ॥ १,२.३८ ॥ स्वरितात्संहितायामनुदात्तानाम् ॥ १,२.३९ ॥ उदात्तस्वरितपरस्य सन्नतरः ॥ १,२.४० ॥ अपृक्त एकाल्प्रत्ययः ॥ १,२.४१ ॥ तत्पुरुषः समानाधिकरणः कर्मधारयः ॥ १,२.४२ ॥ प्रथमानिर्दिष्टं समास उपसर्जनम् ॥ १,२.४३ ॥ एकविभाक्ति चापूर्वनिपाते ॥ १,२.४४ ॥ अर्थवदधातुरप्रत्ययः प्रातिपदिकम् ॥ १,२.४५ ॥ कृत्तद्धितसमासाश्च ॥ १,२.४६ ॥ ह्रस्वो नपुंसके प्रातिपदिकस्य ॥ १,२.४७ ॥ गोस्त्रियोरुपसर्जनस्य ॥ १,२.४८ ॥ लुक्तद्धितलुकि ॥ १,२.४९ ॥ इद्गोण्याः ॥ १,२.५० ॥ लुपि युक्तवद्व्यक्तिवचने ॥ १,२.५१ ॥ विशेषणानां चाजातेः ॥ १,२.५२ ॥ तदशिष्यं सञ्ज्ञाप्रमाणत्वात् ॥ १,२.५३ ॥ लुब्योगाप्रख्यानात् ॥ १,२.५४ ॥ योगप्रमाणे च तदभावेऽदर्शनं स्यात् ॥ १,२.५५ ॥ प्रधानप्रत्ययार्थवचनमर्थस्यान्यप्रमाणात्वात् ॥ १,२.५६ ॥ कालोपसर्जने च तुल्यम् ॥ १,२.५७ ॥ जात्याख्यायमेकस्मिन् बहुवचनमन्यतरस्याम् ॥ १,२.५८ ॥ अस्मदो द्वयोश्च ॥ १,२.५९ ॥ फल्गुनीप्रोष्ठपदानां च नक्षत्रे ॥ १,२.६० ॥ छन्दसि पुनर्वस्वोरेकवचनम् ॥ १,२.६१ ॥ विशाखयोश्च ॥ १,२.६२ ॥ तिष्यपुनर्वस्वोर्नक्षत्रद्वन्द्वे बहुवचनस्य द्विवचनं नित्यम् ॥ १,२.६३ ॥ ससूपाणामेकशेष एकविभक्तौ ॥ १,२.६४ ॥ वृद्धो यूना तल्लक्षणश्चेदेव विशेषः ॥ १,२.६५ ॥ स्त्री पुंवच्च ॥ १,२.६६ ॥ पुमान् स्त्रिया ॥ १,२.६७ ॥ भ्रातृपुत्रौ स्वसृदुहितृभ्याम् ॥ १,२.६८ ॥ नपुंसकमनपुंसकेनैकवच्चास्यान्यतरस्याम् ॥ १,२.६९ ॥ पिता मात्रा ॥ १,२.७० ॥ श्वशुरः श्वस्रवा ॥ १,२.७१ ॥ त्यदादीनि सर्वैर्नित्यम् ॥ १,२.७२ ॥ ग्राम्यपशुसङ्घेष्वतरुणेशु स्त्री ॥ १,२.७३ ॥ भूवादयो धातवः ॥ १,३.१ ॥ उपदेशेऽजनुनासिक इत् ॥ १,३.२ ॥ हलन्त्यम् ॥ १,३.३ ॥ न विभक्तौ तुस्माः ॥ १,३.४ ॥ आदिर्ञिटुडवः ॥ १,३.५ ॥ षः प्रत्ययसय ॥ १,३.६ ॥ दुटू ॥ १,३.७ ॥ लशक्वतद्धिते ॥ १,३.८ ॥ तस्य लोपः ॥ १,३.९ ॥ यथासङ्ख्यमनुदेशः समानाम् ॥ १,३.१० ॥ स्वरितेनाधिकारः ॥ १,३.११ ॥ अनुदात्तङित आत्मनेपदम् ॥ १,३.१२ ॥ भावकर्मणोः ॥ १,३.१३ ॥ कर्तरि कर्मव्यतिहारे ॥ १,३.१४ ॥ न गतिहिंसार्थेभ्यः ॥ १,३.१५ ॥ इतरेतरान्योन्योपपदाच्च ॥ १,३.१६ ॥ नेर्विशः ॥ १,३.१७ ॥ परिव्यवेभ्यः क्रियः ॥ १,३.१८ ॥ विपराभ्यां जेः ॥ १,३.१९ ॥ अङो दोऽनास्यविहरणे ॥ १,३.२० ॥ क्रीडोऽनुसंपरिभ्यश्च ॥ १,३.२१ ॥ समवप्रविभ्यः स्थः ॥ १,३.२२ ॥ प्रकाशनस्थेयाख्यहोश्च ॥ १,३.२३ ॥ उदोऽनूर्ध्वकर्मणि ॥ १,३.२४ ॥ उपान्मन्त्रकरणे ॥ १,३.२५ ॥ अकर्मकाच्च ॥ १,३.२६ ॥ उद्विभ्यां तपः ॥ १,३.२७ ॥ आङो यमहनः ॥ १,३.२८ ॥ समो गम्यृच्छिप्रच्छिस्वरत्यर्तिश्रुविदिघ्यः ॥ १,३.२९ ॥ निसमुपविभ्यो ह्वः ॥ १,३.३० ॥ स्पर्धायामाङः ॥ १,३.३१ ॥ गन्धनावक्षेपणसेवनसाहसिक्यप्रतिथत्नप्रकथनोपयोगेषु कृञः ॥ १,३.३२ ॥ अधेः प्रसहने ॥ १,३.३३ ॥ वेः शब्दकर्मणः ॥ १,३.३४ ॥ अकर्मकाच्च ॥ १,३.३५ ॥ सम्माननोत्सञ्जनाचार्यकरणज्ञानभृतिविगणनव्ययेषु नियः ॥ १,३.३६ ॥ कर्तृस्थे च शरीरे कर्मणि ॥ १,३.३७ ॥ वृत्तिसर्गतायनेषु क्रमः ॥ १,३.३८ ॥ उपपराभ्याम् ॥ १,३.३९ ॥ आङ उद्गमने ॥ १,३.४० ॥ वेः पादविहरणे ॥ १,३.४१ ॥ प्रोपाभ्यां समर्थाभ्याम् ॥ १,३.४२ ॥ अनुपसर्गाद्वा ॥ १,३.४३ ॥ अपह्नवे ज्ञः ॥ १,३.४४ ॥ अकर्मकाच्च ॥ १,३.४५ ॥ संप्रतिभ्यामनाध्याने ॥ १,३.४६ ॥ भासनोपसम्भाषाज्ञानयत्नविमत्युपमन्त्रणेषु वदः ॥ १,३.४७ ॥ व्यक्तवाचां समुच्चारणे ॥ १,३.४८ ॥ अनोरकर्मकात् ॥ १,३.४९ ॥ विभाषा विप्रलापे ॥ १,३.५० ॥ अवाद्ग्रः ॥ १,३.५१ ॥ समः प्रतिज्ञाने ॥ १,३.५२ ॥ उदश्चरः सकर्मकात् ॥ १,३.५३ ॥ संस्तृतीयायुक्तात् ॥ १,३.५४ ॥ दाणश्च सा चेच्चतुर्थ्यर्थे ॥ १,३.५५ ॥ उपाद्यमः स्वकरने ॥ १,३.५६ ॥ ज्ञाश्रुस्मृदृशां सनः ॥ १,३.५७ ॥ नानोर्ज्ञः ॥ १,३.५८ ॥ प्रत्याङ्भ्यां श्रुवः ॥ १,३.५९ ॥ शदेः शितः ॥ १,३.६० ॥ म्रियतेर्लुङ्लिङोश्च ॥ १,३.६१ ॥ पूर्ववत्सनः ॥ १,३.६२ ॥ आम्प्रत्ययवत्कृञोऽनुप्रयोगस्य ॥ १,३.६३ ॥ प्रोपाभ्यां युजेरयज्ञपात्रेषु ॥ १,३.६४ ॥ समः क्ष्णुवः ॥ १,३.६५ ॥ भुजोऽनवने ॥ १,३.६६ ॥ णे रणौ यत्कर्म णौ चेत्स कर्ताऽनाध्याने ॥ १,३.६७ ॥ भीस्म्योर्हेतुभये ॥ १,३.६८ ॥ गृधिवञ्च्योः प्रलम्भने ॥ १,३.६९ ॥ लियः संमाननशालीनीकरणयोश्च ॥ १,३.७० ॥ मिथ्योपपदात्कृञोऽभ्यासे ॥ १,३.७१ ॥ स्वरितञितः कर्त्रभिप्राये क्रियाफले ॥ १,३.७२ ॥ अपाद्वदः ॥ १,३.७३ ॥ णिचश्च ॥ १,३.७४ ॥ समुदाङ्भ्यो यमोऽग्रन्थे ॥ १,३.७५ ॥ अनुपसर्गाज्ज्ञः ॥ १,३.७६ ॥ विभाषोपपदेन प्रतीयमाने ॥ १,३.७७ ॥ शेषात्कर्तरि परस्मैपदम् ॥ १,३.७८ ॥ अनुपराभ्यां कृञः ॥ १,३.७९ ॥ अभिप्रत्यतिभ्यः क्षिपः ॥ १,३.८० ॥ प्राद्वहः ॥ १,३.८१ ॥ परेर्मृषः ॥ १,३.८२ ॥ व्याङ्परिभ्यो रमः ॥ १,३.८३ ॥ उपाच्च ॥ १,३.८४ ॥ विभाशाऽकर्मकात् ॥ १,३.८५ ॥ बुधयुधनशजनेङ्प्रुद्रुस्रुभ्यो णेः ॥ १,३.८६ ॥ निगरणचलनार्थेभ्यश्च ॥ १,३.८७ ॥ अणावकर्मकाच्चित्तवत्कर्तृकात् ॥ १,३.८८ ॥ न पादम्याङ्यमाङ्यसपरिमुहरुचिनृतिवदवसः ॥ १,३.८९ ॥ वा क्यषः ॥ १,३.९० ॥ ध्य्द्भ्यो लुङि ॥ १,३.९१ ॥ वृद्भ्यः स्यसनोः ॥ १,३.९२ ॥ लुटि च क्लुपः ॥ १,३.९३ ॥ आ कडारादेका सञ्ज्ञा ॥ १,४.१ ॥ विप्रतिषेधे परं कार्यम् ॥ १,४.२ ॥ यू स्त्र्याख्यौ नदी ॥ १,४.३ ॥ नेयङुवङ्स्थानावस्त्री ॥ १,४.४ ॥ व+आमि ॥ १,४.५ ॥ ङिति ह्रस्वश्च ॥ १,४.६ ॥ शेषो घ्यसखि ॥ १,४.७ ॥ पतिः समास एव ॥ १,४.८ ॥ षष्ठीयुक्तश्छन्दसि वा ॥ १,४.९ ॥ ह्रस्वं लघु ॥ १,४.१० ॥ संयोगे गुरु ॥ १,४.११ ॥ दीर्घं च ॥ १,४.१२ ॥ यस्मात्प्रत्ययविधिस्तदादि प्रत्ययेऽङ्गम् ॥ १,४.१३ ॥ सुप्तिङन्तं पदम् ॥ १,४.१४ ॥ नः क्ये ॥ १,४.१५ ॥ सिति च ॥ १,४.१६ ॥ स्वादिष्वसर्वनमस्थाने ॥ १,४.१७ ॥ यचि भम् ॥ १,४.१८ ॥ तसौ मत्वर्थे ॥ १,४.१९ ॥ अयस्मयादीनि छन्दसि ॥ १,४.२० ॥ बहुषु बहुवचनम् ॥ १,४.२१ ॥ द्व्येकयोर्द्विबचनैकवचने ॥ १,४.२२ ॥ कारके ॥ १,४.२३ ॥ ध्रुवमपायेऽपादानम् ॥ १,४.२४ ॥ भीत्रार्थानां भयहेतुः ॥ १,४.२५ ॥ पराजेरसोढः ॥ १,४.२६ ॥ वारणार्थानामीप्सितः ॥ १,४.२७ ॥ अन्तर्धौ येनादर्शनमिच्छति ॥ १,४.२८ ॥ आख्यातोपयोगे ॥ १,४.२९ ॥ जनिकर्तुः प्रकृतिः ॥ १,४.३० ॥ भुवः प्रभवः ॥ १,४.३१ ॥ कर्मणा यमभिप्रैति स सम्प्रदानम् ॥ १,४.३२ ॥ रुच्यर्थानां प्रीयमाणः ॥ १,४.३३ ॥ श्लाघह्नुङ्स्थाशपां ज्ञीप्स्यमानः ॥ १,४.३४ ॥ धारेरुत्तमर्णः ॥ १,४.३५ ॥ स्पृहेरीप्सितः ॥ १,४.३६ ॥ क्रुधद्रुहेर्ष्यासूयार्थानां यं प्रति कोपः ॥ १,४.३७ ॥ क्रुधद्रुहोरुपसृष्ठयोः कर्म ॥ १,४.३८ ॥ राद्ःीक्ष्योर्यस्य विप्रश्नः ॥ १,४.३९ ॥ प्रत्याङ्भ्यां श्रुवः पूर्वस्य कर्ता ॥ १,४.४० ॥ अनुप्रतिगृणश्च ॥ १,४.४१ ॥ साधकतमं करणम् ॥ १,४.४२ ॥ दिवः कर्म च ॥ १,४.४३ ॥ परिक्रयणे सम्प्रदानमन्यतरस्याम् ॥ १,४.४४ ॥ आधारोऽधिकरणम् ॥ १,४.४५ ॥ अधिशीङ्स्थासां कर्म ॥ १,४.४६ ॥ अभिनिविशश्च ॥ १,४.४७ ॥ उपान्वध्याङ्वसः ॥ १,४.४८ ॥ कर्त्रुरीप्सिततमं कर्म ॥ १,४.४९ ॥ तथायुक्तं चानीप्सितम् ॥ १,४.५० ॥ अकथितं च ॥ १,४.५१ ॥ गुतिबुद्धिप्रत्यवसानार्थशब्दकर्माकर्मकाणामणि कर्ता स णौ ॥ १,४.५२ ॥ हृक्रोरन्यतरस्याम् ॥ १,४.५३ ॥ स्वतन्त्रः कर्ता ॥ १,४.५४ ॥ तत्प्रयोजको हेतुश्च ॥ १,४.५५ ॥ प्राग्रीश्वरान्निपाताः ॥ १,४.५६ ॥ चादयोऽसत्त्वे ॥ १,४.५७ ॥ प्रादयः ॥ १,४.५८ ॥ उपसर्गाः क्रियायोगे ॥ १,४.५९ ॥ गतिश्च ॥ १,४.६० ॥ ऊर्यादिच्विडाचश्च ॥ १,४.६१ ॥ अनुकरणं चानितिपरम् ॥ १,४.६२ ॥ आदरानादरयोः सदसती ॥ १,४.६३ ॥ भूषनेऽलम् ॥ १,४.६४ ॥ अन्तरपरिग्रहे ॥ १,४.६५ ॥ कणेमनसी श्रद्धाप्रतीघाते ॥ १,४.६६ ॥ पुरोऽव्ययम् ॥ १,४.६७ ॥ अस्तं च ॥ १,४.६८ ॥ अच्छ गत्यर्थवदेषु ॥ १,४.६९ ॥ अदोऽनुपदेशे ॥ १,४.७० ॥ तरोऽन्तर्धौ ॥ १,४.७१ ॥ विभाषा कृञि ॥ १,४.७२ ॥ उपाजेऽन्वाजे ॥ १,४.७३ ॥ साक्षात्प्रभृतीनि च ॥ १,४.७४ ॥ अनत्याधान उरसिमनसी ॥ १,४.७५ ॥ मध्ये पदे निवचने च ॥ १,४.७६ ॥ नित्यं हस्ते पानावुपयमने ॥ १,४.७७ ॥ प्राध्वं वन्धने ॥ १,४.७८ ॥ जीविकोपनिषदावौपम्ये ॥ १,४.७९ ॥ ते प्राग्धातोः ॥ १,४.८० ॥ छन्दसि परेऽपि ॥ १,४.८१ ॥ व्यवहिताश्च ॥ १,४.८२ ॥ कर्मप्रवचनीयाः ॥ १,४.८३ ॥ अनुर्लक्षणे ॥ १,४.८४ ॥ तृतीयार्थे ॥ १,४.८५ ॥ हीने ॥ १,४.८६ ॥ उपोऽधिके च ॥ १,४.८७ ॥ अपपरी वर्जने ॥ १,४.८८ ॥ आङ्मर्यादावचने ॥ १,४.८९ ॥ लक्षनेत्थंभूताख्यानभागवीप्सासु प्रतिपर्यनवः ॥ १,४.९० ॥ अभिरभागे ॥ १,४.९१ ॥ प्रतिः प्रतिनिधिप्रतिदानयोः ॥ १,४.९२ ॥ अधिपरी अनर्थकौ ॥ १,४.९३ ॥ सुः पूजायाम् ॥ १,४.९४ ॥ अतिरतिक्रमणे च ॥ १,४.९५ ॥ अपिः पदार्थसम्भावनान्ववसर्गगर्हासमुच्चयेषु ॥ १,४.९६ ॥ अधिरीश्वरे ॥ १,४.९७ ॥ विभाषा कृञि ॥ १,४.९८ ॥ लः परस्मैपदम् ॥ १,४.९९ ॥ तङानावात्मनेपदम् ॥ १,४.१०० ॥ तिङस्त्रीणि त्रीणि प्रथममध्यमोत्तमाः ॥ १,४.१०१ ॥ तान्येकवचनाद्विवचनबहुवचनान्येकशः ॥ १,४.१०२ ॥ सुपः ॥ १,४.१०३ ॥ विभक्तिश्च ॥ १,४.१०४ ॥ युष्मद्युपपदे समानाधिकरणे स्थानिन्यपि मध्यमः ॥ १,४.१०५ ॥ प्रहासे च मन्योपपदे मन्यतेरुत्तम एकवच्च ॥ १,४.१०६ ॥ अस्मद्युत्तमः ॥ १,४.१०७ ॥ शेषे प्रथमः ॥ १,४.१०८ ॥ परः संनिकर्षः संहिता ॥ १,४.१०९ ॥ विरामोऽवसानम् ॥ १,४.११० ॥ समर्थः पदविधिः ॥ २,१.१ ॥ सुबामन्त्रिते पराङ्गवत्स्वरे ॥ २,१.२ ॥ प्राक्कडारात्समासः ॥ २,१.३ ॥ सह सुपा ॥ २,१.४ ॥ अव्ययीभवः ॥ २,१.५ ॥ अव्ययं विभक्तिसमीपसमृद्धिव्यृद्ध्यर्थाभावात्ययासम्प्रतिशब्दप्रादुर्भावपश्चाद्यथानुपूर्व्ययौगपद्यसादृश्यसम्पत्तिसाकल्यान्तव्चनेषु ॥ २,१.६ ॥ यथाऽसादृश्ये ॥ २,१.७ ॥ यावदवधारणे ॥ २,१.८ ॥ सुप्प्रैत्ना मात्रार्थे ॥ २,१.९ ॥ अक्षशलाकासङ्ख्याः परिणा ॥ २,१.१० ॥ विभाषा ॥ २,१.११ ॥ अपपरिबहिरञ्चवः पञ्चम्या ॥ २,१.१२ ॥ आङ्मर्यादाभिविध्योः ॥ २,१.१३ ॥ लक्षणेनाभिप्रती आभिमुख्ये ॥ २,१.१४ ॥ अनुर्यत्समया ॥ २,१.१५ ॥ यस्य च आयामः ॥ २,१.१६ ॥ तिष्ठद्गुप्रभृतीनि च ॥ २,१.१७ ॥ पारे मध्ये षष्ठ्या वा ॥ २,१.१८ ॥ सङ्ख्या वंश्येन ॥ २,१.१९ ॥ नदीभिश्च ॥ २,१.२० ॥ अन्यपदर्थे च सञ्ज्ञायाम् ॥ २,१.२१ ॥ तत्पुरुषः ॥ २,१.२२ ॥ द्विगुश्च ॥ २,१.२३ ॥ द्विदीया श्रितातीतपतितगतात्यस्तप्राप्तापनैः ॥ २,१.२४ ॥ स्वयं क्तेन ॥ २,१.२५ ॥ खट्वा क्षेपे ॥ २,१.२६ ॥ सामि ॥ २,१.२७ ॥ कालाः ॥ २,१.२८ ॥ अत्यन्तसंयोगे च ॥ २,१.२९ ॥ तृतीया तत्कृतार्थेन गुणवचनेन ॥ २,१.३० ॥ पूर्वसदृशसमोनार्थकलहनिपुणमिश्रश्लक्ष्णैः ॥ २,१.३१ ॥ कर्तृकर्णे दृता बहुलम् ॥ २,१.३२ ॥ कृत्यैरधिकार्थवचने ॥ २,१.३३ ॥ अन्नेन व्यञ्जनम् ॥ २,१.३४ ॥ भक्ष्येण मिश्रीकरनम् ॥ २,१.३५ ॥ चतुर्थी तदर्थार्थबलिहितसुखरक्षितैः ॥ २,१.३६ ॥ पञ्चमी भयेन ॥ २,१.३७ ॥ अपेतापोढमुक्तपतितापत्रस्तैरल्पशः ॥ २,१.३८ ॥ स्तोकान्तिकदूरार्थकृच्छ्राणि क्तेन ॥ २,१.३९ ॥ सप्तमी शौण्डैः ॥ २,१.४० ॥ सिद्धशुष्कपक्वबन्धैश्च ॥ २,१.४१ ॥ ध्वाङ्क्षेन क्षेपे ॥ २,१.४२ ॥ क्र्त्यैरृणे ॥ २,१.४३ ॥ सञ्ज्ञायाम् ॥ २,१.४४ ॥ क्तेनाहोरात्रावयवाः ॥ २,१.४५ ॥ तत्र ॥ २,१.४६ ॥ क्षेपे ॥ २,१.४७ ॥ पात्रेसमितादयश्च ॥ २,१.४८ ॥ पूर्वकालैकसर्वजरत्पुराणानवकेवलाः समानाधिकरणेन ॥ २,१.४९ ॥ दिक्सङ्ख्ये सञ्ज्ञायाम् ॥ २,१.५० ॥ तद्धितर्थोत्तरपदसमाहारे च ॥ २,१.५१ ॥ सङ्ख्यापूर्वो द्विगुः ॥ २,१.५२ ॥ कुत्सितानि कुत्सनैः ॥ २,१.५३ ॥ पापाणके कुत्सितैः ॥ २,१.५४ ॥ उपमानानि सामान्यवचनैः ॥ २,१.५५ ॥ उपमितं व्याघ्रादिभिः सामान्याप्रयोगे ॥ २,१.५६ ॥ विशेसनं विशेष्येण बहुलम् ॥ २,१.५७ ॥ पूर्वापरप्रथमचरमजघन्यसमानमध्यमध्यमवीराश्च ॥ २,१.५८ ॥ श्रेण्यादयः कृतादिभिः ॥ २,१.५९ ॥ क्तेन नञ्विशिष्टेनानञ् ॥ २,१.६० ॥ सन्महत्परमोत्तमोत्कृष्टाः पूज्यमानैः ॥ २,१.६१ ॥ वृन्दरकनागकुञ्जरैः पूज्यमानम् ॥ २,१.६२ ॥ कतरकतमौ जातिपरिप्रश्ने ॥ २,१.६३ ॥ किं क्षेपे ॥ २,१.६४ ॥ पोटायुवतिस्तोककतिपयगृष्टिधेनुवशावेहद्बष्कयणीप्रवक्तृश्रोत्रियाध्यापकधूर्तैर्जातिः ॥ २,१.६५ ॥ प्रशंसावचनैश्च ॥ २,१.६६ ॥ युवा खलतिपालितवलिनजरतीभिः ॥ २,१.६७ ॥ कृत्यतुल्याख्या अजात्या ॥ २,१.६८ ॥ वर्णो वर्णेन ॥ २,१.६९ ॥ कुमारः श्रमणादिभिः ॥ २,१.७० ॥ चतुष्पादो गर्भिण्या ॥ २,१.७१ ॥ मयूरव्यंसकादयश्च ॥ २,१.७२ ॥ पूर्वापराधरोत्तरमेकदेशिनैकाधिकरणे ॥ २,२.१ ॥ अर्धं नपुंसकम् ॥ २,२.२ ॥ द्वितियतृतीयचतुर्थतुर्याण्यन्य्तरस्याम् ॥ २,२.३ ॥ प्राप्तापन्ने च द्वितीयया ॥ २,२.४ ॥ कालाः परिमाणिना ॥ २,२.५ ॥ नञ् ॥ २,२.६ ॥ ईषदकृता ॥ २,२.७ ॥ षष्ठी ॥ २,२.८ ॥ याजकादिभिश्च ॥ २,२.९ ॥ न निर्धारणे ॥ २,२.१० ॥ पूरणगुणसुहितार्थसदव्ययतव्यसमानाधिकरनेन ॥ २,२.११ ॥ क्तेन च पूजायाम् ॥ २,२.१२ ॥ अधिकरणवाचिना च ॥ २,२.१३ ॥ कर्मणि च ॥ २,२.१४ ॥ तृजकाभ्यां कर्तरि ॥ २,२.१५ ॥ कर्तरि च ॥ २,२.१६ ॥ नित्यं क्रीडाजीविकयोः ॥ २,२.१७ ॥ कुगतिप्रादयः ॥ २,२.१८ ॥ उपपदमतिङ् ॥ २,२.१९ ॥ अमैवाव्ययेन ॥ २,२.२० ॥ तृतीयाप्रभृतीन्यतरस्यम् ॥ २,२.२१ ॥ क्त्वा च ॥ २,२.२२ ॥ शेषो बहुव्रीहिः ॥ २,२.२३ ॥ अनेकमन्यपदार्थे ॥ २,२.२४ ॥ सङ्ख्ययाऽव्ययासन्नादूराधिकसङ्ख्याः सङ्ख्येये ॥ २,२.२५ ॥ दिङ्नामान्यन्तराले ॥ २,२.२६ ॥ तत्र तेन+इदमिति सरूपे ॥ २,२.२७ ॥ तेन सह+इति तुल्ययोगे ॥ २,२.२८ ॥ चार्थे द्वन्द्वः ॥ २,२.२९ ॥ उपसर्जनं पूर्वम् ॥ २,२.३० ॥ राजदन्तादिषु परम् ॥ २,२.३१ ॥ द्वन्द्वे घि ॥ २,२.३२ ॥ अजाद्यदन्तम् ॥ २,२.३३ ॥ अल्पाच्तरम् ॥ २,२.३४ ॥ सप्तमीविशेषने बहुव्रीहौ ॥ २,२.३५ ॥ निष्ठा ॥ २,२.३६ ॥ वा+आहिताग्न्यादिषु ॥ २,२.३७ ॥ कडाराः कर्मधारये ॥ २,२.३८ ॥ अनभिहिते ॥ २,३.१ ॥ कर्मणि द्वितीया ॥ २,३.२ ॥ तृतीया च होश्छन्दसि ॥ २,३.३ ॥ अन्तराऽन्तरेण युक्ते ॥ २,३.४ ॥ कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे ॥ २,३.५ ॥ अपवर्गे तृतीया ॥ २,३.६ ॥ सप्तमीपञ्चम्यौ कारकमध्ये ॥ २,३.७ ॥ कर्मप्रवचनीययुक्ते द्वितीया ॥ २,३.८ ॥ यस्मादधिकं यस्य च+ईश्वरवचनं तत्र सप्तमी ॥ २,३.९ ॥ पञ्चम्यपाङ्परिभिः ॥ २,३.१० ॥ प्रतिनिधिप्रतिदाने च यस्मात् ॥ २,३.११ ॥ गत्यर्थकर्मणि द्वितीयाचतुर्थ्यौ चेष्टायामनध्वनि ॥ २,३.१२ ॥ चतुर्थी सम्प्रदाने ॥ २,३.१३ ॥ क्रियार्थोपपदस्य च कर्मणि स्थानिनः ॥ २,३.१४ ॥ तुमर्थाच्च भाववचनात् ॥ २,३.१५ ॥ नमःस्वस्तिस्वाहास्वधाऽलंवषड्योगाच्च ॥ २,३.१६ ॥ मन्यकर्मण्यनादरे विभाषाऽप्राणिषु ॥ २,३.१७ ॥ कर्तृकरणयोस्तृतीया ॥ २,३.१८ ॥ सहयुक्तेऽप्रधाने ॥ २,३.१९ ॥ येनाङ्गविकारः ॥ २,३.२० ॥ इत्थम्भूतलक्षणे ॥ २,३.२१ ॥ सञ्ज्ञोऽन्यतरस्यां कर्मणि ॥ २,३.२२ ॥ हेतौ ॥ २,३.२३ ॥ अकर्तर्यृणे पञ्चमी ॥ २,३.२४ ॥ विभाषा गुणेऽस्त्रीयाम् ॥ २,३.२५ ॥ षष्ठी हेतुप्रयोगे ॥ २,३.२६ ॥ सर्वनाम्नस्तृतीया च ॥ २,३.२७ ॥ अपादाने पञ्चमी ॥ २,३.२८ ॥ अन्यारादितरर्तेदिक्शब्दाञ्चूत्तरपदाजाहियुक्ते ॥ २,३.२९ ॥ षष्ठ्यतसर्थप्रत्ययेन ॥ २,३.३० ॥ एनपा द्वितीया ॥ २,३.३१ ॥ पृथग्विनानानाभिस्तृतीयाऽन्यतरस्याम् ॥ २,३.३२ ॥ करेण च स्तोकाल्पकृच्छ्रकतिपयस्यासत्त्ववचनस्य ॥ २,३.३३ ॥ दूरान्तिकार्थैः षष्ठ्यन्यतरस्याम् ॥ २,३.३४ ॥ दूरान्तिकार्थेभ्यो द्वितीया च ॥ २,३.३५ ॥ सप्तम्यधिकरने च ॥ २,३.३६ ॥ यस्य च भावेन भावलक्षणम् ॥ २,३.३७ ॥ षष्ठी चानादरे ॥ २,३.३८ ॥ स्वामीश्वराधिपतिदायादसाक्षिप्रतिभूप्रसुतैश्च ॥ २,३.३९ ॥ आयुक्तकुशलाभ्यां च आसेवायाम् ॥ २,३.४० ॥ यतश्च निर्धारनम् ॥ २,३.४१ ॥ पञ्चमी विभक्ते ॥ २,३.४२ ॥ साधुनिपुणाभ्यामर्चायां सप्तम्यप्रतेः ॥ २,३.४३ ॥ प्रसितोत्सुकाभ्यां तृतीया च ॥ २,३.४४ ॥ नक्षत्रे च लुपि ॥ २,३.४५ ॥ प्रातिपदिकार्थलिङ्गपरिमाणवचनमात्रे प्रथमा ॥ २,३.४६ ॥ सम्बोधने च ॥ २,३.४७ ॥ सा+आमन्त्रितम् ॥ २,३.४८ ॥ एकवचनं सम्बुद्धिः ॥ २,३.४९ ॥ षष्ठी शेषे ॥ २,३.५० ॥ ज्ञोऽविदर्थस्य करणे ॥ २,३.५१ ॥ अधीगर्थदयेशां कर्मणि ॥ २,३.५२ ॥ कृञः प्रतियत्ने ॥ २,३.५३ ॥ रुजार्थानां भाववचनानामज्वरेः ॥ २,३.५४ ॥ आशिषि नाथः ॥ २,३.५५ ॥ जासिनिप्रहणनाटक्राथपिषां हिंसायाम् ॥ २,३.५६ ॥ व्यवहृपणोः समर्थयोः ॥ २,३.५७ ॥ दिवस्तदर्थस्य ॥ २,३.५८ ॥ विभाषोपसर्गे ॥ २,३.५९ ॥ द्वितीया ब्राह्मणे ॥ २,३.६० ॥ प्रेष्यब्रुवोर्हविषो देवतासम्प्रदाने ॥ २,३.६१ ॥ चतुर्थ्यर्थे बहुलं छन्दसि ॥ २,३.६२ ॥ यजेश्च करणे ॥ २,३.६३ ॥ कृत्वोऽर्थप्रयोगे कालेऽधिकरणे ॥ २,३.६४ ॥ कर्तृकर्मणोः कृति ॥ २,३.६५ ॥ उभयप्राप्तौ कर्मणि ॥ २,३.६६ ॥ क्तस्य च वर्तमाने ॥ २,३.६७ ॥ अधिकरणवाचिनश्च ॥ २,३.६८ ॥ न लोउकाव्ययनिष्ठाखलर्थतृनाम् ॥ २,३.६९ ॥ अकेनोर्भविष्यदाधमर्ण्ययोः ॥ २,३.७० ॥ कृत्यानां कर्तरि वा ॥ २,३.७१ ॥ तुल्यार्थैरतुलोपमाभ्यां तृतीयाऽन्यतरस्याम् ॥ २,३.७२ ॥ चतुर्थी च आशिष्यायुष्यमद्रभद्रकुशलसुखार्थहितैः ॥ २,३.७३ ॥ द्विगुरेकवचनम् ॥ २,४.१ ॥ द्वन्द्वश्च प्राणितूर्यसेनाङ्गानाम् ॥ २,४.२ ॥ अनुवादे चरणानाम् ॥ २,४.३ ॥ अध्वर्युक्रतुरनपुंसकम् ॥ २,४.४ ॥ अध्ययनतोऽविप्रकृष्टाख्यानाम् ॥ २,४.५ ॥ जातिरप्राणिनाम् ॥ २,४.६ ॥ विशिष्टलिङ्गो नदी देशोऽग्रामाः ॥ २,४.७ ॥ क्षुद्रजन्तवः ॥ २,४.८ ॥ येषां च विरोधः शाश्वतिकः ॥ २,४.९ ॥ शूद्राणामनिरवसितानाम् ॥ २,४.१० ॥ गवाश्वप्रभृतीनि च ॥ २,४.११ ॥ विभाषा वृक्षमृगतृणधान्यव्यञ्जनपशुशकुन्यश्ववडवपूर्वापराधरोत्तराणाम् ॥ २,४.१२ ॥ विप्रतिषिद्धं चानधिकरणवाचि ॥ २,४.१३ ॥ न दधिपयादीनि ॥ २,४.१४ ॥ अधिकरनैतावत्त्वे च ॥ २,४.१५ ॥ विभाषा समीपे ॥ २,४.१६ ॥ स नपुंसकम् ॥ २,४.१७ ॥ अव्ययीभावश्च ॥ २,४.१८ ॥ तत्पुरुषोऽनञ्कर्मधारयः ॥ २,४.१९ ॥ सञ्ज्ञायां कन्तोशीनरेषु ॥ २,४.२० ॥ उपज्ञोपक्रमं तदाद्याचिख्यासायाम् ॥ २,४.२१ ॥ छाया बाहुल्ये ॥ २,४.२२ ॥ सभा राजाऽमनुस्यपूर्वा ॥ २,४.२३ ॥ अशाला च ॥ २,४.२४ ॥ विभाषा सेनासुराच्छायाशालानिशानाम् ॥ २,४.२५ ॥ परवल्लिङ्गं द्वन्द्वतत्पुरुषयोः ॥ २,४.२६ ॥ पूर्ववदश्ववडवौ ॥ २,४.२७ ॥ हेमन्तशिशिरावहोरात्रे च छन्दसि ॥ २,४.२८ ॥ रात्राह्नाहाः पुंसि ॥ २,४.२९ ॥ अपथं नपुंसकम् ॥ २,४.३० ॥ अर्धर्चाः पुंसि च ॥ २,४.३१ ॥ इदमोऽन्वादेशेऽशनुदात्तस्तृतीयादौ ॥ २,४.३२ ॥ एतदस्त्रतसोस्त्रतसौ चानुदातौ ॥ २,४.३३ ॥ द्वितीयाटौस्स्वेनः ॥ २,४.३४ ॥ आर्धधातुके ॥ २,४.३५ ॥ अदो जग्धिर्ल्यप्ति किति ॥ २,४.३६ ॥ लुङ्सनोर्घसॢ ॥ २,४.३७ ॥ घञपोश्च ॥ २,४.३८ ॥ बहुलं छन्दसि ॥ २,४.३९ ॥ लिट्यन्तरस्याम् ॥ २,४.४० ॥ वेञो वयिः ॥ २,४.४१ ॥ हनो वध लिङि ॥ २,४.४२ ॥ लुङि च ॥ २,४.४३ ॥ आत्मनेपदेष्वन्यतरस्याम् ॥ २,४.४४ ॥ इणो गा लुङि ॥ २,४.४५ ॥ णौ गमिरबोधने ॥ २,४.४६ ॥ सनि च ॥ २,४.४७ ॥ इङश्च ॥ २,४.४८ ॥ गाङ्लिटि ॥ २,४.४९ ॥ विभाषा लुङॢङोः ॥ २,४.५० ॥ णौ च संश्चङोः ॥ २,४.५१ ॥ अस्तेर्भूः ॥ २,४.५२ ॥ ब्रुवो बचिः ॥ २,४.५३ ॥ चक्षिङः ख्याञ् ॥ २,४.५४ ॥ वा लिटि ॥ २,४.५५ ॥ अजेर्व्यघञपोः ॥ २,४.५६ ॥ वा यौ ॥ २,४.५७ ॥ ण्यक्षत्रियार्षञितो यूनि लुगणिञोः ॥ २,४.५८ ॥ पैलादिब्यश्च ॥ २,४.५९ ॥ इञः प्राचाम् ॥ २,४.६० ॥ न तौल्वलिभ्यः ॥ २,४.६१ ॥ तद्राजस्य बहुषु तेन+एवास्त्रियाम् ॥ २,४.६२ ॥ यस्कादिभ्यो गोत्रे ॥ २,४.६३ ॥ यञञोश्च ॥ २,४.६४ ॥ अत्रिभृगुकुत्सवसिष्ठगोतमाङ्गिरोभ्यश्च ॥ २,४.६५ ॥ बह्वचिञः प्राच्यभ्रतेषु ॥ २,४.६६ ॥ न गोपवनादिभ्यः ॥ २,४.६७ ॥ तिककितवादिभ्यो द्वन्द्वे ॥ २,४.६८ ॥ उपकादिभ्योऽन्यतरस्यामद्वन्द्वे ॥ २,४.६९ ॥ आगस्त्यकौण्डिन्ययोरगस्तिकुण्डिनच् ॥ २,४.७० ॥ सुपो धातुप्रातिपदिकयोः ॥ २,४.७१ ॥ अदिप्रभृतिभ्यः शपः ॥ २,४.७२ ॥ बहुलं छन्दसि ॥ २,४.७३ ॥ यङोऽचि च ॥ २,४.७४ ॥ जुहोत्यादिभ्यः श्लुः ॥ २,४.७५ ॥ बहुलं छन्दसि ॥ २,४.७६ ॥ गातिस्थाघुपाभूभ्यः सिचः परस्मैपदेषु ॥ २,४.७७ ॥ विभाषा घ्राधेट्शाच्छासः ॥ २,४.७८ ॥ तनादिभ्यस्तथासोः ॥ २,४.७९ ॥ मन्त्रे घसह्वरनशवृदहाद्वृच्कृगमिजनिभ्यो लेः ॥ २,४.८० ॥ आमः ॥ २,४.८१ ॥ अव्ययादाप्सुपः ॥ २,४.८२ ॥ नाव्ययीभावादतोऽम्‌ त्वपञ्चम्याः ॥ २,४.८३ ॥ तृतीयासप्तम्योर्बहुलम् ॥ २,४.८४ ॥ लुटः प्रथमस्य डारौरसः ॥ २,४.८५ ॥ प्रत्ययः ॥ ३,१.१ ॥ परश्च ॥ ३,१.२ ॥ आद्युदात्तश्च ॥ ३,१.३ ॥ अनुदात्तौ सुप्पितौ ॥ ३,१.४ ॥ गुप्तिज्किद्भ्यः सन् ॥ ३,१.५ ॥ मान्बधदान्शान्भ्यो दीर्घश्चाभ्यासस्य ॥ ३,१.६ ॥ धातोः कर्मणः समानकर्तृकादिच्छायां वा ॥ ३,१.७ ॥ सुप आत्मनः क्यच् ॥ ३,१.८ ॥ काम्यच्च ॥ ३,१.९ ॥ उपमानादाचारे ॥ ३,१.१० ॥ कर्तुः क्यङ्सलोपश्च ॥ ३,१.११ ॥ भृशादिभ्यो भुव्यच्वेर्लोपश्च हलः ॥ ३,१.१२ ॥ लोहितादिडाज्भ्यः क्यष् ॥ ३,१.१३ ॥ कष्टाय क्रमणे ॥ ३,१.१४ ॥ कर्मणो रोमन्थतपोभ्यां वर्तिचरोः ॥ ३,१.१५ ॥ बाष्पोष्मभ्यामुद्वमने ॥ ३,१.१६ ॥ शब्दवैरकलहाभ्रकण्वमेघेभ्यः करणे ॥ ३,१.१७ ॥ सुखादिभ्यः कर्तृवेदनायाम् ॥ ३,१.१८ ॥ नमोवरिवश्चित्रङः क्यच् ॥ ३,१.१९ ॥ पुच्छभान्डचीवराण्णिङ् ॥ ३,१.२० ॥ मुण्डमिश्रश्लक्ष्णलवणव्रतवस्त्रहलकलकृततूस्तेभ्यो णिच् ॥ ३,१.२१ ॥ धातोरेकाचो हलादेः क्रियासमभिहारे यङ् ॥ ३,१.२२ ॥ नित्यं कौटिल्ये गतौ ॥ ३,१.२३ ॥ लुपसदचरजपजभदहदशगॄभ्यो भावगर्हायाम् ॥ ३,१.२४ ॥ सत्यापपाशरूपवीणातूलश्लोकसेनालोमत्वचवर्मवर्णचूर्णचुरादिभ्यो णिच् ॥ ३,१.२५ ॥ हेतुमति च ॥ ३,१.२६ ॥ कण्ड्वादिभ्यो यक् ॥ ३,१.२७ ॥ गुपूधूपविच्छिपणिपनिभ्य आयः ॥ ३,१.२८ ॥ ऋतेरीयङ् ॥ ३,१.२९ ॥ कमेर्णिङ् ॥ ३,१.३० ॥ आयादय आर्धधातुके वा ॥ ३,१.३१ ॥ सनाद्यन्ता धातवः ॥ ३,१.३२ ॥ स्यतासी लृ‌लुटोः ॥ ३,१.३३ ॥ सिब्बहुलं लेति ॥ ३,१.३४ ॥ कास्प्रत्ययादाममन्त्रे लिटि ॥ ३,१.३५ ॥ इजादेश्च गुरुमतोऽनृच्छः ॥ ३,१.३६ ॥ दयायासश्च ॥ ३,१.३७ ॥ उषविदजागृभ्योऽन्यतरस्याम् ॥ ३,१.३८ ॥ भीह्रीभृहुवां श्लुवच्च ॥ ३,१.३९ ॥ कृञ्चानुप्रयुज्यते लिटि ॥ ३,१.४० ॥ विदाङ्कुर्वन्त्वित्यन्यतरस्याम् ॥ ३,१.४१ ॥ अभ्युत्सादयांप्रजनयाम्चिकयांरमयामकः पावयाम्क्रियाद्विदामक्रन्निति च्छन्दसि ॥ ३,१.४२ ॥ च्लि लुडि ॥ ३,१.४३ ॥ च्लेः सिच् ॥ ३,१.४४ ॥ शल इगुपधादनिटः क्षः ॥ ३,१.४५ ॥ श्लिष आलिङ्गने ॥ ३,१.४६ ॥ न दृशः ॥ ३,१.४७ ॥ णिश्रिद्रुस्रुभ्यः कर्तरि चङ् ॥ ३,१.४८ ॥ विभाषा धेट्श्व्योः ॥ ३,१.४९ ॥ गुपेश्छन्दसि ॥ ३,१.५० ॥ नोनयतिध्वनयत्येलयत्यर्दयतिभ्यः ॥ ३,१.५१ ॥ अस्यतिवक्तिख्यातिभ्योऽङ् ॥ ३,१.५२ ॥ लिपिसिचिह्वश्च ॥ ३,१.५३ ॥ आत्मनेपदेष्वन्यतरस्याम् ॥ ३,१.५४ ॥ पुषादिद्युताद्यॢदितः प्रस्मैपदेषु ॥ ३,१.५५ ॥ सर्तिशास्त्यर्तिभ्यश्च ॥ ३,१.५६ ॥ इरितो वा ॥ ३,१.५७ ॥ जॄस्तम्भुम्रुचुम्लुचुग्रुचुग्लुचुग्लुञ्चुश्विभ्यश्च ॥ ३,१.५८ ॥ कृमृदृरुहिभ्यश्छन्दसि ॥ ३,१.५९ ॥ चिण्ते पदः ॥ ३,१.६० ॥ दीपजनबुधपूरितायिप्यायिभ्योऽन्यतरस्याम् ॥ ३,१.६१ ॥ अचः कर्मकर्तरि ॥ ३,१.६२ ॥ दुहश्च ॥ ३,१.६३ ॥ न रुधः ॥ ३,१.६४ ॥ तपोऽनुतापे च ॥ ३,१.६५ ॥ चिण्भावकर्मणोः ॥ ३,१.६६ ॥ सार्वधातुके यक् ॥ ३,१.६७ ॥ कर्तरि शप् ॥ ३,१.६८ ॥ दिवादिभ्यः श्यन् ॥ ३,१.६९ ॥ वा भ्राशभ्लाशभ्रमुक्रमुक्लमुत्रसित्रुतिलषः ॥ ३,१.७० ॥ यसोऽनुपसर्गात् ॥ ३,१.७१ ॥ संयसश्च ॥ ३,१.७२ ॥ स्वादिभ्यः श्नुः ॥ ३,१.७३ ॥ श्रुवः शृ च ॥ ३,१.७४ ॥ अक्षोऽन्यतरस्याम् ॥ ३,१.७५ ॥ तनूकरणे तक्षः ॥ ३,१.७६ ॥ तुदादिभ्यः शः ॥ ३,१.७७ ॥ रुद्ःादिभ्यः श्नम् ॥ ३,१.७८ ॥ तनादिकृञ्भ्यः उः ॥ ३,१.७९ ॥ धिन्विकृण्व्योर च ॥ ३,१.८० ॥ क्र्यादिभ्यः श्ना ॥ ३,१.८१ ॥ स्तम्भुस्तुम्भुस्कम्भुस्कुम्भुस्कुञ्भ्यः श्नुश्च ॥ ३,१.८२ ॥ हलः श्नः शानज्ज्ञौ ॥ ३,१.८३ ॥ छन्दसि शायजपि ॥ ३,१.८४ ॥ व्यत्ययो बहुलम् ॥ ३,१.८५ ॥ लिङ्याशिष्यङ् ॥ ३,१.८६ ॥ कर्मवत्कर्मणा तुल्यक्रियः ॥ ३,१.८७ ॥ तपस्तपःकर्मकस्य+एव ॥ ३,१.८८ ॥ न दुहस्नुनमां यक्चिणौ ॥ ३,१.८९ ॥ कुषिरजोः प्राचां श्यन् परस्मैपदं च ॥ ३,१.९० ॥ धातोः ॥ ३,१.९१ ॥ तत्र+उपपदं सप्तमीस्थम् ॥ ३,१.९२ ॥ कृदतिङ् ॥ ३,१.९३ ॥ वाऽसरूपोऽस्त्रियाम् ॥ ३,१.९४ ॥ कृत्याः प्रग्ण्वुलः ॥ ३,१.९५ ॥ तव्यत्तव्यानीयरः ॥ ३,१.९६ ॥ अचो यत् ॥ ३,१.९७ ॥ पोरदुपधात् ॥ ३,१.९८ ॥ शकिसहोश्च ॥ ३,१.९९ ॥ गदमदचरयमश्चानुपसर्गे ॥ ३,१.१०० ॥ अवद्यपण्यवर्या गर्ह्यपणितव्यानिरोधेषु ॥ ३,१.१०१ ॥ वह्यं करणम् ॥ ३,१.१०२ ॥ अर्यः स्वमिवैश्ययोः ॥ ३,१.१०३ ॥ उपसर्या काल्या प्रजने ॥ ३,१.१०४ ॥ अजर्यं सङ्गतम् ॥ ३,१.१०५ ॥ वदः सुपि क्यप्च ॥ ३,१.१०६ ॥ भुवो भावे ॥ ३,१.१०७ ॥ हनस्त च ॥ ३,१.१०८ ॥ एतिस्तुशास्वृदृजुषः क्यप् ॥ ३,१.१०९ ॥ ऋदुपधाच्चाकॢपिचृतेः ॥ ३,१.११० ॥ ई च खनः ॥ ३,१.१११ ॥ भृञोऽसञ्ज्ञायाम् ॥ ३,१.११२ ॥ मृजेर्विभाषा ॥ ३,१.११३ ॥ राजसूयसूर्यमृषोद्यरुच्यकुप्यकृष्टपच्याव्यथ्याः ॥ ३,१.११४ ॥ भिद्योद्ध्यौ नदे ॥ ३,१.११५ ॥ पुष्यसिद्ध्यौ नक्षत्रे ॥ ३,१.११६ ॥ विपूयविनीयजित्या मुङ्जकल्कहलिषु ॥ ३,१.११७ ॥ प्रत्यपिभ्यां ग्रहेश्छन्दसि ॥ ३,१.११८ ॥ पदास्वैरिबाह्यापक्ष्येषु च ॥ ३,१.११९ ॥ विभाषा कृवृषोः ॥ ३,१.१२० ॥ युग्यं च पत्रे ॥ ३,१.१२१ ॥ अमावस्यदन्यतरस्याम् ॥ ३,१.१२२ ॥ छन्दसि निष्टर्क्यदेवहूयप्रणीयोन्नीयोच्छिष्यमर्यस्तर्यध्वर्यखन्यखान्यदेवयज्यापृच्छ्यप्रतिषीव्यब्रह्मवाद्यभाव्यस्ताव्योपचाय्यपृडानि ॥ ३,१.१२३ ॥ ऋहलोर्ण्यत् ॥ ३,१.१२४ ॥ ओरावश्यके ॥ ३,१.१२५ ॥ आसुयुवपिरपिलपित्रपिचमश्च ॥ ३,१.१२६ ॥ आनाय्योऽनित्ये ॥ ३,१.१२७ ॥ प्रणाय्योऽसम्मतौ ॥ ३,१.१२८ ॥ पाय्यसान्नाय्यनिकाय्यधाय्या मानहविर्निवाससामिधेनीषु ॥ ३,१.१२९ ॥ क्रतौ कुण्डपाय्यसञ्चाय्यौ ॥ ३,१.१३० ॥ अग्नौ परिचाय्योपचाय्यसमूह्याः ॥ ३,१.१३१ ॥ चित्याग्निचित्ये च ॥ ३,१.१३२ ॥ ण्वुल्तृचौ ॥ ३,१.१३३ ॥ नन्दिग्रहिपचादिभ्यो ल्युणिन्यचः ॥ ३,१.१३४ ॥ इगुपधज्ञाप्रीकिरः कः ॥ ३,१.१३५ ॥ आतश्च+उपसर्गे ॥ ३,१.१३६ ॥ पाघ्राध्माधेट्दृशः शः ॥ ३,१.१३७ ॥ अनुपसर्गाल्लिम्पविन्दधारिपारिवेद्युदेजिचेतिसातिसाहिभ्यश्च ॥ ३,१.१३८ ॥ ददातिदधात्योर्विभाषा ॥ ३,१.१३९ ॥ ज्वलितिकसन्तेभ्यो णः ॥ ३,१.१४० ॥ श्याद्व्यधास्रुसंस्र्वतीणवसावहृलिहश्लिषश्वसश्च ॥ ३,१.१४१ ॥ दुन्योरनुपसर्गे ॥ ३,१.१४२ ॥ विभाशा ग्रहः ॥ ३,१.१४३ ॥ गेहे कः ॥ ३,१.१४४ ॥ शिल्पिनि ष्वुन् ॥ ३,१.१४५ ॥ गस्थकन् ॥ ३,१.१४६ ॥ ण्युट्च ॥ ३,१.१४७ ॥ हश्च व्रीहिकालयोः ॥ ३,१.१४८ ॥ प्रुसृल्वः समभिहारे वुन् ॥ ३,१.१४९ ॥ आशिषि च ॥ ३,१.१५० ॥ कर्मण्यण् ॥ ३,२.१ ॥ ह्वावामश्च ॥ ३,२.२ ॥ आतोऽनुपसर्गे कः ॥ ३,२.३ ॥ सुपि स्थः ॥ ३,२.४ ॥ तुन्दशोकयोः परिमृजापनुदोः ॥ ३,२.५ ॥ प्रे दाज्ञः ॥ ३,२.६ ॥ समि ख्यः ॥ ३,२.७ ॥ गापोष्टक् ॥ ३,२.८ ॥ हरतेरनुद्यमनेऽच् ॥ ३,२.९ ॥ वयसि च ॥ ३,२.१० ॥ आङि ताच्छील्ये ॥ ३,२.११ ॥ अर्हः ॥ ३,२.१२ ॥ स्तम्बकर्णयो रमिजपोः ॥ ३,२.१३ ॥ शमि धातोः सञ्ज्ञायाम् ॥ ३,२.१४ ॥ अधिकरणे शेतेः ॥ ३,२.१५ ॥ चरेष्टः ॥ ३,२.१६ ॥ भिक्षासेनादायेषु च ॥ ३,२.१७ ॥ पुरोऽग्रतोऽग्रेषु सर्तेः ॥ ३,२.१८ ॥ पूर्वे कर्तरि ॥ ३,२.१९ ॥ कृञो हेतुताच्छील्यानुलोम्येषु ॥ ३,२.२० ॥ दिवाविभानिशाप्रभाभास्कारान्तानन्तादिबहुनान्दीकिंलिपिलिबिबलिभक्तिकर्तृचित्रक्षेत्रसङ्ख्याजङ्घाबाह्वहर्यत्तद्धनुररुष्षु ॥ ३,२.२१ ॥ कर्मणि भृतौ ॥ ३,२.२२ ॥ न शब्दश्लोककलहगाथावैरचाटुसूत्रमन्त्रपदेषु ॥ ३,२.२३ ॥ स्तम्बशकृतोरिन् ॥ ३,२.२४ ॥ हरतेर्दृतिनाथयोः पशौ ॥ ३,२.२५ ॥ फलेग्रहिरात्मम्भरिश्च ॥ ३,२.२६ ॥ छन्दसि वनसनरक्षिमथाम् ॥ ३,२.२७ ॥ एजेः खश् ॥ ३,२.२८ ॥ नासिकास्तनयोर्ध्माधेटोः ॥ ३,२.२९ ॥ नाडीमुष्ट्योश्च ॥ ३,२.३० ॥ उदि कूले रुजिवहोः ॥ ३,२.३१ ॥ वहाभ्रे लिहः ॥ ३,२.३२ ॥ परिमाणे पचः ॥ ३,२.३३ ॥ मितनखे च ॥ ३,२.३४ ॥ विध्वरुषोस्तुदः ॥ ३,२.३५ ॥ असूर्यललाटयोर्दृशितपोः ॥ ३,२.३६ ॥ उग्रम्पश्येरम्मदपाणिन्धमाश्च ॥ ३,२.३७ ॥ प्रियवशे वदः खच् ॥ ३,२.३८ ॥ द्विषत्परयोस्तापेः ॥ ३,२.३९ ॥ वाचि यमो व्रते ॥ ३,२.४० ॥ पूःसर्वयोर्दारिसहोः ॥ ३,२.४१ ॥ सर्वकूलाभ्रकरीषेषु कषः ॥ ३,२.४२ ॥ मेघर्तिभयेषु कृञः ॥ ३,२.४३ ॥ क्षेमप्रियमद्रेऽण्च ॥ ३,२.४४ ॥ आशिते भुवः करणभावयोः ॥ ३,२.४५ ॥ सञ्ज्ञायां भृतॄवृजिधारिसहितपिदमः ॥ ३,२.४६ ॥ गमश्च ॥ ३,२.४७ ॥ अन्तात्यन्ताध्वदूरपारसर्वानन्तेषु डः ॥ ३,२.४८ ॥ आशिषि हनः ॥ ३,२.४९ ॥ अपे क्लेशतमसोः ॥ ३,२.५० ॥ कुमारशीर्षयोर्णिनिः ॥ ३,२.५१ ॥ लक्षणे जायापत्योष्टक् ॥ ३,२.५२ ॥ अमनुष्यकर्तृके च ॥ ३,२.५३ ॥ शक्तौ हस्ति कपाटयोः ॥ ३,२.५४ ॥ पाणिघताडघौ शिल्पिनि ॥ ३,२.५५ ॥ आढ्यसुभगस्थूलपलितनग्नान्धप्रियेषु च्व्यर्थेष्वच्वौ कृञः करणे ख्युन् ॥ ३,२.५६ ॥ कर्तरि भुवः खिष्णुच्खुकञौ ॥ ३,२.५७ ॥ स्पृशोऽनुदके क्विन् ॥ ३,२.५८ ॥ ऋत्विग्दधृक्स्रग्दिगुष्णिगञ्चुयुजिक्रुञ्चां च ॥ ३,२.५९ ॥ त्यदादिषु दृशोऽनालोचने कञ्च ॥ ३,२.६० ॥ सत्सूद्विषद्रुहदुहयुजविदभिदच्छिदजिनीराजामुअसर्गेऽपि क्विप् ॥ ३,२.६१ ॥ भजो ण्विः ॥ ३,२.६२ ॥ छन्दसि सहः ॥ ३,२.६३ ॥ वहश्च ॥ ३,२.६४ ॥ कव्यपुरीषपुरीष्येषु ञ्युट् ॥ ३,२.६५ ॥ हव्येऽनन्तःपादाम् ॥ ३,२.६६ ॥ जनसनखनक्रमगमो विट् ॥ ३,२.६७ ॥ अदोऽनन्ने ॥ ३,२.६८ ॥ क्रव्ये च ॥ ३,२.६९ ॥ दुहः कब्घश्च ॥ ३,२.७० ॥ मन्त्रे श्वेतवहोक्थशस्पुरोडाशो ण्विन् ॥ ३,२.७१ ॥ अवे यजः ॥ ३,२.७२ ॥ विजुपे छन्दसि ॥ ३,२.७३ ॥ आतो मनिन्क्वनिब्वनिपश्च ॥ ३,२.७४ ॥ अन्येभ्योऽपि दृश्यन्ते ॥ ३,२.७५ ॥ क्विप्च ॥ ३,२.७६ ॥ स्थः क च ॥ ३,२.७७ ॥ सुप्यजातौ णिनिस्ताच्छील्ये ॥ ३,२.७८ ॥ कर्तर्युपमामे ॥ ३,२.७९ ॥ व्रते ॥ ३,२.८० ॥ बहुलमाभीक्ष्ण्ये ॥ ३,२.८१ ॥ मनः ॥ ३,२.८२ ॥ आत्ममाने खश्च ॥ ३,२.८३ ॥ भूते ॥ ३,२.८४ ॥ करणे यजः ॥ ३,२.८५ ॥ करमणि हनः ॥ ३,२.८६ ॥ ब्रह्मभ्रूणवृत्रेषु क्विप् ॥ ३,२.८७ ॥ बहुलं छन्दसि ॥ ३,२.८८ ॥ सुकर्मपापमन्त्रपुण्येषु कृञः ॥ ३,२.८९ ॥ सोमे सुञः ॥ ३,२.९० ॥ अग्नौ चेः ॥ ३,२.९१ ॥ कर्मण्यग्न्याख्यायाम् ॥ ३,२.९२ ॥ कर्मणि इनिर्विक्रियः ॥ ३,२.९३ ॥ दृशेः क्वनिप् ॥ ३,२.९४ ॥ राजनि युधिकृञः ॥ ३,२.९५ ॥ सहे च ॥ ३,२.९६ ॥ सप्तम्यां जनेर्डः ॥ ३,२.९७ ॥ पञ्चम्यामजातौ ॥ ३,२.९८ ॥ उपसर्गे च सञ्ज्ञायाम् ॥ ३,२.९९ ॥ अनौ कर्मणि ॥ ३,२.१०० ॥ अन्येष्वपि दृश्यते ॥ ३,२.१०१ ॥ निष्ठा ॥ ३,२.१०२ ॥ सुयजोर्ङ्वनिप् ॥ ३,२.१०३ ॥ जीर्यतेरतृन् ॥ ३,२.१०४ ॥ छन्दसि लिट् ॥ ३,२.१०५ ॥ लिटः कानज्वा ॥ ३,२.१०६ ॥ क्वसुश्च ॥ ३,२.१०७ ॥ भाषायां सदवसश्रुवः ॥ ३,२.१०८ ॥ उपेयिवाननाश्वाननूचानश्च ॥ ३,२.१०९ ॥ लुङ् ॥ ३,२.११० ॥ अनद्यतने लङ् ॥ ३,२.१११ ॥ अभिज्ञावचने लृट् ॥ ३,२.११२ ॥ न यदि ॥ ३,२.११३ ॥ विभाषा साकाङ्क्षे ॥ ३,२.११४ ॥ परोक्षे लिट् ॥ ३,२.११५ ॥ हशश्वतोर्लङ्च ॥ ३,२.११६ ॥ प्रश्ने च आसन्नकले ॥ ३,२.११७ ॥ लट्स्मे ॥ ३,२.११८ ॥ अपरोक्षे च ॥ ३,२.११९ ॥ ननौ पृष्टप्रतिवचने ॥ ३,२.१२० ॥ नन्वोर्विभाषा ॥ ३,२.१२१ ॥ पुरि लुङ्चास्मे ॥ ३,२.१२२ ॥ वर्तमाने लट् ॥ ३,२.१२३ ॥ लटः शतृशानचावप्रथमासमानाधिकरणे ॥ ३,२.१२४ ॥ सम्बोधने च ॥ ३,२.१२५ ॥ लक्षणहेत्वोः क्रियायाः ॥ ३,२.१२६ ॥ तौ सत् ॥ ३,२.१२७ ॥ पूङ्यजोः शानन् ॥ ३,२.१२८ ॥ ताच्छीयवयोवचनशक्तिषु चानश् ॥ ३,२.१२९ ॥ इङ्धार्योः शत्रकृच्छ्रिणि ॥ ३,२.१३० ॥ द्विषोऽमित्रे ॥ ३,२.१३१ ॥ सुञो यज्ञसंयोगे ॥ ३,२.१३२ ॥ अर्हः प्रशंसायाम् ॥ ३,२.१३३ ॥ आ क्वेः तच्छीलतद्धर्मतत्साधुकारिषु ॥ ३,२.१३४ ॥ तृन् ॥ ३,२.१३५ ॥ अलङ्कृञ्निराकृञ्प्रजनोत्पचोत्पतोन्मदरुच्यपत्रपवृतुवृधुसहचर इष्णुच् ॥ ३,२.१३६ ॥ णेश्छन्दसि ॥ ३,२.१३७ ॥ भुवश्च ॥ ३,२.१३८ ॥ ग्लाजिस्थश्च क्ष्नुः ॥ ३,२.१३९ ॥ त्रसिगृधिधृषिक्षिपेः क्नुः ॥ ३,२.१४० ॥ शमित्यष्टाभ्यो घिनुण् ॥ ३,२.१४१ ॥ संपृचानुरुधाङ्यमाङ्यसपरिसृसंसृजपरिदेविसंज्वरपरिक्षिपपरिरटपरिवदपरिदहपरिमुहदुषद्विषद्रुहदुहयुजाक्रीडविविचत्यजरजभजातिचरापचरामुषाभ्याहनश्च ॥ ३,२.१४२ ॥ वौ कषलसकत्थस्रम्भः ॥ ३,२.१४३ ॥ अपे च लषः ॥ ३,२.१४४ ॥ प्रे लपसृद्रुमथवदवसः ॥ ३,२.१४५ ॥ निन्दहिंसक्लिशखादविनाशपरिक्षिपपरिरटपरिवादिव्याभाषासूयो वुञ् ॥ ३,२.१४६ ॥ देविक्रशोश्च+उपसर्गे ॥ ३,२.१४७ ॥ चलनशब्दार्थादकर्मकाद्युच् ॥ ३,२.१४८ ॥ अनुदात्तेतश्च हलादेः ॥ ३,२.१४९ ॥ जुचङ्क्रम्यदन्द्रम्यसृगृधिज्वलशुचलषपतपदः ॥ ३,२.१५० ॥ क्रुधमण्डार्थेभ्यश्च ॥ ३,२.१५१ ॥ न यः ॥ ३,२.१५२ ॥ सूददीपदीक्षश्च ॥ ३,२.१५३ ॥ लषपतपदस्थाभूवृषहनकमगमशॄभ्य उकञ् ॥ ३,२.१५४ ॥ जल्पभिक्षकुट्टलुण्टवृङः षाकन् ॥ ३,२.१५५ ॥ प्रजोरिनिः ॥ ३,२.१५६ ॥ जिदृक्षिविश्रीण्वमाव्यथाभ्यमपरिभूप्रसूभ्यश्च ॥ ३,२.१५७ ॥ स्पृहिगृहिपतिदयिनिद्रादन्द्राश्रद्धाभ्य आलुच् ॥ ३,२.१५८ ॥ दाधेट्सिशदसदो रुः ॥ ३,२.१५९ ॥ सृघस्यदः क्मरच् ॥ ३,२.१६० ॥ भञ्जभासमिदो घुरच् ॥ ३,२.१६१ ॥ विदिभिदिच्छिदेः कुरच् ॥ ३,२.१६२ ॥ इण्नश्जिसर्तिभ्यः क्वरप् ॥ ३,२.१६३ ॥ गत्वरश्च ॥ ३,२.१६४ ॥ जागुरूकः ॥ ३,२.१६५ ॥ यजजपदशां यङः ॥ ३,२.१६६ ॥ नमिकम्पिस्म्यजसकमहिंसदीपो रः ॥ ३,२.१६७ ॥ सनाशंसभिक्ष उः ॥ ३,२.१६८ ॥ विन्दुरिच्छुः ॥ ३,२.१६९ ॥ क्याच्छन्दसि ॥ ३,२.१७० ॥ आदृगमहनजनः किकिनौ लिट्च ॥ ३,२.१७१ ॥ स्वपितृषोर्नजिङ् ॥ ३,२.१७२ ॥ शॄवन्द्योरारुः ॥ ३,२.१७३ ॥ भियः क्रुक्लुकनौ ॥ ३,२.१७४ ॥ स्थेशभासपिसकसो वरच् ॥ ३,२.१७५ ॥ यश्च यङः ॥ ३,२.१७६ ॥ भ्राजभासधुर्विद्युतोर्जिपॄजुग्रावस्तुवः क्विप् ॥ ३,२.१७७ ॥ अन्येभ्योऽपि दृश्यते ॥ ३,२.१७८ ॥ भुवः सञ्ज्ञान्तरयोः ॥ ३,२.१७९ ॥ विप्रसम्भ्यो ड्वसञ्ज्ञायाम् ॥ ३,२.१८० ॥ धः करम्णि ष्ट्रन् ॥ ३,२.१८१ ॥ दाम्नीशसयुयुजस्तुतुदसिसिचमिहपतदशनहः करणे ॥ ३,२.१८२ ॥ हलसूकरयोः पुवः ॥ ३,२.१८३ ॥ अर्तिलूधूसूखनसहचर इत्रः ॥ ३,२.१८४ ॥ पुवः सञ्ज्ञायाम् ॥ ३,२.१८५ ॥ कर्तरि चर्षिदेवतयोः ॥ ३,२.१८६ ॥ ञीतः क्तः ॥ ३,२.१८७ ॥ मतिबुद्धिपूजार्थेभ्यश्च ॥ ३,२.१८८ ॥ उणादयो बहुलम् ॥ ३,३.१ ॥ भूतेऽपि दृश्यन्ते ॥ ३,३.२ ॥ भविष्यति गम्यादयः ॥ ३,३.३ ॥ यावत्पुरानिपातयोर्लट् ॥ ३,३.४ ॥ विभाषा कदाकर्ह्योः ॥ ३,३.५ ॥ किंवृत्ते लिप्सायाम् ॥ ३,३.६ ॥ लिप्स्यमानसिद्धौ च ॥ ३,३.७ ॥ लोडर्थलक्षने च ॥ ३,३.८ ॥ लिङ्च+ऊर्ध्वमौहूर्तिके ॥ ३,३.९ ॥ तुमुन्ण्वुलौ क्रियायां क्रियार्थायाम् ॥ ३,३.१० ॥ भाववचनाश्च ॥ ३,३.११ ॥ अण्कर्मणि च ॥ ३,३.१२ ॥ लृट्शेषे च ॥ ३,३.१३ ॥ लृटः सद्वा ॥ ३,३.१४ ॥ अनद्यतने लुट् ॥ ३,३.१५ ॥ पदरुजविशस्पृशो घञ् ॥ ३,३.१६ ॥ सृ स्थिरे ॥ ३,३.१७ ॥ भावे ॥ ३,३.१८ ॥ अकर्तरि च कारके सञ्ज्ञायाम् ॥ ३,३.१९ ॥ परिमाणाख्यायां सर्वेभ्यः ॥ ३,३.२० ॥ इङश्च ॥ ३,३.२१ ॥ उपसर्गे रुवः ॥ ३,३.२२ ॥ समि युद्रुदुवः ॥ ३,३.२३ ॥ श्रिणीभुवोऽनुपसर्गे ॥ ३,३.२४ ॥ वौ क्षुश्रुवः ॥ ३,३.२५ ॥ अवोदोर्नियः ॥ ३,३.२६ ॥ प्रे द्रुस्तुस्रुवः ॥ ३,३.२७ ॥ निरभ्योः पूल्वोः ॥ ३,३.२८ ॥ उन्न्योर्ग्रः ॥ ३,३.२९ ॥ कॄ धान्ये ॥ ३,३.३० ॥ यज्ञे समि स्तुवः ॥ ३,३.३१ ॥ प्रे स्त्रोऽयज्ञे ॥ ३,३.३२ ॥ प्रथने वावशब्दे ॥ ३,३.३३ ॥ छन्दोनाम्नि च ॥ ३,३.३४ ॥ उदि ग्रहः ॥ ३,३.३५ ॥ समि मुष्टौ ॥ ३,३.३६ ॥ परिन्योर्नीणोर्द्यूताभ्रेषयोः ॥ ३,३.३७ ॥ परावनुपात्यय इणः ॥ ३,३.३८ ॥ व्युपयोः शेतेः पर्याये ॥ ३,३.३९ ॥ हस्तादाने चेरस्तेये ॥ ३,३.४० ॥ निवासचितिशरीरोपसमाधानेष्वादेश्च कः ॥ ३,३.४१ ॥ सङ्घे चानौत्तराधर्ये ॥ ३,३.४२ ॥ कर्मव्यतिहारे णच्स्त्रियाम् ॥ ३,३.४३ ॥ अभिविधौ भावे इनुण् ॥ ३,३.४४ ॥ आक्रोशेऽवन्योर्ग्रहः ॥ ३,३.४५ ॥ प्रे लिप्सायाम् ॥ ३,३.४६ ॥ परौ यज्ञे ॥ ३,३.४७ ॥ नौ वृ धान्ये ॥ ३,३.४८ ॥ उदि श्रयतियौतिपूद्रुवः ॥ ३,३.४९ ॥ विभाषा+आङि रुप्लुवोः ॥ ३,३.५० ॥ अवे ग्रहो वर्षप्रतिबन्धे ॥ ३,३.५१ ॥ प्रे वणिजाम् ॥ ३,३.५२ ॥ रश्मौ च ॥ ३,३.५३ ॥ वृणोतेराच्छादने ॥ ३,३.५४ ॥ प्रौ भुवोऽवज्ञाने ॥ ३,३.५५ ॥ एरच् ॥ ३,३.५६ ॥ ॠदोरप् ॥ ३,३.५७ ॥ ग्रहवृदृनिश्चिगमश्च ॥ ३,३.५८ ॥ उपसर्गेऽदः ॥ ३,३.५९ ॥ नौ ण च ॥ ३,३.६० ॥ व्यधजपोरनुपसर्गे ॥ ३,३.६१ ॥ स्वनहसोर्वा ॥ ३,३.६२ ॥ यमः समुपनिविषु च ॥ ३,३.६३ ॥ नौ गदनदपठस्वनः ॥ ३,३.६४ ॥ क्वणो वीणायां च ॥ ३,३.६५ ॥ नित्यं पणः परिमाणे ॥ ३,३.६६ ॥ मदोऽनुपसर्गे ॥ ३,३.६७ ॥ प्रमदसम्मदौ हर्षे ॥ ३,३.६८ ॥ समुदोरजः पशुषु ॥ ३,३.६९ ॥ अक्षेषु ग्लहः ॥ ३,३.७० ॥ प्रजने सर्तेः ॥ ३,३.७१ ॥ ह्वः सम्प्रसारणं च न्यभ्युपविषु ॥ ३,३.७२ ॥ आङि युद्धे ॥ ३,३.७३ ॥ निपानमाहावः ॥ ३,३.७४ ॥ भावेऽनुपसर्गस्य ॥ ३,३.७५ ॥ हनश्च वधः ॥ ३,३.७६ ॥ मूर्तौ घनः ॥ ३,३.७७ ॥ अन्तर्घनो देशे ॥ ३,३.७८ ॥ अगारैकदेशे प्रघणः प्रघाणाश्च ॥ ३,३.७९ ॥ उद्घनोऽत्याधानम् ॥ ३,३.८० ॥ अपघनोऽङ्गम् ॥ ३,३.८१ ॥ करणेऽयोविद्रुषु ॥ ३,३.८२ ॥ स्तम्बे क च ॥ ३,३.८३ ॥ परौ घः ॥ ३,३.८४ ॥ उपघ्न आश्रये ॥ ३,३.८५ ॥ सङ्घोद्घौ गणप्रशंसयोः ॥ ३,३.८६ ॥ निघो निमितम् ॥ ३,३.८७ ॥ ड्वितः क्त्रिः ॥ ३,३.८८ ॥ ट्वितोऽथुच् ॥ ३,३.८९ ॥ यजयाचयतविच्छप्रच्छरक्षो नङ् ॥ ३,३.९० ॥ स्वपो नन् ॥ ३,३.९१ ॥ उपसर्गे घोः किः ॥ ३,३.९२ ॥ कर्मण्यधिकरणे च ॥ ३,३.९३ ॥ स्त्रियां क्तिन् ॥ ३,३.९४ ॥ स्थागापापचो भावे ॥ ३,३.९५ ॥ मन्त्रे वृषेषपचमनविदभूवीरा उदात्तः ॥ ३,३.९६ ॥ ऊतियूतिजूतिसातिहेतिकीर्तयश्च ॥ ३,३.९७ ॥ व्रजयजोर्भावे क्यप् ॥ ३,३.९८ ॥ सञ्ज्ञायां समजनिषदनिपतमनविदषुञ्शीङ्भृञिणः ॥ ३,३.९९ ॥ कृञः श च ॥ ३,३.१०० ॥ इच्च्या ॥ ३,३.१०१ ॥ अ प्रत्ययात् ॥ ३,३.१०२ ॥ गुरोश्च हलः ॥ ३,३.१०३ ॥ षिद्भिदादिभ्योऽङ् ॥ ३,३.१०४ ॥ चिन्तिपूजिकथिकुम्बिचर्चश्च ॥ ३,३.१०५ ॥ आतश्च+उपसर्गे ॥ ३,३.१०६ ॥ ण्यासश्रन्थो युच् ॥ ३,३.१०७ ॥ रोगाख्यायं ण्वुल्बहुलम् ॥ ३,३.१०८ ॥ सञ्ज्ञायाम् ॥ ३,३.१०९ ॥ विभाषख्यानपरिप्रश्नयोरिञ्च ॥ ३,३.११० ॥ पर्यायार्हर्णोत्पत्तिषु ण्वुच् ॥ ३,३.१११ ॥ आक्रोशे नञ्यतिः ॥ ३,३.११२ ॥ कृत्यल्युटो बहुलम् ॥ ३,३.११३ ॥ नपुंसके भावे क्तः ॥ ३,३.११४ ॥ ल्युट्च ॥ ३,३.११५ ॥ कर्मणि च येन संस्पर्शात्कर्तुः शरीरसुखम् ॥ ३,३.११६ ॥ करणाधिकरणयोश्च ॥ ३,३.११७ ॥ पुंसि सञ्ज्ञायां घः प्रायेण ॥ ३,३.११८ ॥ गोचरसञ्चरवहव्रजव्यजापणनिगमाश्च ॥ ३,३.११९ ॥ अवे तॄस्त्रोर्घञ् ॥ ३,३.१२० ॥ हलश्च ॥ ३,३.१२१ ॥ अध्यायन्यायोद्यावसंहाराधारावायाश्च ॥ ३,३.१२२ ॥ उदङ्कोऽनुदके ॥ ३,३.१२३ ॥ जालमानायः ॥ ३,३.१२४ ॥ खनो घ च ॥ ३,३.१२५ ॥ ईषद्दुःसुषु कृच्छ्राकृच्च्रार्थेषु खल् ॥ ३,३.१२६ ॥ कर्तृकर्मणोश्च भूक्र्ञोः ॥ ३,३.१२७ ॥ आतो युच् ॥ ३,३.१२८ ॥ छन्दसि गत्यर्थेभ्यः ॥ ३,३.१२९ ॥ अन्येभ्योऽपि दृश्यते ॥ ३,३.१३० ॥ वर्तमानसामीप्ये वर्तमानवद्वा ॥ ३,३.१३१ ॥ आशंसायां भूतवच्च ॥ ३,३.१३२ ॥ क्षिप्रवचने लृट् ॥ ३,३.१३३ ॥ आशंसावचने लिङ् ॥ ३,३.१३४ ॥ नानद्यतनवत्क्रियाप्रबन्धसामीप्ययोः ॥ ३,३.१३५ ॥ भविष्यति मर्यादावचनेऽवरस्मिन् ॥ ३,३.१३६ ॥ कालविह्भागे चानहोरात्राणाम् ॥ ३,३.१३७ ॥ परस्मिन् विभाषा ॥ ३,३.१३८ ॥ लिङ्निमित्ते लृङ्क्रियातिपत्तौ ॥ ३,३.१३९ ॥ भूते च ॥ ३,३.१४० ॥ वोउताप्योः ॥ ३,३.१४१ ॥ गर्हायां लडपिजात्वोः ॥ ३,३.१४२ ॥ विभाष कथमि लिङ्च ॥ ३,३.१४३ ॥ किंवृत्ते लिङ्लृटौ ॥ ३,३.१४४ ॥ अनवक्लृप्त्यमर्षयोरकिंवृत्तेऽपि ॥ ३,३.१४५ ॥ किंकिलास्त्यर्थेषु लृट् ॥ ३,३.१४६ ॥ जातुयदोर्लिङ् ॥ ३,३.१४७ ॥ यच्चयत्रयोः ॥ ३,३.१४८ ॥ गर्हायां च ॥ ३,३.१४९ ॥ चित्रीकरणे च ॥ ३,३.१५० ॥ शेषे लृडयदौ ॥ ३,३.१५१ ॥ उताप्योः समर्थयोर्लिङ् ॥ ३,३.१५२ ॥ कामप्रवेदनेऽकच्चिति ॥ ३,३.१५३ ॥ सम्भावनेऽलमिति चेत्सिद्धाप्रयोगे ॥ ३,३.१५४ ॥ विभाषा धातौ सम्भावनवचनेऽयदि ॥ ३,३.१५५ ॥ हेतुहेतुमतोर्लिङ् ॥ ३,३.१५६ ॥ इच्छार्थेषु लिङ्लोटौ ॥ ३,३.१५७ ॥ समानकर्तृकेषु तुमुन् ॥ ३,३.१५८ ॥ लिङ्च ॥ ३,३.१५९ ॥ इच्छार्थेभ्यो विभाषा वर्तमाने ॥ ३,३.१६० ॥ विधिनिमन्त्रणामन्त्रणाधीष्टसंप्रश्नप्रार्थनेषु लिङ् ॥ ३,३.१६१ ॥ लोट्च ॥ ३,३.१६२ ॥ प्रैषातिसर्गप्राप्तकालेषु कऋत्याश्च ॥ ३,३.१६३ ॥ लिङ्च+ऊर्ध्वमौहूर्तिके ॥ ३,३.१६४ ॥ स्मे लोट् ॥ ३,३.१६५ ॥ अधीष्टे च ॥ ३,३.१६६ ॥ कालसमयवेलासु तुमुन् ॥ ३,३.१६७ ॥ लिङ्यदि ॥ ३,३.१६८ ॥ अर्हे कृत्यतृचश्च ॥ ३,३.१६९ ॥ आवश्यकाधमर्ण्ययोर्णिनिः ॥ ३,३.१७० ॥ कृत्याश्च ॥ ३,३.१७१ ॥ शकि लिङ्च ॥ ३,३.१७२ ॥ आशिषि लिङ्लोटौ ॥ ३,३.१७३ ॥ क्तिच्क्तौ च सञ्ज्ञायाम् ॥ ३,३.१७४ ॥ माङि लुङ् ॥ ३,३.१७५ ॥ स्मोत्तरे लङ्च ॥ ३,३.१७६ ॥ धातुसम्बन्धे प्रत्ययाः ॥ ३,४.१ ॥ क्रियासमभिहारे लोट्लोटो हिस्वौ वा च तध्वमोः ॥ ३,४.२ ॥ सयुच्चयेऽन्यतरस्याम् ॥ ३,४.३ ॥ यथाविध्यनुप्रयोगः पूर्वस्मिन् ॥ ३,४.४ ॥ समुच्चये सामान्यवचनस्य ॥ ३,४.५ ॥ छन्दसि लुङ्लङ्लिटः ॥ ३,४.६ ॥ लिङर्थे लेट् ॥ ३,४.७ ॥ उपसंवादाशङ्कयोश्च ॥ ३,४.८ ॥ तुमर्थे सेसेनसेसेन्क्षेकसेनध्ययध्यैन्कध्यैकध्यैन्शध्यैशध्यैन्तवैतवेङ्तवेनः ॥ ३,४.९ ॥ प्रयै रोहिष्यै अव्यथिष्यै ॥ ३,४.१० ॥ दृशे विख्ये च ॥ ३,४.११ ॥ शकि णमुल्कमुलौ ॥ ३,४.१२ ॥ ईश्वरे तोसुन्कसुनौ ॥ ३,४.१३ ॥ कृत्यार्थे तवैकेन्केन्यत्वनः ॥ ३,४.१४ ॥ अवचक्षे च ॥ ३,४.१५ ॥ भावलक्षने स्थेण्कृञ्वदिचरिहुतमिजनिभ्यस्तोसुन् ॥ ३,४.१६ ॥ सृपितृदोः कसुन् ॥ ३,४.१७ ॥ अलंखल्वोः प्रतिषेधयोः प्राचां क्त्वा ॥ ३,४.१८ ॥ उदीचां माङो व्यतीहारे ॥ ३,४.१९ ॥ परावरयोगे च ॥ ३,४.२० ॥ समानकर्तुऋकयोः पूर्वकाले ॥ ३,४.२१ ॥ आभीक्ष्ण्ये णमुल्च ॥ ३,४.२२ ॥ न यद्यनाकाङ्क्षे ॥ ३,४.२३ ॥ विभाषाऽग्रे प्रथमपूर्वेषु ॥ ३,४.२४ ॥ कर्मण्याक्रोशे कृञः खमुञ् ॥ ३,४.२५ ॥ स्वादुमि णमुल् ॥ ३,४.२६ ॥ अन्यथैवंकथमित्थंसु सिद्धाप्रयोगश्चेत् ॥ ३,४.२७ ॥ यथातथयोरसूयाप्रतिवचने ॥ ३,४.२८ ॥ कर्मणि दृशिविदोः साकल्ये ॥ ३,४.२९ ॥ यावति विन्दजीवोः ॥ ३,४.३० ॥ चर्मोदरयोः पूरेः ॥ ३,४.३१ ॥ वर्षप्रमाण ऊलोपश्चास्यान्यत्रस्याम् ॥ ३,४.३२ ॥ चेले क्नोपेः ॥ ३,४.३३ ॥ निमूलसमूलयोः कषः ॥ ३,४.३४ ॥ शुष्कचूर्णरूक्षेषु पिषः ॥ ३,४.३५ ॥ समूलाकृतजीवेषु हन्कृञ्ग्रहः ॥ ३,४.३६ ॥ करणे हनः ॥ ३,४.३७ ॥ स्नेहने पिषः ॥ ३,४.३८ ॥ हस्ते वर्तिग्रहोः ॥ ३,४.३९ ॥ स्वे पुषः ॥ ३,४.४० ॥ अधिकरणे वन्धः ॥ ३,४.४१ ॥ सञ्ज्ञायाम् ॥ ३,४.४२ ॥ कर्तोर्जीवपुरुषयोर्नशिवहोः ॥ ३,४.४३ ॥ ऊर्ध्वे शुषिपूरोः ॥ ३,४.४४ ॥ उपमाने कर्मणि च ॥ ३,४.४५ ॥ कषादिषु यथाविध्यनुप्रयोगः ॥ ३,४.४६ ॥ उपदंशस्तृतीयायाम् ॥ ३,४.४७ ॥ हिंसार्थानां च समानकर्मकाणाम् ॥ ३,४.४८ ॥ सप्तम्यां च+उपपीडरुधकर्षः ॥ ३,४.४९ ॥ समासत्तौ ॥ ३,४.५० ॥ प्रमाणे च ॥ ३,४.५१ ॥ अपादाने परीप्सायाम् ॥ ३,४.५२ ॥ द्वितियायां च ॥ ३,४.५३ ॥ स्वाङ्गेऽध्रुवे ॥ ३,४.५४ ॥ परिक्लश्यमाने च ॥ ३,४.५५ ॥ विशिपतिपदिस्कन्दां व्याप्यमानासेव्यमानयोः ॥ ३,४.५६ ॥ अस्यतितृषोः क्रियान्तरे कालेषु ॥ ३,४.५७ ॥ नाम्न्यादिशिग्रहोः ॥ ३,४.५८ ॥ अव्ययेऽयथाभिप्रेताख्याने कृञः क्त्वाणमुलौ ॥ ३,४.५९ ॥ तिर्यच्यपवर्गे ॥ ३,४.६० ॥ स्वाङ्गे तस्प्रत्यये कृभ्वोः ॥ ३,४.६१ ॥ नाधार्थप्रत्यये च्व्यर्थे ॥ ३,४.६२ ॥ तूष्णीमि भुवः ॥ ३,४.६३ ॥ अन्वच्यानुलोम्ये ॥ ३,४.६४ ॥ शकधृषज्ञाग्लाघटरभलभक्रमसहार्हास्त्यर्थेषु तुमुन् ॥ ३,४.६५ ॥ पर्याप्तिवचनेष्वलमर्थेषु ॥ ३,४.६६ ॥ कर्तरि कृत् ॥ ३,४.६७ ॥ भव्यगेयप्रवचनीयोपस्थानीयजन्याप्लाव्यापात्या वा ॥ ३,४.६८ ॥ लः कर्मणि च भावे चाक्रमकेभ्यः ॥ ३,४.६९ ॥ तयोरेव कृत्यक्तखलर्थाः ॥ ३,४.७० ॥ आदिकर्मणि क्तः कर्तरि च ॥ ३,४.७१ ॥ गत्यर्थाक्रमकश्लिषशीङ्स्थासवसजनरुहजीर्यतिभ्यश्च ॥ ३,४.७२ ॥ दाशगोघ्नौ सम्प्रदाने ॥ ३,४.७३ ॥ भीमादयोऽपादाने ॥ ३,४.७४ ॥ ताभ्यामन्यत्रोणादयः ॥ ३,४.७५ ॥ क्तोऽधिकरणे च ध्रौव्यगतिप्रत्यवसानार्थेभ्यः ॥ ३,४.७६ ॥ लस्य ॥ ३,४.७७ ॥ तिप्तस्झिसिप्थस्थमिब्वस्मस्तातांझथासाथाम्ध्वमिड्वहिमहिङ् ॥ ३,४.७८ ॥ टित आत्मनेपदानां टेरे ॥ ३,४.७९ ॥ थासः से ॥ ३,४.८० ॥ लिटस्तझयोरेशिरेच् ॥ ३,४.८१ ॥ प्रस्मैपदानां णलतुसुस्थल्थुसणल्वमाः ॥ ३,४.८२ ॥ विदो लटो वा ॥ ३,४.८३ ॥ ब्रुवः पञ्चानामादित आहो ब्रुवः ॥ ३,४.८४ ॥ लोटो लङ्वत् ॥ ३,४.८५ ॥ एरुः ॥ ३,४.८६ ॥ सेर्ह्यपिच्च ॥ ३,४.८७ ॥ वा छन्दसि ॥ ३,४.८८ ॥ मेर्निः ॥ ३,४.८९ ॥ आमेतः ॥ ३,४.९० ॥ सवाभ्यां वामौ ॥ ३,४.९१ ॥ आडुत्तमस्य पिच्च ॥ ३,४.९२ ॥ एताइ ॥ ३,४.९३ ॥ लेटोऽडाटौ ॥ ३,४.९४ ॥ आताइ ॥ ३,४.९५ ॥ वैतोऽन्यत्र ॥ ३,४.९६ ॥ इतश्च लोपः परस्मैपदेसु ॥ ३,४.९७ ॥ स उत्तमस्य ॥ ३,४.९८ ॥ नित्यं डितः ॥ ३,४.९९ ॥ इतश्च ॥ ३,४.१०० ॥ तस्थस्थमिपां तांतंतामः ॥ ३,४.१०१ ॥ लिङः सीयुट् ॥ ३,४.१०२ ॥ यासुट्परस्मैपदेसु उदात्तो ङिच्च ॥ ३,४.१०३ ॥ किदाशिसि ॥ ३,४.१०४ ॥ झस्य रन् ॥ ३,४.१०५ ॥ इटोऽत् ॥ ३,४.१०६ ॥ सुट्तिथोः ॥ ३,४.१०७ ॥ झेर्जुसू ॥ ३,४.१०८ ॥ सिजभ्यस्तविदिभ्यश्च ॥ ३,४.१०९ ॥ आतः ॥ ३,४.११० ॥ लङः शाकटायनस्य+एव ॥ ३,४.१११ ॥ द्विषश्च ॥ ३,४.११२ ॥ तिङ्शित्सार्वधातुकम् ॥ ३,४.११३ ॥ आर्धधातुकं शेषः ॥ ३,४.११४ ॥ लिट्च ॥ ३,४.११५ ॥ लिङाशिषि ॥ ३,४.११६ ॥ छन्दस्युभयथा ॥ ३,४.११७ ॥ ङ्याप्प्रातिपदिकात् ॥ ४,१.१ ॥ स्वौजसमौट्छष्टाभ्यांभिस्ङेभ्याम्भ्यस्ङसिभ्यांभ्यस्ङसोसाम्ङ्योस्सुप् ॥ ४,१.२ ॥ स्त्रियाम् ॥ ४,१.३ ॥ अजाद्यतष्टाप् ॥ ४,१.४ ॥ ऋन्नेभ्यो ङीप् ॥ ४,१.५ ॥ उगितश्च ॥ ४,१.६ ॥ वनो र च ॥ ४,१.७ ॥ पादोऽन्यतरस्याम् ॥ ४,१.८ ॥ टाबृचि ॥ ४,१.९ ॥ न षट्स्वस्रादिभ्यः ॥ ४,१.१० ॥ मनः ॥ ४,१.११ ॥ अनो बहुव्रीहेः ॥ ४,१.१२ ॥ डाबुभाभ्यामन्यतरस्याम् ॥ ४,१.१३ ॥ अनुपसर्जनात् ॥ ४,१.१४ ॥ टिड्ढाणञ्द्वयसज्दघ्नञ्मात्रच्तयप्ठक्ठञ्कञ्क्वरप्ख्युनाम् ॥ ४,१.१५ ॥ यञश्च ॥ ४,१.१६ ॥ प्राचां ष्फ तद्धितः ॥ ४,१.१७ ॥ सर्वत्र लोहितादिकतन्तेभ्यः ॥ ४,१.१८ ॥ कौरव्यमाण्डूकाभ्यां च ॥ ४,१.१९ ॥ वयसि प्रथमे ॥ ४,१.२० ॥ द्विगोः ॥ ४,१.२१ ॥ अपरिमाणबिस्ताचितकम्बल्येभ्यो न तद्धितलुकि ॥ ४,१.२२ ॥ काण्डान्तात्क्षेत्रे ॥ ४,१.२३ ॥ पुरुषात्प्रमाणेऽन्यतरस्याम् ॥ ४,१.२४ ॥ बहुव्रीहेरूधसो ङीष् ॥ ४,१.२५ ॥ सङ्ख्याव्ययादेर्ङीप् ॥ ४,१.२६ ॥ दामहायनानाच्च ॥ ४,१.२७ ॥ अन उपधालोपिनोऽन्यतरस्याम् ॥ ४,१.२८ ॥ नित्यं सञ्ज्ञाछन्दसोः ॥ ४,१.२९ ॥ केवलमामकभागधेयपापापरसमानार्यकृतसुमङ्गलभेषजाच्च ॥ ४,१.३० ॥ रात्रेश्चाजसौ ॥ ४,१.३१ ॥ अन्तर्वत्पतिवतोर्नुक् ॥ ४,१.३२ ॥ पत्युर्नो यज्ञसंयोगे ॥ ४,१.३३ ॥ विभाषा सपूर्वस्य ॥ ४,१.३४ ॥ नित्यं सपत्न्यादिषु ॥ ४,१.३५ ॥ पूतक्रतोरै च ॥ ४,१.३६ ॥ वृषाकप्यग्निकुसितकुसिदानामुदात्तः ॥ ४,१.३७ ॥ मनोरौ वा ॥ ४,१.३८ ॥ वर्णादनुदात्तात्तोपधात्तो नः ॥ ४,१.३९ ॥ अन्यतो ङीष् ॥ ४,१.४० ॥ षिद्गौरादिभ्यश्च ॥ ४,१.४१ ॥ जानपदकुण्डगोणस्थलभाजनागकालनीलकुशकामुककबराद्वृत्त्यमत्रावपनाकृत्रिमाश्राणास्थौल्यवर्णानाच्छादनायोविकारमैथुनेच्छाकेशवेशेषु ॥ ४,१.४२ ॥ शोणात्प्राचाम् ॥ ४,१.४३ ॥ वा+उतो गुणवचनात् ॥ ४,१.४४ ॥ बह्वादिभ्यश्च ॥ ४,१.४५ ॥ नित्यं छन्दसि ॥ ४,१.४६ ॥ भुवश्च ॥ ४,१.४७ ॥ पुंयोगादाख्यायाम् ॥ ४,१.४८ ॥ इन्द्रवरुणभवशर्वरुद्रमृडहिमारण्ययवयवनमातुलाचार्याणामानुक् ॥ ४,१.४९ ॥ क्रीतात्करणपूर्वात् ॥ ४,१.५० ॥ क्तादल्पाअख्यायाम् ॥ ४,१.५१ ॥ बहुव्रीहेश्चान्तोदत्तात् ॥ ४,१.५२ ॥ अस्वाङ्गपूर्वपदाद्वा ॥ ४,१.५३ ॥ स्वाङ्गाच्च+उपसर्जनादसंयोगोपधात् ॥ ४,१.५४ ॥ नासिकोदरौष्ठजङ्घादन्तकर्णशृङ्गाच्च ॥ ४,१.५५ ॥ न क्रोडादिबह्वचः ॥ ४,१.५६ ॥ सहनञ्विद्यमानपूर्वाच्च ॥ ४,१.५७ ॥ नखमुखात्सञ्ज्ञायाम् ॥ ४,१.५८ ॥ दीर्घजिह्वी च च्छन्दसि ॥ ४,१.५९ ॥ दिक्पूर्वपदान् ङीप् ॥ ४,१.६० ॥ वाहः ॥ ४,१.६१ ॥ सख्यशिष्वी इति भाषायाम् ॥ ४,१.६२ ॥ जातेरस्त्रीविषयादयोपधात् ॥ ४,१.६३ ॥ पाककर्णपर्णपुष्पफलमूलवालोत्तरपदाच्च ॥ ४,१.६४ ॥ इतो मनुस्यजातेः ॥ ४,१.६५ ॥ ऊङुतः ॥ ४,१.६६ ॥ बाह्वन्तात्सञ्ज्ञायाम् ॥ ४,१.६७ ॥ पङ्गोश्च ॥ ४,१.६८ ॥ ऊरूत्तरपदादौपम्ये ॥ ४,१.६९ ॥ संहितशफलक्षणवामादेश्च ॥ ४,१.७० ॥ कद्रुकमण्डल्वोश्छन्दसि ॥ ४,१.७१ ॥ सञ्ज्ञायाम् ॥ ४,१.७२ ॥ शार्ङ्गरवाद्यञो ङीन् ॥ ४,१.७३ ॥ यङश्चाप् ॥ ४,१.७४ ॥ आवङ्याच्च ॥ ४,१.७५ ॥ तद्धिताः ॥ ४,१.७६ ॥ यूनस्तिः ॥ ४,१.७७ ॥ अणिञोरनार्षयोर्गुरूपोत्तमयोः ष्यङ्गोत्रे ॥ ४,१.७८ ॥ गोरावयवात् ॥ ४,१.७९ ॥ क्रौड्यादिभ्यश्च ॥ ४,१.८० ॥ दैवयज्ञिशौचिवृक्षिसात्यमुग्रिकाण्ठेविद्धिभ्योऽन्यतरस्याम् ॥ ४,१.८१ ॥ समर्थानां प्रथमाद्वा ॥ ४,१.८२ ॥ प्राग्दीव्यतोऽण् ॥ ४,१.८३ ॥ अश्वपत्यादिभ्यश्च ॥ ४,१.८४ ॥ दित्यदित्यादित्यपत्युत्तरपदाण्ण्यः ॥ ४,१.८५ ॥ उत्सादिभ्योऽञ् ॥ ४,१.८६ ॥ स्त्रीपुंसाभ्यां नञ्स्नञौ भवनात् ॥ ४,१.८७ ॥ द्विगोर्लुगनपत्ये ॥ ४,१.८८ ॥ गोत्रेऽलुगचि ॥ ४,१.८९ ॥ यूनि लुक् ॥ ४,१.९० ॥ फक्फिञोरन्यतरस्याम् ॥ ४,१.९१ ॥ तस्यापत्यम् ॥ ४,१.९२ ॥ एको गोत्रे ॥ ४,१.९३ ॥ गोत्राद्यून्यस्त्रियां ॥ ४,१.९४ ॥ अत इञ् ॥ ४,१.९५ ॥ बाह्वादिभ्यश्च ॥ ४,१.९६ ॥ सुधातुरकङ्च ॥ ४,१.९७ ॥ गोत्रे कुञ्जादिभ्यश्च्फञ् ॥ ४,१.९८ ॥ नडादिभ्यः फक् ॥ ४,१.९९ ॥ हरितादिभ्योऽञः ॥ ४,१.१०० ॥ यञिञोश्च ॥ ४,१.१०१ ॥ शरद्वच्छुनकदर्भाद्भृगुवत्साग्रायणेषु ॥ ४,१.१०२ ॥ द्रोणपर्वतजीवन्तादन्यतरस्याम् ॥ ४,१.१०३ ॥ अनृष्यानन्तर्ये बिदादिभ्योऽञ् ॥ ४,१.१०४ ॥ गर्गादिभ्यो यञ् ॥ ४,१.१०५ ॥ मधुबभ्व्रोर्ब्राह्मणकौशिकयोः ॥ ४,१.१०६ ॥ कपिबोधादाङ्गिरसे ॥ ४,१.१०७ ॥ वतण्डाच्च ॥ ४,१.१०८ ॥ लुक्स्त्रियाम् ॥ ४,१.१०९ ॥ अश्वादिभ्यः फञ् ॥ ४,१.११० ॥ भर्गात्त्रैगर्ते ॥ ४,१.१११ ॥ शिवादिभ्योऽण् ॥ ४,१.११२ ॥ अवृद्धाभ्यो नदीमानुषीभ्यस्तन्नामिकाभ्यः ॥ ४,१.११३ ॥ ऋष्यन्धकवृष्णिकुरुभ्यश्च ॥ ४,१.११४ ॥ मातुरुत्सङ्ख्यासंभद्रपूर्वायाः ॥ ४,१.११५ ॥ कन्यायाः कनीन च ॥ ४,१.११६ ॥ विकर्णशुङ्गछङ्गलाद्वत्सभरद्वाजात्रिषु ॥ ४,१.११७ ॥ पीलाया वा ॥ ४,१.११८ ॥ ठक्च मण्डूकात् ॥ ४,१.११९ ॥ स्त्रीभ्यो ढक् ॥ ४,१.१२० ॥ द्व्यचः ॥ ४,१.१२१ ॥ इतश्चानिञः ॥ ४,१.१२२ ॥ शुभ्रादिभ्यश्च ॥ ४,१.१२३ ॥ विकर्णकुषीतकात्काष्यपे ॥ ४,१.१२४ ॥ भ्रवो वुक्च ॥ ४,१.१२५ ॥ कल्याण्यादीनामिनङ् ॥ ४,१.१२६ ॥ कुलटाया ॥ ४,१.१२७ ॥ चटकाया ऐरक् ॥ ४,१.१२८ ॥ गोधाया ढ्रक् ॥ ४,१.१२९ ॥ आरगुदीचाम् ॥ ४,१.१३० ॥ क्षुद्राभ्यो वा ॥ ४,१.१३१ ॥ पितृष्वसुश्छण् ॥ ४,१.१३२ ॥ ठकि लोपः ॥ ४,१.१३३ ॥ मातृष्वसुश्च ॥ ४,१.१३४ ॥ चतुष्पाद्भ्यो ढञ् ॥ ४,१.१३५ ॥ गृष्ट्यादिभ्यश्च ॥ ४,१.१३६ ॥ राजश्वशुराद्यत् ॥ ४,१.१३७ ॥ क्षत्राद्घः ॥ ४,१.१३८ ॥ कुलात्खः ॥ ४,१.१३९ ॥ अपूर्वपदादन्यत्रस्यां यङ्ढकञौ ॥ ४,१.१४० ॥ महाकुलादञ्खञौ ॥ ४,१.१४१ ॥ दुष्कुलाड्ढक् ॥ ४,१.१४२ ॥ स्वसुश्छः ॥ ४,१.१४३ ॥ भ्रातुर्व्यच्च ॥ ४,१.१४४ ॥ व्यन् सपत्ने ॥ ४,१.१४५ ॥ रेवत्यादिभ्यष्ठक् ॥ ४,१.१४६ ॥ गोत्रस्त्रियाः कुत्सने ण च ॥ ४,१.१४७ ॥ वृद्धाट्ठक्सौवीरेषु बहुलम् ॥ ४,१.१४८ ॥ फेश्छ च ॥ ४,१.१४९ ॥ फाण्डाहृतिमिमताभ्यां णफिञौ ॥ ४,१.१५० ॥ कुर्वादिभ्यो ण्यः ॥ ४,१.१५१ ॥ सेनान्तलक्षणकारिभ्यश्च ॥ ४,१.१५२ ॥ उदीचामिञ् ॥ ४,१.१५३ ॥ तिकादिभ्यः फिञ् ॥ ४,१.१५४ ॥ कौशल्यकार्मार्याभ्यां च ॥ ४,१.१५५ ॥ अणो द्व्यचः ॥ ४,१.१५६ ॥ उदीचां वृद्धादगोत्रात् ॥ ४,१.१५७ ॥ वाकिनादीनां कुक्च ॥ ४,१.१५८ ॥ पुत्रान्तादन्यतरस्याम् ॥ ४,१.१५९ ॥ प्राचामवृद्धात्फिन् बहुलम् ॥ ४,१.१६० ॥ मनोर्जातावञयतौ षुक्च ॥ ४,१.१६१ ॥ अपत्येअं पौत्रप्रभृति गोत्रम् ॥ ४,१.१६२ ॥ जीवति तु वंश्ये युवा ॥ ४,१.१६३ ॥ भ्रातरि च ज्यायसि ॥ ४,१.१६४ ॥ वा अन्यस्मिन् सपिण्डे स्थविरतरे जिवति ॥ ४,१.१६५ ॥ वृद्धस्य च पूजायाम् ॥ ४,१.१६६ ॥ यूनश्च कुत्सायाम् ॥ ४,१.१६७ ॥ जनपदशब्दात्क्षत्रियादञ् ॥ ४,१.१६८ ॥ साल्वेयगान्धारिभ्यां च ॥ ४,१.१६९ ॥ द्व्यञ्मगधकलिङ्गसूरमसादण् ॥ ४,१.१७० ॥ वृद्धेत्कोसलाजादाञ्ञ्यङ् ॥ ४,१.१७१ ॥ कुरुनादिभ्यो ण्यः ॥ ४,१.१७२ ॥ साल्वावयवप्रत्यग्रथकलकूटाश्मकादिञ् ॥ ४,१.१७३ ॥ ते तद्राजाः ॥ ४,१.१७४ ॥ कम्बोजाल्लुक् ॥ ४,१.१७५ ॥ स्त्रियामवन्तिकुन्तिकुरुभ्यश्च ॥ ४,१.१७६ ॥ अतश्च ॥ ४,१.१७७ ॥ न प्राच्यभर्गादियौधेयादिभ्यः ॥ ४,१.१७८ ॥ तेन रक्तं रागात् ॥ ४,२.१ ॥ लाक्षारोचनाशकलकर्दमाट्ठक् ॥ ४,२.२ ॥ नक्षत्रेण युक्तं कालः ॥ ४,२.३ ॥ लुबविशेषे ॥ ४,२.४ ॥ सञ्ज्ञायां श्रवणाश्वत्थाभ्याम् ॥ ४,२.५ ॥ द्वन्वाच्छः ॥ ४,२.६ ॥ दृष्टं साम ॥ ४,२.७ ॥ कलेर्ढक् ॥ ४,२.८ ॥ वामदेवाड्ड्यड्ड्यौ ॥ ४,२.९ ॥ परिवृतो रथः ॥ ४,२.१० ॥ पाण्डुकम्बलादिनिः ॥ ४,२.११ ॥ द्वैपवैयाघ्रादञ् ॥ ४,२.१२ ॥ कौमारापूर्ववचने ॥ ४,२.१३ ॥ तत्र+उद्धृतममत्रेभ्यः ॥ ४,२.१४ ॥ स्थण्डिलाच्छयितरि व्रते ॥ ४,२.१५ ॥ संस्कृतं भक्षाः ॥ ४,२.१६ ॥ शूलोखाद्यत् ॥ ४,२.१७ ॥ दध्नष्ठक् ॥ ४,२.१८ ॥ उदश्वितोऽन्यतरस्याम् ॥ ४,२.१९ ॥ क्षीराड्ढञ् ॥ ४,२.२० ॥ साऽस्मिन् पौर्णमासी इति सञ्ज्ञायाम् ॥ ४,२.२१ ॥ आग्रहायण्यश्वत्थाट्ठक् ॥ ४,२.२२ ॥ विभाषा फाल्गुनीश्रवणाकार्तिकीचैत्रीभ्यः ॥ ४,२.२३ ॥ साऽस्य देवता ॥ ४,२.२४ ॥ कस्य+इत् ॥ ४,२.२५ ॥ शुक्राद्घन् ॥ ४,२.२६ ॥ अपोनप्त्रपांनप्तृभ्यां घः ॥ ४,२.२७ ॥ छ च ॥ ४,२.२८ ॥ महेन्द्राद्घाणौ च ॥ ४,२.२९ ॥ सोमाट्ट्यण् ॥ ४,२.३० ॥ वाय्वृतुपित्रुषसो यत् ॥ ४,२.३१ ॥ द्यावापृथिवीशुनासीरमरुत्वदग्नीषोमवास्तोष्पतिगृहमेधाच्छ च ॥ ४,२.३२ ॥ अग्नेर्ढक् ॥ ४,२.३३ ॥ कालेभ्यो भववत् ॥ ४,२.३४ ॥ महाराजप्रोष्ठपदाट्ठञ् ॥ ४,२.३५ ॥ पितृव्यमातुलमातामहपितामहाः ॥ ४,२.३६ ॥ तस्य समूहः ॥ ४,२.३७ ॥ भिक्षादिभ्योऽण् ॥ ४,२.३८ ॥ गोत्रोक्षोष्ट्रोरभ्रराजराजन्यराजपुत्रवत्समनुष्याजाद्वुञ् ॥ ४,२.३९ ॥ केदाराद्यञ्च ॥ ४,२.४० ॥ ठञ्कवचिनश्च ॥ ४,२.४१ ॥ ब्राह्मणमाणववाडवाद्यन् ॥ ४,२.४२ ॥ ग्रामजनबन्धुसहायेभ्यस्तल् ॥ ४,२.४३ ॥ अनुदात्तादेरञ् ॥ ४,२.४४ ॥ खण्डिकादिभ्यश्च ॥ ४,२.४५ ॥ चरणेभ्यो धर्मवत् ॥ ४,२.४६ ॥ अचित्तहस्तिधेनोष्ठक् ॥ ४,२.४७ ॥ केशाश्वाभ्यां यञ्छावन्यतरस्याम् ॥ ४,२.४८ ॥ पाशादिभ्यो यः ॥ ४,२.४९ ॥ खलगोरथात् ॥ ४,२.५० ॥ इनित्रकट्यचश्च ॥ ४,२.५१ ॥ विषयो देशे ॥ ४,२.५२ ॥ राजन्यादिभ्यो वुञ् ॥ ४,२.५३ ॥ भौरिक्याद्यैषुकार्यादिभ्यो विधल्भक्तलौ ॥ ४,२.५४ ॥ सोऽस्यादिरिति च्छन्दसः प्रगाथेषु ॥ ४,२.५५ ॥ सङ्ग्रामे प्रयोजनयोद्धृभ्यः ॥ ४,२.५६ ॥ तदस्यां प्रहरणमिति क्रीडायां णः ॥ ४,२.५७ ॥ घञः सास्यां क्रियेति ञः ॥ ४,२.५८ ॥ तदधीते तद्वेद ॥ ४,२.५९ ॥ क्रतूक्थादिसूत्रान्ताट्ठक् ॥ ४,२.६० ॥ क्रमादिभ्यो वुन् ॥ ४,२.६१ ॥ अनुब्राह्मणादिनिः ॥ ४,२.६२ ॥ वसन्तादिभ्यष्ठक् ॥ ४,२.६३ ॥ प्रोक्ताल्लुक् ॥ ४,२.६४ ॥ सूत्राच्च क+उपधात् ॥ ४,२.६५ ॥ छन्दोब्राहमणानि च तद्विषयाणि ॥ ४,२.६६ ॥ तदस्मिन्नस्ति इति देशे तन्नाम्नि ॥ ४,२.६७ ॥ तेन निर्वृत्तम् ॥ ४,२.६८ ॥ तस्य निवासः ॥ ४,२.६९ ॥ अदूरभवश्च ॥ ४,२.७० ॥ ओरञ् ॥ ४,२.७१ ॥ मतोश्च बह्वजङ्गात् ॥ ४,२.७२ ॥ बह्वचः कूपेषु ॥ ४,२.७३ ॥ उदक्च विपाशः ॥ ४,२.७४ ॥ सङ्कलादिभ्यश्च ॥ ४,२.७५ ॥ स्त्रीषु सौवीरसाल्वप्राक्षु ॥ ४,२.७६ ॥ सुवास्त्वादिभ्योऽण् ॥ ४,२.७७ ॥ रोणी ॥ ४,२.७८ ॥ कोपधाच्च ॥ ४,२.७९ ॥ वुञ्छण्कठजिलसेनिरढ ण्ययफक्फिञिञ्ञ्यकक्ठकोऽरीहणकृशाश्वर्श्यकुमुदकाशतृणप्रेक्षाश्मसखिसङ्काशबलपक्षकर्णसुतङ्गमप्रगदिन्वराहकुमुदादिभ्यः ॥ ४,२.८० ॥ जनपदे लुप् ॥ ४,२.८१ ॥ वरणादिभ्यश्च ॥ ४,२.८२ ॥ शर्कराया वा ॥ ४,२.८३ ॥ ठक्छौ च ॥ ४,२.८४ ॥ नद्यां मतुप् ॥ ४,२.८५ ॥ मध्वादिभ्यश्च ॥ ४,२.८६ ॥ कुमुदनडवेतसेभ्यो ड्मतुप् ॥ ४,२.८७ ॥ नडशादाड्ड्वलच् ॥ ४,२.८८ ॥ शिखाया वलच् ॥ ४,२.८९ ॥ उत्करादिभ्यश्छः ॥ ४,२.९० ॥ नडादीनां कुक्च ॥ ४,२.९१ ॥ शेषे ॥ ४,२.९२ ॥ राष्ट्रावारपाराद्घखौ ॥ ४,२.९३ ॥ राष्ट्रावारपाराद्घखौ ॥ ४,२.९४ ॥ कत्र्यादिभ्यो ढकञ् ॥ ४,२.९५ ॥ कुलकुक्षिग्रीवाभ्यः श्वास्यलङ्कारेषु ॥ ४,२.९६ ॥ नद्यादिभ्यो ढक् ॥ ४,२.९७ ॥ दक्षिणापश्चात्पुरसस्त्यक् ॥ ४,२.९८ ॥ कापिश्याः ष्फक् ॥ ४,२.९९ ॥ रङ्कोरमनुष्येऽण्च ॥ ४,२.१०० ॥ द्युप्रागपागुदक्प्रतीचो यत् ॥ ४,२.१०१ ॥ कन्थायाष्ठक् ॥ ४,२.१०२ ॥ वर्णौ वुक् ॥ ४,२.१०३ ॥ अव्ययात्त्यप् ॥ ४,२.१०४ ॥ ऐषमेओह्यःश्वसोऽन्यतरस्याम् ॥ ४,२.१०५ ॥ तीररूप्योत्तरपदादञ्ञौ ॥ ४,२.१०६ ॥ दिक्पूर्वपदादसञ्ज्ञायां ञः ॥ ४,२.१०७ ॥ मद्रेभ्योऽञ् ॥ ४,२.१०८ ॥ उदीच्यग्रामाच्च बह्वचोऽन्तोदात्तात् ॥ ४,२.१०९ ॥ प्रस्थोत्तरपदपलद्यादिकोपधादण् ॥ ४,२.११० ॥ कण्वादिभ्यो गोत्रे ॥ ४,२.१११ ॥ इञश्च ॥ ४,२.११२ ॥ न द्व्यचः प्राच्यभरतेसु ॥ ४,२.११३ ॥ वृद्धाच्छः ॥ ४,२.११४ ॥ भवतष्ठक्छसौ ॥ ४,२.११५ ॥ काश्यादिभ्यष्ठञ्ञिठौ ॥ ४,२.११६ ॥ वाहीकग्रामेभ्यश्च ॥ ४,२.११७ ॥ विभाषा+उशीनरेषु ॥ ४,२.११८ ॥ ओर्देशे ठञ् ॥ ४,२.११९ ॥ वृद्धत्प्राचाम् ॥ ४,२.१२० ॥ धन्वयोपधाद्वुञ् ॥ ४,२.१२१ ॥ प्रस्थपुरवहान्ताच्च ॥ ४,२.१२२ ॥ रोपधेतोः प्राचाम् ॥ ४,२.१२३ ॥ जनपदतदवध्योश्च ॥ ४,२.१२४ ॥ अवृद्धादपि बहुवचनविषयात् ॥ ४,२.१२५ ॥ कच्छाग्निवक्त्रगर्तोत्तरपदात् ॥ ४,२.१२६ ॥ धूमादिभ्यश्च ॥ ४,२.१२७ ॥ नगरात्कुत्सनप्रावीण्ययोः ॥ ४,२.१२८ ॥ अरण्यान्मनुस्ये ॥ ४,२.१२९ ॥ विभाषा कुरुयुगन्धराभ्याम् ॥ ४,२.१३० ॥ मद्रवृज्योः कन् ॥ ४,२.१३१ ॥ कोपधादण् ॥ ४,२.१३२ ॥ कच्छादिभ्यश्च ॥ ४,२.१३३ ॥ मनुस्यतत्स्थयोर्वुञ् ॥ ४,२.१३४ ॥ अपदातौ साल्वात् ॥ ४,२.१३५ ॥ गोयवग्वोश्च ॥ ४,२.१३६ ॥ गर्तोत्तरपदाच्छः ॥ ४,२.१३७ ॥ गहादिभ्यश्च ॥ ४,२.१३८ ॥ प्राचां कटादेः ॥ ४,२.१३९ ॥ राज्ञः क च ॥ ४,२.१४० ॥ वृद्धादकेकान्तखोपधात् ॥ ४,२.१४१ ॥ कन्थापलदनगरग्रामह्रदोत्तरपदात् ॥ ४,२.१४२ ॥ पर्वताच्च ॥ ४,२.१४३ ॥ विभाषाऽमनुष्ये ॥ ४,२.१४४ ॥ कृकणपर्णाद्भरद्वाजे ॥ ४,२.१४५ ॥ युष्मदस्मदोरन्यतरस्यां खञ्च ॥ ४,३.१ ॥ तस्मिन्नणि च युष्माकास्माकौ ॥ ४,३.२ ॥ तवकममकावेकवचने ॥ ४,३.३ ॥ अर्धाद्यत् ॥ ४,३.४ ॥ परावराधमोत्तमपूर्वाच्च ॥ ४,३.५ ॥ दिक्पूर्वपदाट्ठञ्च ॥ ४,३.६ ॥ ग्रामजनपद+एकदेशादञ्ठञौ ॥ ४,३.७ ॥ मध्यानमः ॥ ४,३.८ ॥ अ साम्प्रतिके ॥ ४,३.९ ॥ द्वीपादनुसमुद्रं यञ् ॥ ४,३.१० ॥ कालाट्ठञ् ॥ ४,३.११ ॥ श्राद्धे शरदः ॥ ४,३.१२ ॥ विभाषा रोगातपयोः ॥ ४,३.१३ ॥ निशाप्रदोषाभ्यां च ॥ ४,३.१४ ॥ श्वसस्तुट्च ॥ ४,३.१५ ॥ सन्धिवेलाद्यृतुनक्षत्रेभ्योऽण् ॥ ४,३.१६ ॥ प्रावृष एण्यः ॥ ४,३.१७ ॥ वर्षाभ्यष्ठक् ॥ ४,३.१८ ॥ छन्दसि ठञ् ॥ ४,३.१९ ॥ वसन्ताच्च ॥ ४,३.२० ॥ हेमन्ताच्च ॥ ४,३.२१ ॥ सर्वत्राण्च तलोपश्च ॥ ४,३.२२ ॥ सायंचिरंप्राह्णेप्रगेऽव्ययेभ्यष्ट्युट्युलौ तुट्च ॥ ४,३.२३ ॥ विभाषा पूर्वाह्णापराह्णाभ्याम् ॥ ४,३.२४ ॥ तत्र जातः ॥ ४,३.२५ ॥ प्रावृषष्ठप् ॥ ४,३.२६ ॥ सञ्ज्ञायां शरदो वुञ् ॥ ४,३.२७ ॥ पूर्वाह्णापराह्णार्द्रामूलप्रदोषावस्कराद्वुन् ॥ ४,३.२८ ॥ पथः पन्थ च ॥ ४,३.२९ ॥ अमावास्याया वा ॥ ४,३.३० ॥ अ च ॥ ४,३.३१ ॥ सिन्ध्वपकराभ्यां कन् ॥ ४,३.३२ ॥ अणञौ च ॥ ४,३.३३ ॥ श्रविष्ठाफल्गुन्यनुराधास्वातितिष्यपुनर्वसुहस्तविशाखाषाढाबहुलाल्लुक् ॥ ४,३.३४ ॥ स्थानानतगोशालखरशालाच्च ॥ ४,३.३५ ॥ वत्सशालाभिजिदश्वयुक्छतभिषजो वा ॥ ४,३.३६ ॥ नक्षत्रेभ्यो बहुलम् ॥ ४,३.३७ ॥ कृतलब्धक्रीतकुशलाः ॥ ४,३.३८ ॥ प्रायभवः ॥ ४,३.३९ ॥ उपजानूपकर्णोपनीवेष्ठक् ॥ ४,३.४० ॥ सम्भूते ॥ ४,३.४१ ॥ कोशाड्ढञ् ॥ ४,३.४२ ॥ कालात्साधुपुष्प्यत्पच्यमानेषु ॥ ४,३.४३ ॥ उप्ते च ॥ ४,३.४४ ॥ आश्वयुज्या वुञ् ॥ ४,३.४५ ॥ ग्रीष्मवसन्तादन्यत्रस्याम् ॥ ४,३.४६ ॥ देयमृणे ॥ ४,३.४७ ॥ कलाप्यश्वत्थयवबुसाद्वुन् ॥ ४,३.४८ ॥ ग्रीष्मावरसमाद्वुञ् ॥ ४,३.४९ ॥ संवत्सराग्रहायणीभ्यां ठञ्च ॥ ४,३.५० ॥ व्याहरति मृगः ॥ ४,३.५१ ॥ तदस्य सोढम् ॥ ४,३.५२ ॥ तत्र भवः ॥ ४,३.५३ ॥ दिगादिभ्यो यत् ॥ ४,३.५४ ॥ शरीरावयवाच्च ॥ ४,३.५५ ॥ दृतिकुक्षिकलशिवस्त्यस्त्यहेर्ढञ् ॥ ४,३.५६ ॥ ग्रीवाभ्योऽण्च ॥ ४,३.५७ ॥ गम्भीराञ्ञ्यः ॥ ४,३.५८ ॥ अव्ययीभावाच्च ॥ ४,३.५९ ॥ अन्तःपूर्वपदाट्ठञ् ॥ ४,३.६० ॥ ग्रामात्पर्यनुपूर्वात् ॥ ४,३.६१ ॥ जिह्वामूलाङ्गुलेश्छः ॥ ४,३.६२ ॥ वर्गान्ताच्च ॥ ४,३.६३ ॥ अशब्दे यत्खावन्यतरस्याम् ॥ ४,३.६४ ॥ कर्णललाटात्कनलङ्कारे ॥ ४,३.६५ ॥ तस्य व्याख्यान इति च व्याख्यातव्यनाम्नः ॥ ४,३.६६ ॥ बह्वचोऽन्तोदात्ताट ठञ् ॥ ४,३.६७ ॥ क्रतुयज्ञेभ्यश्च ॥ ४,३.६८ ॥ अध्यायेष्वेव र्षेः ॥ ४,३.६९ ॥ पौराडाशपुरोडाशात्ष्ठन् ॥ ४,३.७० ॥ छन्दसो यदणौ ॥ ४,३.७१ ॥ द्व्यजृद्ब्राह्मणर्क्प्रथमाध्वरपुरश्चरणनामाख्याताट्ठक् ॥ ४,३.७२ ॥ अणृगयनादिभ्यः ॥ ४,३.७३ ॥ तत आगतः ॥ ४,३.७४ ॥ ठगायस्थानेभ्यः ॥ ४,३.७५ ॥ शुण्डिकादिभ्योऽण् ॥ ४,३.७६ ॥ विद्यायोनिसम्बन्धेभ्यो वुञ् ॥ ४,३.७७ ॥ ऋतष्ठञ् ॥ ४,३.७८ ॥ पितुर्यच्च ॥ ४,३.७९ ॥ गोत्रादङ्कवत् ॥ ४,३.८० ॥ हेतुमनुष्येभ्योऽन्यतरस्यां रूप्यः ॥ ४,३.८१ ॥ मयट्च ॥ ४,३.८२ ॥ प्रभवति ॥ ४,३.८३ ॥ विदूराञ्ञ्यः ॥ ४,३.८४ ॥ तद्गच्छति पथिदूतयोः ॥ ४,३.८५ ॥ अभिनिष्क्रामति द्वारम् ॥ ४,३.८६ ॥ अधिकृत्य कृते ग्रन्थे ॥ ४,३.८७ ॥ शिशुक्रन्दयमसभद्वन्द्वेन्द्रजननादिभ्यश्छः ॥ ४,३.८८ ॥ सोऽस्य निवासः ॥ ४,३.८९ ॥ अभिजनश्च ॥ ४,३.९० ॥ आयुधजीविभ्यश्छः पर्वते ॥ ४,३.९१ ॥ शण्दिकादिभ्यो ञ्यः ॥ ४,३.९२ ॥ सिन्धुतक्षशिलादिभ्योऽणञौ ॥ ४,३.९३ ॥ तूदीशलातुरवर्मतीकूचवाराड्ठक्छण्ढञ्यकः ॥ ४,३.९४ ॥ भक्तिः ॥ ४,३.९५ ॥ अचित्ताददेशकालाट्ठक् ॥ ४,३.९६ ॥ महाराजाट्ठञ् ॥ ४,३.९७ ॥ वासुदेवार्जुनाभ्यां वुन् ॥ ४,३.९८ ॥ गोत्रक्षत्रियाख्येभ्यो बहुलं वुञ् ॥ ४,३.९९ ॥ जनपदिनां जनपदवत्सर्वं जनपदेन समानशब्दानां बहुवचने ॥ ४,३.१०० ॥ तेन प्रोक्तम् ॥ ४,३.१०१ ॥ तित्तिरिवरतन्तुखण्डिकोखाच्छण् ॥ ४,३.१०२ ॥ काश्यपकौशिकाभ्यामृषिभ्यां णिनिः ॥ ४,३.१०३ ॥ कलापिवैशम्पायनान्तेवासिभ्यश्च ॥ ४,३.१०४ ॥ पुराणप्रोक्तेषु ब्राह्मणकल्पेषु ॥ ४,३.१०५ ॥ शौनकादिभ्यश्छन्दसि ॥ ४,३.१०६ ॥ कठचरकाल्लुक् ॥ ४,३.१०७ ॥ कलापिनोऽण् ॥ ४,३.१०८ ॥ छगलिनो ढिनुक् ॥ ४,३.१०९ ॥ पाराशर्यशिलालिभ्यां भिक्षुनटसूत्रयोः ॥ ४,३.११० ॥ कर्मन्दकृशाश्वादिनिः ॥ ४,३.१११ ॥ तेन+एकदिक् ॥ ४,३.११२ ॥ तसिश्च ॥ ४,३.११३ ॥ उरसो यच्च ॥ ४,३.११४ ॥ उपज्ञाते ॥ ४,३.११५ ॥ कृते ग्रन्थे ॥ ४,३.११६ ॥ सञ्ज्ञायाम् ॥ ४,३.११७ ॥ कुलालादिभ्यो वुञ् ॥ ४,३.११८ ॥ क्षुद्राभ्रमरवटरपादपादञ् ॥ ४,३.११९ ॥ तस्य+इदम् ॥ ४,३.१२० ॥ रथाद्यत् ॥ ४,३.१२१ ॥ पत्रपूर्वा दञ् ॥ ४,३.१२२ ॥ पत्राध्वर्युपरिषदश्च ॥ ४,३.१२३ ॥ हलसीराट्ठक् ॥ ४,३.१२४ ॥ द्वन्द्वाद्वुन् वैरमैथुनिकयोः ॥ ४,३.१२५ ॥ गोत्रचरणाद्वुञ् ॥ ४,३.१२६ ॥ सङ्घाङ्कलक्षणेष्वञ्यञिञामण् ॥ ४,३.१२७ ॥ शाकलाद्वा ॥ ४,३.१२८ ॥ छन्दोगाउक्थिकयाज्ञिकबह्वृचनटाज्ञ्यः ॥ ४,३.१२९ ॥ न दण्डमाणवान्तेवासिषु ॥ ४,३.१३० ॥ रैवतिकादिभ्यश्छः ॥ ४,३.१३१ ॥ कौपिञ्जलहासितपदादण् ॥ ४,३.१३२ ॥ आथर्वणिकस्य+इकलोपश्च ॥ ४,३.१३३ ॥ तस्य विकारः ॥ ४,३.१३४ ॥ अवयवे च प्राण्योषधिवृक्षेभ्यः ॥ ४,३.१३५ ॥ बिल्वादिभ्योऽण् ॥ ४,३.१३६ ॥ कोपाधाच्च ॥ ४,३.१३७ ॥ त्रपुजतुनोः षुक् ॥ ४,३.१३८ ॥ ओरञ् ॥ ४,३.१३९ ॥ अनुदात्तादेश्च ॥ ४,३.१४० ॥ पलाशादिभ्यो वा ॥ ४,३.१४१ ॥ शम्याष्ट्लञ् ॥ ४,३.१४२ ॥ मयड्वआ+एतयोर्भाषायामभक्ष्य आच्छादनयोः ॥ ४,३.१४३ ॥ नित्यं वृद्धशरादिभ्यः ॥ ४,३.१४४ ॥ गोश्च पुरीषे ॥ ४,३.१४५ ॥ पिष्टाच्च ॥ ४,३.१४६ ॥ सञ्ज्ञायां कन् ॥ ४,३.१४७ ॥ व्रीहेः पुरोडाशे ॥ ४,३.१४८ ॥ असञ्ज्ञायां तिलयवाभ्याम् ॥ ४,३.१४९ ॥ द्व्यचश्छन्दसि ॥ ४,३.१५० ॥ न+उत्त्वद्वर्ध्रबिल्वात् ॥ ४,३.१५१ ॥ तालादिभ्योऽण् ॥ ४,३.१५२ ॥ जातरूपेभ्यः परिमाणे ॥ ४,३.१५३ ॥ प्राणिरजतादिभ्योऽञ् ॥ ४,३.१५४ ॥ ञितश्च तत्प्रत्ययात् ॥ ४,३.१५५ ॥ क्रीतवत्प्रैमाणात् ॥ ४,३.१५६ ॥ उष्ट्राद्वुञ् ॥ ४,३.१५७ ॥ उमोर्णयोर्वा ॥ ४,३.१५८ ॥ एण्या ढञ् ॥ ४,३.१५९ ॥ गोपयसोर्यत् ॥ ४,३.१६० ॥ द्रोश्च ॥ ४,३.१६१ ॥ माने वयः ॥ ४,३.१६२ ॥ फले लुक् ॥ ४,३.१६३ ॥ प्लक्षादिभ्योऽण् ॥ ४,३.१६४ ॥ जम्ब्वा वा ॥ ४,३.१६५ ॥ लुप्च ॥ ४,३.१६६ ॥ हरीतक्यादिभ्य श्च ॥ ४,३.१६७ ॥ कंसीयपरशव्ययोर्यञञौ लुक्च ॥ ४,३.१६८ ॥ प्राग्वहतेष्ठक् ॥ ४,४.१ ॥ तेन दीव्यति खनति जयति जितम् ॥ ४,४.२ ॥ संस्कृतम् ॥ ४,४.३ ॥ कुलत्थकोपधादण् ॥ ४,४.४ ॥ तरति ॥ ४,४.५ ॥ गोपुच्छाट्ठञ् ॥ ४,४.६ ॥ नौद्व्यचष्ठन् ॥ ४,४.७ ॥ परति ॥ ४,४.८ ॥ आकर्षात्ष्ठल् ॥ ४,४.९ ॥ पर्पादिभ्यः ष्ठन् ॥ ४,४.१० ॥ श्वगणाट्ठञ्च ॥ ४,४.११ ॥ वेतनादिभ्यो जीवति ॥ ४,४.१२ ॥ वस्नक्रयविक्रयाट्ठन् ॥ ४,४.१३ ॥ आयुधच्छ च ॥ ४,४.१४ ॥ हरत्युत्सङ्गादिभ्यः ॥ ४,४.१५ ॥ भस्त्रादिभ्यः ष्ठन् ॥ ४,४.१६ ॥ विभाषा विवधवीवधात् ॥ ४,४.१७ ॥ अण्कुटिलिकायाः ॥ ४,४.१८ ॥ निर्वृत्तेऽक्षद्यूतादिभ्यः ॥ ४,४.१९ ॥ त्रेर्मं नित्यम् ॥ ४,४.२० ॥ अपमित्ययाचिताभ्यां कक्कनौ ॥ ४,४.२१ ॥ संसृष्टे ॥ ४,४.२२ ॥ चूर्णादिनिः ॥ ४,४.२३ ॥ लवणाल्लुक् ॥ ४,४.२४ ॥ मुद्गादण् ॥ ४,४.२५ ॥ व्यञ्जनैरुपसिक्ते ॥ ४,४.२६ ॥ ओजःसहोऽम्भसा वर्तते ॥ ४,४.२७ ॥ तत्प्रत्यनुपूर्वमीपलोमकूलम् ॥ ४,४.२८ ॥ परिमुखं च ॥ ४,४.२९ ॥ प्रयच्छति गर्ह्यम् ॥ ४,४.३० ॥ कुसीददशैकादशात्ष्ठन्ष्ठचौ ॥ ४,४.३१ ॥ उच्छति ॥ ४,४.३२ ॥ रक्षति ॥ ४,४.३३ ॥ शब्ददर्दुरं करोति ॥ ४,४.३४ ॥ पक्षिमत्स्यमृगान् हन्ति ॥ ४,४.३५ ॥ परिपन्थं च तिष्ठति ॥ ४,४.३६ ॥ माथोत्तरपदपदव्यनुपदं धावति ॥ ४,४.३७ ॥ आक्रन्दाट्ठञ्च ॥ ४,४.३८ ॥ पदोत्तरपदं गृह्णाति ॥ ४,४.३९ ॥ प्रतिकण्ठार्थललामं च ॥ ४,४.४० ॥ धर्मं चरति ॥ ४,४.४१ ॥ प्रतिपथमेति ठंश्च ॥ ४,४.४२ ॥ समवायान् समवैति ॥ ४,४.४३ ॥ परिषदो ण्यः ॥ ४,४.४४ ॥ सेनाया वा ॥ ४,४.४५ ॥ सञ्ज्ञायां ललाटकुक्कुट्यौ पश्यति ॥ ४,४.४६ ॥ तस्य धर्म्यम् ॥ ४,४.४७ ॥ अण्महिष्यादिभ्यः ॥ ४,४.४८ ॥ ऋतोऽञ् ॥ ४,४.४९ ॥ अवक्रयः ॥ ४,४.५० ॥ तदस्य पण्यम् ॥ ४,४.५१ ॥ लवणाट्ठञ् ॥ ४,४.५२ ॥ किशरादिभ्यः ष्ठन् ॥ ४,४.५३ ॥ शलालुनोऽन्यतरस्याम् ॥ ४,४.५४ ॥ शिल्पम् ॥ ४,४.५५ ॥ मड्डुकझर्झरादणन्यतरस्याम् ॥ ४,४.५६ ॥ प्रहरणम् ॥ ४,४.५७ ॥ परश्वधाट्ठञ्च ॥ ४,४.५८ ॥ शक्तियष्ट्योरीकक् ॥ ४,४.५९ ॥ अस्तिनास्तिदिष्टं मतिः ॥ ४,४.६० ॥ शीलं ॥ ४,४.६१ ॥ छत्रादिभ्यो णः ॥ ४,४.६२ ॥ कर्माध्ययने वृत्तम् ॥ ४,४.६३ ॥ बह्वच्पूर्वपदाट्ठच् ॥ ४,४.६४ ॥ हितं भक्षाः ॥ ४,४.६५ ॥ त दस्मै दीयते नियुक्तम् ॥ ४,४.६६ ॥ श्राणामांसौदनाट्टिठन् ॥ ४,४.६७ ॥ भक्टादणान्यतरस्याम् ॥ ४,४.६८ ॥ तत्र नियुक्तः ॥ ४,४.६९ ॥ अगारान्ताट्ठन् ॥ ४,४.७० ॥ अध्यायिन्यदेशकालात् ॥ ४,४.७१ ॥ कठिनान्तप्रस्तारसंस्थानेषु व्यवहरति ॥ ४,४.७२ ॥ निकटे वसति ॥ ४,४.७३ ॥ आवसथात्ष्ठल् ॥ ४,४.७४ ॥ प्राग्घिताद्यत् ॥ ४,४.७५ ॥ तद्वहति रथयुगप्रासङ्गम् ॥ ४,४.७६ ॥ धुरो यड्ढकौ ॥ ४,४.७७ ॥ खः सर्वधुरात् ॥ ४,४.७८ ॥ एकधुराल्लुक्च ॥ ४,४.७९ ॥ शकटादण् ॥ ४,४.८० ॥ हलसीराट्ठक् ॥ ४,४.८१ ॥ सञ्ज्ञायां जन्याः ॥ ४,४.८२ ॥ विध्यत्यधनुषा ॥ ४,४.८३ ॥ धनगणं लब्धा ॥ ४,४.८४ ॥ अन्नाण्णः ॥ ४,४.८५ ॥ वशं गतः ॥ ४,४.८६ ॥ पदमस्मिन् दृश्यम् ॥ ४,४.८७ ॥ मूलमस्य आवर्हि ॥ ४,४.८८ ॥ सञ्ज्ञायां धेनुष्या ॥ ४,४.८९ ॥ गृहपतिना संयुक्ते ञ्यः ॥ ४,४.९० ॥ नौवयोधर्मविषमूलमूलसीतातुलाभ्यस्तार्यतुल्यप्राप्यवध्यानाम्यसमसमितसंमितेषु ॥ ४,४.९१ ॥ धर्मपथ्यर्थन्यायादनपेते ॥ ४,४.९२ ॥ छन्दसो निर्मिते ॥ ४,४.९३ ॥ उरसोऽण्च ॥ ४,४.९४ ॥ हृदयस्य प्रियः ॥ ४,४.९५ ॥ बन्धने चर्षौ ॥ ४,४.९६ ॥ मतजनहलात्करणजल्पकर्षेषु ॥ ४,४.९७ ॥ तत्र साधुः ॥ ४,४.९८ ॥ प्रतिजनादिभ्यः खञ् ॥ ४,४.९९ ॥ भक्ताण्णः ॥ ४,४.१०० ॥ परिषदो ण्यः ॥ ४,४.१०१ ॥ कथादिभ्यष्ठक् ॥ ४,४.१०२ ॥ गुडादिभ्यष्ठञ् ॥ ४,४.१०३ ॥ पथ्यतिथिवसतिस्वपतेर्ढञ् ॥ ४,४.१०४ ॥ सभायाः यः ॥ ४,४.१०५ ॥ ढश्छन्दसि ॥ ४,४.१०६ ॥ समानातीर्थे वासी ॥ ४,४.१०७ ॥ समानोदरे शयित ओ चोदात्तः ॥ ४,४.१०८ ॥ सोदराद्यः ॥ ४,४.१०९ ॥ भवे छन्दसि ॥ ४,४.११० ॥ पाथोनदीभ्यां ड्यण् ॥ ४,४.१११ ॥ वेशन्तहिमवद्भ्यामण् ॥ ४,४.११२ ॥ स्रोतसो विभाषा ड्यड्ड्यौ ॥ ४,४.११३ ॥ सगर्भसयूथसनुताद्यन् ॥ ४,४.११४ ॥ तुग्राद्घन् ॥ ४,४.११५ ॥ अग्राद्यत् ॥ ४,४.११६ ॥ घच्छौ च ॥ ४,४.११७ ॥ समुद्राभ्राद्घः ॥ ४,४.११८ ॥ बर्हिषि दत्तम् ॥ ४,४.११९ ॥ दुतस्य भागकर्मणी ॥ ४,४.१२० ॥ रक्षोयातूनां हननी ॥ ४,४.१२१ ॥ रेवतीजगतीहविष्याभ्यः प्रशस्ये ॥ ४,४.१२२ ॥ असुरस्य स्वम् ॥ ४,४.१२३ ॥ मायायामण् ॥ ४,४.१२४ ॥ तद्वानासामुपधानो मन्त्र इति इष्टकासु लुक्च मतोः ॥ ४,४.१२५ ॥ अश्विमानण् ॥ ४,४.१२६ ॥ वयस्यासु मूर्ध्नो मतुप् ॥ ४,४.१२७ ॥ मत्वर्हे मासतन्वोः ॥ ४,४.१२८ ॥ मधोर्ञ च ॥ ४,४.१२९ ॥ ओजसोऽहनि यत्खौ ॥ ४,४.१३० ॥ वेशोयशादेर्भगाद्यल् ॥ ४,४.१३१ ॥ ख च ॥ ४,४.१३२ ॥ पूर्वैः कृतमिनयौ च ॥ ४,४.१३३ ॥ अद्भिः संस्कृतम् ॥ ४,४.१३४ ॥ सहस्रेण संमितौ घः ॥ ४,४.१३५ ॥ मतौ च ॥ ४,४.१३६ ॥ सोममर्हति यः ॥ ४,४.१३७ ॥ मये च ॥ ४,४.१३८ ॥ मधोः ॥ ४,४.१३९ ॥ वसोः समूहे च ॥ ४,४.१४० ॥ नक्षत्राद्घः ॥ ४,४.१४१ ॥ सर्वदेवात्तातिल् ॥ ४,४.१४२ ॥ शिवशमरिष्टस्य करे ॥ ४,४.१४३ ॥ भावे च ॥ ४,४.१४४ ॥ प्राक्क्रीताच्छः ॥ ५,१.१ ॥ उगवादिभ्यो यत् ॥ ५,१.२ ॥ कंवलाच्च सञ्ज्ञायाम् ॥ ५,१.३ ॥ विभाषा हविरपूपादिभ्यः ॥ ५,१.४ ॥ तस्मै हितम् ॥ ५,१.५ ॥ शरीरावयवाद्यत् ॥ ५,१.६ ॥ खलयवमाषतिलवृषब्रह्मणश्च ॥ ५,१.७ ॥ अजाविभ्यां थ्यन् ॥ ५,१.८ ॥ आत्मन्विश्वजनभोगोत्तरपदात्खः ॥ ५,१.९ ॥ सर्वपुरुषाभ्यां णढञौ ॥ ५,१.१० ॥ माणवचरकाभ्यां खञ् ॥ ५,१.११ ॥ तदर्थं विकृतेः प्रकृतौ ॥ ५,१.१२ ॥ छदिरुपधिबलेर्ढञ् ॥ ५,१.१३ ॥ ऋषभोपानहोर्ञ्यः ॥ ५,१.१४ ॥ चर्मणोऽञ् ॥ ५,१.१५ ॥ तदस्य तदस्मिन् स्यादिति ॥ ५,१.१६ ॥ परिखाया ठञ् ॥ ५,१.१७ ॥ प्राग्वतेष्ठञ् ॥ ५,१.१८ ॥ आर्हादगोपुच्छसङ्ख्यापरिमाणाट्ठक् ॥ ५,१.१९ ॥ असमासे निष्कादिभ्यः ॥ ५,१.२० ॥ शताच्च ठन्यतावशते ॥ ५,१.२१ ॥ सङ्ख्याया अतिशदन्तायाः कन् ॥ ५,१.२२ ॥ वतोरिड्वा ॥ ५,१.२३ ॥ विंशतित्रिंशद्भ्यां ड्वुनसञ्ज्ञायाम् ॥ ५,१.२४ ॥ कंसाट्टिठण् ॥ ५,१.२५ ॥ शूर्पादञन्यतरस्याम् ॥ ५,१.२६ ॥ शतमानविंशतिकसहस्रवसनादण् ॥ ५,१.२७ ॥ अध्यर्धपूर्वद्विगोर्लुगसञ्ज्ञायाम् ॥ ५,१.२८ ॥ विभाषा कार्षापणसहस्राभ्याम् ॥ ५,१.२९ ॥ द्वित्रिपूर्वान्निष्कात् ॥ ५,१.३० ॥ बिस्ताच्च ॥ ५,१.३१ ॥ विंशतिकात्खः ॥ ५,१.३२ ॥ खार्या ईकन् ॥ ५,१.३३ ॥ पणपादमाषशताद्यत् ॥ ५,१.३४ ॥ शाणाद्वा ॥ ५,१.३५ ॥ द्वित्रिपूर्वादण्च ॥ ५,१.३६ ॥ तेन क्रीतम् ॥ ५,१.३७ ॥ तस्य निमित्तं संयोगोत्पातौ ॥ ५,१.३८ ॥ गोद्व्यचोऽसङ्ख्यापरिमाणाश्वादेर्यत् ॥ ५,१.३९ ॥ पुत्राच्छ च ॥ ५,१.४० ॥ सर्वभूमिपृथिवीभ्यामणञौ ॥ ५,१.४१ ॥ तस्य+ईश्वरः ॥ ५,१.४२ ॥ तत्र विदित इति च ॥ ५,१.४३ ॥ लोकसर्वलोकाट्ठञ् ॥ ५,१.४४ ॥ तस्य वापः ॥ ५,१.४५ ॥ पात्रात्ष्ठन् ॥ ५,१.४६ ॥ तदस्मिन् वृद्ध्यायलाभशुल्कोपदा दीयते ॥ ५,१.४७ ॥ पूरणार्धाट्ठन् ॥ ५,१.४८ ॥ भागाद्यच्च ॥ ५,१.४९ ॥ तद्धरति वहव्त्यावहति भाराद्वंशादिभ्यः ॥ ५,१.५० ॥ वस्नद्रव्याभ्यां ठन्कनौ ॥ ५,१.५१ ॥ सम्भवत्यवहरति पचति ॥ ५,१.५२ ॥ आढकाचितपात्रात्खोऽन्यतरस्याम् ॥ ५,१.५३ ॥ द्विगोः ष्ठंश्च ॥ ५,१.५४ ॥ कुलिजाल्लुक्खौ च ॥ ५,१.५५ ॥ सोऽस्यांशवस्नभृतयः ॥ ५,१.५६ ॥ तदस्य परिमाणम् ॥ ५,१.५७ ॥ सङ्ख्यायाः सञ्ज्ञासङ्घसूत्राध्ययनेषु ॥ ५,१.५८ ॥ पङ्क्तिविंशतित्रिंशच्चत्वारिंशत्पञ्चाशत्षष्टिसप्तत्यशीतिनवतिशतम् ॥ ५,१.५९ ॥ पञ्चद्दशतौ वर्गे वा ॥ ५,१.६० ॥ सप्तनोऽञ्छन्दसि ॥ ५,१.६१ ॥ त्रिंशच्चत्वारिंशतोर्ब्राह्मणे सञ्ज्ञायां डण् ॥ ५,१.६२ ॥ तदर्हति ॥ ५,१.६३ ॥ छेदादिभ्यो नित्यम् ॥ ५,१.६४ ॥ शीर्षच्छेदाद्यच्च ॥ ५,१.६५ ॥ दण्दादिभ्यः ॥ ५,१.६६ ॥ छन्दसि च ॥ ५,१.६७ ॥ पात्राद्घंश्च ॥ ५,१.६८ ॥ कडङ्करदक्षिणाच्छ च ॥ ५,१.६९ ॥ स्थालीबिलात् ॥ ५,१.७० ॥ यज्ञर्त्विग्भ्यां घखञौ ॥ ५,१.७१ ॥ पारायणतुरायणचाद्न्रायणं वर्तयति ॥ ५,१.७२ ॥ संशयमापन्नः ॥ ५,१.७३ ॥ योजनं गच्छति ॥ ५,१.७४ ॥ पथः ष्कन् ॥ ५,१.७५ ॥ पन्थो ण नित्यम् ॥ ५,१.७६ ॥ उत्तरपथेनाहृतं च ॥ ५,१.७७ ॥ कालात् ॥ ५,१.७८ ॥ तेन विर्वृत्तम् ॥ ५,१.७९ ॥ तमधीष्टो भृतो भूतो भावी ॥ ५,१.८० ॥ मासाद्वयसि यत्खञौ ॥ ५,१.८१ ॥ द्विगोर्यप् ॥ ५,१.८२ ॥ षण्मासाण्ण्यच्च ॥ ५,१.८३ ॥ अवयसि ठंश्च ॥ ५,१.८४ ॥ समायाः खः ॥ ५,१.८५ ॥ द्विगोर्वा ॥ ५,१.८६ ॥ रात्र्यहःसंवत्सराच्च ॥ ५,१.८७ ॥ वर्षाल्लुक्च ॥ ५,१.८८ ॥ चित्तवति नित्यम् ॥ ५,१.८९ ॥ षष्टिकाः षष्टिरात्रेण पच्यन्ते ॥ ५,१.९० ॥ वत्सरान्ताच्छश्छन्दसि ॥ ५,१.९१ ॥ संपरिपूर्वात्ख च ॥ ५,१.९२ ॥ तेन परिजय्यलभ्यकार्यसुकरम् ॥ ५,१.९३ ॥ तदस्य ब्रह्मचर्यम् ॥ ५,१.९४ ॥ तस्य च दक्षिणा यज्ञाख्येभ्यः ॥ ५,१.९५ ॥ तत्र च दीयते कार्यं भववत् ॥ ५,१.९६ ॥ व्युष्टादिभ्योऽण् ॥ ५,१.९७ ॥ तेन यथाकथाचहस्ताभ्यां णयतौ ॥ ५,१.९८ ॥ सम्पादिनि ॥ ५,१.९९ ॥ कर्मवेषाद्यत् ॥ ५,१.१०० ॥ तस्मै प्रथवति सन्तापादिभ्याः ॥ ५,१.१०१ ॥ योगाद्यच्च ॥ ५,१.१०२ ॥ कर्मण उकञ् ॥ ५,१.१०३ ॥ समयस्तदस्य प्राप्तम् ॥ ५,१.१०४ ॥ ऋतोरण् ॥ ५,१.१०५ ॥ छन्दसि घस् ॥ ५,१.१०६ ॥ कालाद्यत् ॥ ५,१.१०७ ॥ प्रकृष्टे ठञ् ॥ ५,१.१०८ ॥ प्रयोजनम् ॥ ५,१.१०९ ॥ विशाखाषाढादण्मन्थदण्डयोः ॥ ५,१.११० ॥ अनुप्रवचनादिभ्यश्छः ॥ ५,१.१११ ॥ समापनात्सपूर्वपदात् ॥ ५,१.११२ ॥ ऐकागारिकट्चौरे ॥ ५,१.११३ ॥ आकालिकडाद्यन्तवचने ॥ ५,१.११४ ॥ तेन तुल्यं क्रिया चेद्वतिः ॥ ५,१.११५ ॥ तत्र तस्य+इव ॥ ५,१.११६ ॥ तदर्हम् ॥ ५,१.११७ ॥ उपसर्गाच्छन्दसि धात्वर्थे ॥ ५,१.११८ ॥ तस्य भावस्त्वतलौ ॥ ५,१.११९ ॥ आ च त्वात् ॥ ५,१.१२० ॥ न नञ्पूर्वात्तत्पुरुषादचतुरसङ्गतलवणवटबुधकतरसलसेभ्यः ॥ ५,१.१२१ ॥ पृथ्वादिभ्य इमनिज्वा ॥ ५,१.१२२ ॥ वर्णदृढादिभ्यः ष्यञ्च ॥ ५,१.१२३ ॥ गुणवचनब्राह्मणादिभ्यः कर्मणि च ॥ ५,१.१२४ ॥ स्तोनाद्यन्नलोपश्च ॥ ५,१.१२५ ॥ सख्युर्यः ॥ ५,१.१२६ ॥ कपिज्ञात्योर्ढक् ॥ ५,१.१२७ ॥ पत्यन्तपुरोहितादिभ्यो यक् ॥ ५,१.१२८ ॥ प्राणभृज्जातिवयोवचनोद्गात्रादिभ्योऽञ् ॥ ५,१.१२९ ॥ हायनान्तयुवादिभ्योऽण् ॥ ५,१.१३० ॥ इगन्ताश्च लघुपूर्वात् ॥ ५,१.१३१ ॥ योपधाद्गुरूपोत्तमाद्वुञ् ॥ ५,१.१३२ ॥ द्वन्द्वमनोज्ञादिभ्यश्च ॥ ५,१.१३३ ॥ गोत्रचरणाच्छ्लाघात्याकारतदवेतेषु ॥ ५,१.१३४ ॥ होत्राभ्यश्छः ॥ ५,१.१३५ ॥ ब्रह्मणस्त्वः ॥ ५,१.१३६ ॥ धान्यानां भवने क्षेत्रे खञ् ॥ ५,२.१ ॥ व्रीहिशाल्योर्ढक् ॥ ५,२.२ ॥ यवयवकषष्टिकाद्यत् ॥ ५,२.३ ॥ विभाषा तिलमाषोमाभङ्गाणुभ्यः ॥ ५,२.४ ॥ सर्वचर्मणः कृतः खखञौ ॥ ५,२.५ ॥ यथामुखसम्मुखस्य दर्शनः खः ॥ ५,२.६ ॥ तत्सर्वादेः पथ्यङ्गकर्मपत्रपात्रं व्याप्नोति ॥ ५,२.७ ॥ आप्रपदं प्राप्नोति ॥ ५,२.८ ॥ अनुपदसर्वान्नायानयं बद्धाभक्षयतिनेयेषु ॥ ५,२.९ ॥ परोवरपरम्परपुत्रपौत्रमनुभवति ॥ ५,२.१० ॥ अवारपारात्यन्तानुकामं गामी ॥ ५,२.११ ॥ समांसमां विजायते ॥ ५,२.१२ ॥ अद्यश्वीना अवष्टब्धे ॥ ५,२.१३ ॥ आगवीनः ॥ ५,२.१४ ॥ अनुग्वलङ्गामी ॥ ५,२.१५ ॥ अध्वनो यत्खौ ॥ ५,२.१६ ॥ अभ्यमित्राच्छ च ॥ ५,२.१७ ॥ गोष्ठात्खञ्भूतपूर्वे ॥ ५,२.१८ ॥ अश्वस्यैकाहगमः ॥ ५,२.१९ ॥ शालीनकौपीने अधृष्टाकार्ययोः ॥ ५,२.२० ॥ व्रातेन जीवति ॥ ५,२.२१ ॥ साप्तपदीनं सख्यम् ॥ ५,२.२२ ॥ हैयङ्गवीनं सञ्ज्ञायाम् ॥ ५,२.२३ ॥ तस्य पाकमूले पील्वदिकर्णादिभ्यः कुणब्जाहचौ ॥ ५,२.२४ ॥ पक्षात्तिः ॥ ५,२.२५ ॥ तेन वित्तश्चुञ्चुप्चणपौ ॥ ५,२.२६ ॥ विनञ्भ्यां नानाञौ नसह ॥ ५,२.२७ ॥ वेः शालच्छङ्कटचौ ॥ ५,२.२८ ॥ संप्रोदश्च कटच् ॥ ५,२.२९ ॥ अवात्कुटारच्च ॥ ५,२.३० ॥ नते नासिकायाः सञ्ज्ञायां टीटञ्नाटज्भ्रटचः ॥ ५,२.३१ ॥ नेर्बिडज्बिरीसचौ ॥ ५,२.३२ ॥ इनच्पिटच्चिक चि च ॥ ५,२.३३ ॥ उपाधिभ्यां त्यकन्नासन्नारूढयोः ॥ ५,२.३४ ॥ कर्मणि घटोऽठच् ॥ ५,२.३५ ॥ तदस्य सञ्जातं तारकादिभ्य इतच् ॥ ५,२.३६ ॥ प्रमाणे द्वयसज्दघ्नञ्मात्रचः ॥ ५,२.३७ ॥ पुरुषहस्तिभ्यामण्च ॥ ५,२.३८ ॥ यत्तदेतेभ्यः परिमाणे वतुप् ॥ ५,२.३९ ॥ किमिदम्भ्यां वो घः ॥ ५,२.४० ॥ किमः सङ्ख्यापरिमाणे डति च ॥ ५,२.४१ ॥ सङ्ख्याया अवयवे तयप् ॥ ५,२.४२ ॥ द्वित्रिभ्यां तयस्यायज्वा ॥ ५,२.४३ ॥ उभादुदात्तो नित्यम् ॥ ५,२.४४ ॥ तदस्मिन्नधिकमिति दशान्ताड्डः ॥ ५,२.४५ ॥ शदन्तविंशतेश्च ॥ ५,२.४६ ॥ सङ्ख्याया गुणस्य निमाने मयट् ॥ ५,२.४७ ॥ तस्य पूरणे डट् ॥ ५,२.४८ ॥ नान्तादसङ्ख्यादेर्मट् ॥ ५,२.४९ ॥ थट्च छन्दसि ॥ ५,२.५० ॥ षट्कतिकतिपयचतुरां थुक् ॥ ५,२.५१ ॥ बहुपूगगणसङ्घस्य तिथुक् ॥ ५,२.५२ ॥ वतोरिथुक् ॥ ५,२.५३ ॥ द्वेस्तीयः ॥ ५,२.५४ ॥ त्रेः सम्प्रसारणं च ॥ ५,२.५५ ॥ विंशत्यादिभ्यस्तमडन्यतरस्याम् ॥ ५,२.५६ ॥ नित्यं शतादिमासार्धमाससंवत्सराच्च ॥ ५,२.५७ ॥ षष्ट्यादेश्चासङ्ख्यादेः ॥ ५,२.५८ ॥ मतौ छः सूक्तसाम्नोः ॥ ५,२.५९ ॥ अध्यायानुवाकयोर्लुक् ॥ ५,२.६० ॥ विमुक्तादिभ्योऽण् ॥ ५,२.६१ ॥ गोषदादिभ्यो वुन् ॥ ५,२.६२ ॥ तत्र कुशलः पथः ॥ ५,२.६३ ॥ आकर्शादिभ्यः कन् ॥ ५,२.६४ ॥ धनहिरण्यात्कामे ॥ ५,२.६५ ॥ स्वाङ्गेभ्यः प्रसिते ॥ ५,२.६६ ॥ उदराट्ठगाद्यूने ॥ ५,२.६७ ॥ सस्येन परिजातः ॥ ५,२.६८ ॥ अंशं हारि ॥ ५,२.६९ ॥ तन्त्रादचिरापहृते ॥ ५,२.७० ॥ ब्राह्मणकोष्णिके सञ्ज्ञायाम् ॥ ५,२.७१ ॥ शीतोष्णाभ्यां कारिणि ॥ ५,२.७२ ॥ अधिकम् ॥ ५,२.७३ ॥ अनुकाभिकाभीकः कमिता ॥ ५,२.७४ ॥ पार्श्वेनान्विच्छति ॥ ५,२.७५ ॥ अयःशूलदण्डाजिनाभ्यां ठक्ठञौ ॥ ५,२.७६ ॥ तावतिथं ग्रहणमिति लुग्वा ॥ ५,२.७७ ॥ स एषां ग्रामणीः ॥ ५,२.७८ ॥ शृङ्खलमस्य बन्धनं करभे ॥ ५,२.७९ ॥ उत्क उनमनाः ॥ ५,२.८० ॥ कालप्रयोजनाद्रोगे ॥ ५,२.८१ ॥ तदस्मिन्नन्नं प्राये सञ्ज्ञायाम् ॥ ५,२.८२ ॥ कुल्माषादञ् ॥ ५,२.८३ ॥ श्रोत्रियं श्छन्दोऽधीते ॥ ५,२.८४ ॥ श्राद्धमनेनन् भुक्तमिनिठनौ ॥ ५,२.८५ ॥ पूर्वादिनिः ॥ ५,२.८६ ॥ सपूर्वाच्च ॥ ५,२.८७ ॥ इष्टादिभ्यश्च ॥ ५,२.८८ ॥ छन्दसि परिपन्थिपरिपरिणौ पर्यवस्थातरि ॥ ५,२.८९ ॥ अनुपद्यन्वेष्टा ॥ ५,२.९० ॥ साक्षाद्द्रष्टरि सञ्ज्ञायाम् ॥ ५,२.९१ ॥ क्षेत्रियच्परक्षेत्रे चिकित्स्यः ॥ ५,२.९२ ॥ इन्द्रियमिन्द्रलिङ्गमिन्द्रदृष्टमिन्द्रसृष्टमिन्द्रजुष्टमिन्द्रदत्तमिति वा ॥ ५,२.९३ ॥ तदस्यास्त्यस्मिन्निति मतुप् ॥ ५,२.९४ ॥ रसादिभ्यश्च ॥ ५,२.९५ ॥ प्राणिस्थादातो लजन्यतरस्याम् ॥ ५,२.९६ ॥ सिध्मादिभ्यश्च ॥ ५,२.९७ ॥ वत्सांसाभ्यां कामबले ॥ ५,२.९८ ॥ फेनादिलच्च ॥ ५,२.९९ ॥ लोमादिपामादिपिच्छादिभ्यः शनेलचः ॥ ५,२.१०० ॥ प्रज्ञाश्रद्धार्चावृत्तिभ्यो णः ॥ ५,२.१०१ ॥ तपःसहस्राभ्यां विनीनी ॥ ५,२.१०२ ॥ अण्च ॥ ५,२.१०३ ॥ सिकताशर्कराभ्यां च ॥ ५,२.१०४ ॥ देशे लुबिलचौ च ॥ ५,२.१०५ ॥ दन्त उन्नत उरच् ॥ ५,२.१०६ ॥ ऊषसुषिमुष्कमधो रः ॥ ५,२.१०७ ॥ द्युद्रुभ्यां मः ॥ ५,२.१०८ ॥ केशाद्वोऽन्यतरस्याम् ॥ ५,२.१०९ ॥ गाण्ड्यजगात्सञ्ज्ञायाम् ॥ ५,२.११० ॥ काण्डाण्डादीरन्नीरचौ ॥ ५,२.१११ ॥ रजःकृष्यासुतिपरिषदो वलच् ॥ ५,२.११२ ॥ दन्तशिखात्सञ्ज्ञायाम् ॥ ५,२.११३ ॥ ज्योत्स्नातमिस्राशृङ्गिणोर्जस्विन्नूर्जस्वलगोमिन्मलिनमलीमसाः ॥ ५,२.११४ ॥ अत इनिठनौ ॥ ५,२.११५ ॥ व्रीह्यादिभ्यश्च ॥ ५,२.११६ ॥ तुन्दादिभ्य इलच्च ॥ ५,२.११७ ॥ एकगोपूर्वाट्ठञ्नित्यम् ॥ ५,२.११८ ॥ शतसहस्रान्ताच्च निष्कात् ॥ ५,२.११९ ॥ रूपादाहतप्रशंसयोर्यप् ॥ ५,२.१२० ॥ अस्मायामेधास्रजो विनिः ॥ ५,२.१२१ ॥ बहुलं छन्दसि ॥ ५,२.१२२ ॥ ऊर्णाया युस् ॥ ५,२.१२३ ॥ वाचो ग्मिनिः ॥ ५,२.१२४ ॥ आलजाटचौ बहुभाषिणि ॥ ५,२.१२५ ॥ स्वामिन्नैश्वर्ये ॥ ५,२.१२६ ॥ अर्शादिभ्योऽच् ॥ ५,२.१२७ ॥ द्वन्द्वोपतापगर्ह्यात्प्राणिस्थादिनिः ॥ ५,२.१२८ ॥ वातातिसाराभ्यां कुक्च ॥ ५,२.१२९ ॥ वयसि पूरणात् ॥ ५,२.१३० ॥ सुखादिभ्यश्च ॥ ५,२.१३१ ॥ धर्मशीलवर्णान्ताच्च ॥ ५,२.१३२ ॥ हस्ताज्जातौ ॥ ५,२.१३३ ॥ वर्णाद्ब्राह्मचारिणि ॥ ५,२.१३४ ॥ पुष्करादिभ्यो देशे ॥ ५,२.१३५ ॥ बलादिभ्यो मतुबन्यतरस्याम् ॥ ५,२.१३६ ॥ सञ्ज्ञायां मन्माभ्याम् ॥ ५,२.१३७ ॥ कंशंभ्यां बभयुस्तितुतयसः ॥ ५,२.१३८ ॥ तुन्दिबलिवटेर्भः ॥ ५,२.१३९ ॥ अहंशुभमोर्युस् ॥ ५,२.१४० ॥ प्राग्दिशो विभक्तिः ॥ ५,३.१ ॥ किंसर्वनामबहुभ्योऽद्व्यादिभ्यः ॥ ५,३.२ ॥ इदमिश् ॥ ५,३.३ ॥ एतेतौ रथोः ॥ ५,३.४ ॥ एतदोऽश् ॥ ५,३.५ ॥ सर्वस्य सोऽन्यतरस्यां दि ॥ ५,३.६ ॥ पञ्चम्यास्तसिल् ॥ ५,३.७ ॥ तसेश्च ॥ ५,३.८ ॥ पर्यभिभ्यां च ॥ ५,३.९ ॥ सप्तम्यास्त्रल् ॥ ५,३.१० ॥ इदमो हः ॥ ५,३.११ ॥ किमोऽत् ॥ ५,३.१२ ॥ वा ह च च्छन्दसि ॥ ५,३.१३ ॥ इतराभ्ह्योऽपि दृश्यन्ते ॥ ५,३.१४ ॥ सर्वैकान्यकिंयत्तदः काले दा ॥ ५,३.१५ ॥ इदमो र्हिल् ॥ ५,३.१६ ॥ अधुना ॥ ५,३.१७ ॥ दानीं च ॥ ५,३.१८ ॥ तदो दा च ॥ ५,३.१९ ॥ तयोर्दार्हिलौ च छन्दसि ॥ ५,३.२० ॥ अनद्यतने र्हिलन्यतरस्याम् ॥ ५,३.२१ ॥ सद्यः परुत्परार्यौषमः परेद्यव्यद्यपूर्वेद्युरन्येद्युरन्यतरेद्युरितरेद्युरपरेद्युरधरेद्युरुभयेद्युरुत्तरेद्युः ॥ ५,३.२२ ॥ प्रकारवचने थाल् ॥ ५,३.२३ ॥ इदमस्थमुः ॥ ५,३.२४ ॥ किमश्च ॥ ५,३.२५ ॥ था हेतौ च च्छन्दसि ॥ ५,३.२६ ॥ दिक्शब्देभ्यः सप्तमीपञ्चमीप्रथमाभ्यो दिग्देशकालेष्वस्तातिः ॥ ५,३.२७ ॥ दिक्षिणोत्तराभ्यामतसुच् ॥ ५,३.२८ ॥ विभाषा परावराभ्याम् ॥ ५,३.२९ ॥ अञ्चेर्लुक् ॥ ५,३.३० ॥ उपर्युपरिष्टात् ॥ ५,३.३१ ॥ पश्चात् ॥ ५,३.३२ ॥ पश्च पश्चा च छन्दसि ॥ ५,३.३३ ॥ उत्तराधरदक्षिणादातिः ॥ ५,३.३४ ॥ एनवन्यतरस्यामदूरेऽपञ्चम्याः ॥ ५,३.३५ ॥ दक्षिणादाच् ॥ ५,३.३६ ॥ आहि च दूरे ॥ ५,३.३७ ॥ उत्तराच्च ॥ ५,३.३८ ॥ पूर्वाधरावरानामसि पुरद्ःवश्च+एषाम् ॥ ५,३.३९ ॥ अस्ताति च ॥ ५,३.४० ॥ विभाषाऽवरस्य ॥ ५,३.४१ ॥ सङ्ख्याया विधार्थे धा ॥ ५,३.४२ ॥ अधिकरणविचाले च ॥ ५,३.४३ ॥ एकाद्धो द्यमुञन्यतरस्याम् ॥ ५,३.४४ ॥ द्वित्र्योश्च धमुञ् ॥ ५,३.४५ ॥ एधाच्च ॥ ५,३.४६ ॥ याप्ये पाशप् ॥ ५,३.४७ ॥ पूरणाद्भागे तीयादन् ॥ ५,३.४८ ॥ प्रागेकादशभ्योऽच्छन्दसि ॥ ५,३.४९ ॥ षष्ठाष्टमाभ्यां ञ च ॥ ५,३.५० ॥ मानपश्वङ्गयोः कन्लुकौ च ॥ ५,३.५१ ॥ एकादाकिनिच्चासहाये ॥ ५,३.५२ ॥ भूतपूर्वे चरट् ॥ ५,३.५३ ॥ षष्ठ्या रूप्य च ॥ ५,३.५४ ॥ अतिशायने तमबिष्ठनौ ॥ ५,३.५५ ॥ तिङश्च ॥ ५,३.५६ ॥ द्विवचनविभज्योपपदे तरबीयसुनौ ॥ ५,३.५७ ॥ अजादि गुणवचनादेव ॥ ५,३.५८ ॥ तुश्छन्दसि ॥ ५,३.५९ ॥ प्रशस्यस्य श्रः ॥ ५,३.६० ॥ ज्य च ॥ ५,३.६१ ॥ वृद्धस्य च ॥ ५,३.६२ ॥ अन्तिकबाढयोर्नेदसाधौ ॥ ५,३.६३ ॥ युवाल्पयोः कनन्यतरस्याम् ॥ ५,३.६४ ॥ विन्मतोर्लुक् ॥ ५,३.६५ ॥ प्रशंसायां रूपप् ॥ ५,३.६६ ॥ ईषदसमाप्तौ कल्पब्देश्यदेशीयरः ॥ ५,३.६७ ॥ विभाषा सुपो बहुच्परस्तात्तु ॥ ५,३.६८ ॥ प्रकारवचने जातीयर् ॥ ५,३.६९ ॥ प्रागिवात्कः ॥ ५,३.७० ॥ अव्ययसर्वनाम्नामकच्प्राक्टेः ॥ ५,३.७१ ॥ कस्य च दः ॥ ५,३.७२ ॥ अज्ञाते ॥ ५,३.७३ ॥ कुत्सिते ॥ ५,३.७४ ॥ सञ्ज्ञायां कन् ॥ ५,३.७५ ॥ अनुअम्पायाम् ॥ ५,३.७६ ॥ नीतौ च तद्युक्तात् ॥ ५,३.७७ ॥ बह्वचो मनुस्यनाम्नष्ठज्वा ॥ ५,३.७८ ॥ घनिलचौ च ॥ ५,३.७९ ॥ प्राचामुपादेरडज्वुचौ च ॥ ५,३.८० ॥ जातिनाम्नः कन् ॥ ५,३.८१ ॥ अजिनान्तस्य+उत्तरपदलोपश्च ॥ ५,३.८२ ॥ ठाजादावूर्ध्वं द्वितीयादचः ॥ ५,३.८३ ॥ शेवलसुपरिविशालावरुणार्यमादिनां तृतीयात् ॥ ५,३.८४ ॥ अल्पे ॥ ५,३.८५ ॥ ह्रस्वे ॥ ५,३.८६ ॥ सञ्ज्ञायां कन् ॥ ५,३.८७ ॥ कुटीशमीशुण्डाभ्यो रः ॥ ५,३.८८ ॥ कुत्वा डुपच् ॥ ५,३.८९ ॥ कासूगोणीभ्यां ष्टरच् ॥ ५,३.९० ॥ वत्सोक्षाश्वर्षभेभ्यश्च तनुत्वे ॥ ५,३.९१ ॥ किंयत्तदो निर्धारणे द्वयोरेकस्य डतरच् ॥ ५,३.९२ ॥ वा बहूनां जातिपरिप्रश्नो डतमच् ॥ ५,३.९३ ॥ एकाच्च प्राचाम् ॥ ५,३.९४ ॥ अवक्षेपणे कन् ॥ ५,३.९५ ॥ इवे प्रतिकृतौ ॥ ५,३.९६ ॥ सञ्ज्ञायां च ॥ ५,३.९७ ॥ लुम्मनुस्ये ॥ ५,३.९८ ॥ जीविकार्थे चापण्ये ॥ ५,३.९९ ॥ देवपथादिभ्यश्च ॥ ५,३.१०० ॥ वस्तेर्धञ् ॥ ५,३.१०१ ॥ शिलाया ढः ॥ ५,३.१०२ ॥ शाखादिभ्यो यत् ॥ ५,३.१०३ ॥ द्रव्यं च भव्ये ॥ ५,३.१०४ ॥ कुशाग्राच्छः ॥ ५,३.१०५ ॥ समासाच्च तद्विषयात् ॥ ५,३.१०६ ॥ शर्करादिभ्योऽण् ॥ ५,३.१०७ ॥ अङ्गुल्यादिभ्यष्ठक् ॥ ५,३.१०८ ॥ एकशालायाष्ठजन्यतरस्याम् ॥ ५,३.१०९ ॥ कर्कलोहितादीकक् ॥ ५,३.११० ॥ प्रत्नपूर्वविश्वेमात्थाल्छन्दसि ॥ ५,३.१११ ॥ पूगाञ्ञ्योऽग्रामणीपूर्वात् ॥ ५,३.११२ ॥ व्रातच्फञोरस्त्रियाम् ॥ ५,३.११३ ॥ आयुधजीविसङ्क्घाञ्ञ्यड्वाहीकेष्वब्राह्मणराजन्यात् ॥ ५,३.११४ ॥ वृकाट्टेण्यण् ॥ ५,३.११५ ॥ दामन्यादित्रिगर्तष्ठाच्छः ॥ ५,३.११६ ॥ पर्श्वादियौधेयादिभ्यामणञौ ॥ ५,३.११७ ॥ अभिजिद्विदभृच्छालावच्छिखावच्छमीवदूर्णावच्छरुमदणो यञ् ॥ ५,३.११८ ॥ ञ्यादयस्तद्राजाः ॥ ५,३.११९ ॥ पादशतस्य सङ्ख्यादेर्वीप्सायां वुन् लोपश्च ॥ ५,४.१ ॥ दण्डव्यवसर्गयोश्च ॥ ५,४.२ ॥ स्थूलादिभ्यः प्रकारवचने कन् ॥ ५,४.३ ॥ अनत्यन्तगतौ क्तात् ॥ ५,४.४ ॥ न सामिवचने ॥ ५,४.५ ॥ बृहत्या आच्छादने ॥ ५,४.६ ॥ अषडक्षाशितङ्ग्वलङ्कर्मालम्पुरुषाध्युत्तरपदात्खः ॥ ५,४.७ ॥ विभाषाञ्चेरदिक्ष्त्रियाम् ॥ ५,४.८ ॥ जात्यन्ताच्छ बन्धुनि ॥ ५,४.९ ॥ स्थानान्ताद्विभाषा सस्थानेन+इति चेत् ॥ ५,४.१० ॥ किमेत्तिङव्ययघादांवद्रव्यप्रकर्षे ॥ ५,४.११ ॥ अमु च च्छन्दसि ॥ ५,४.१२ ॥ अनुगादिनष्ठक् ॥ ५,४.१३ ॥ णचः स्त्रियामञ् ॥ ५,४.१४ ॥ अणिनुणः ॥ ५,४.१५ ॥ विसारिणो मत्स्ये ॥ ५,४.१६ ॥ सङ्क्यायाः क्रियाभ्यावृत्तिगणने कृत्वसुच् ॥ ५,४.१७ ॥ द्वित्रिचतुर्भ्यः सुच् ॥ ५,४.१८ ॥ एकस्य सकृच्च ॥ ५,४.१९ ॥ विभाषा बहोर्धाऽविप्रक्र्ष्टकाले ॥ ५,४.२० ॥ तत्प्रकृतवचने मयट् ॥ ५,४.२१ ॥ समूहवच्च बहुषु ॥ ५,४.२२ ॥ अनन्तावसथेतिहभेषजाञ्ञ्यः ॥ ५,४.२३ ॥ देवतान्तात्तादर्थ्ये यत् ॥ ५,४.२४ ॥ पादार्घाभ्यां च ॥ ५,४.२५ ॥ अतिथेर्ञ्यः ॥ ५,४.२६ ॥ देवात्तल् ॥ ५,४.२७ ॥ अवेः कः ॥ ५,४.२८ ॥ यावादिभ्यः कन् ॥ ५,४.२९ ॥ लोहितान्मणौ ॥ ५,४.३० ॥ वर्णे चानित्ये ॥ ५,४.३१ ॥ रक्ते ॥ ५,४.३२ ॥ कालाच्च ॥ ५,४.३३ ॥ विनयादिभ्यष्ठक् ॥ ५,४.३४ ॥ वाचो व्याहृतार्थायाम् ॥ ५,४.३५ ॥ तद्युक्तात्कर्मणोऽण् ॥ ५,४.३६ ॥ ओषधेरजातौ ॥ ५,४.३७ ॥ प्रज्ञादिभ्यश्च ॥ ५,४.३८ ॥ मृदस्तिकन् ॥ ५,४.३९ ॥ सस्नौ प्रशंसायां ॥ ५,४.४० ॥ वृकज्येष्ठाभ्यां तिल्तातिलौ च छन्दसि ॥ ५,४.४१ ॥ बह्वल्पार्थाच्छस्कारकादन्यतरस्याम् ॥ ५,४.४२ ॥ सङ्ख्यैकवचनाच्च वीप्सायाम् ॥ ५,४.४३ ॥ प्रतियोगे पञ्चम्यास्तसिः ॥ ५,४.४४ ॥ अपादाने चाहीयरुहोः ॥ ५,४.४५ ॥ अतिग्रहाव्यथनक्षेपेष्वकर्तरि तृतीयायाः ॥ ५,४.४६ ॥ हीयमानपापयोगाच्च ॥ ५,४.४७ ॥ षष्ठ्या व्याश्रये ॥ ५,४.४८ ॥ रोगाच्चापनयने ॥ ५,४.४९ ॥ अभूततद्भावे कृभ्वस्तियोगे सम्पद्यकर्तरि च्विः ॥ ५,४.५० ॥ अरुर्मनश्चक्षुश्चेतोरहोरजसां लोपश्च ॥ ५,४.५१ ॥ विभाषा साति कार्त्स्न्ये ॥ ५,४.५२ ॥ अभिविधौ सम्पदा च ॥ ५,४.५३ ॥ तदधीनवचने ॥ ५,४.५४ ॥ देये त्रा च ॥ ५,४.५५ ॥ देवमनुष्यपुरुषपुरुमर्त्येभ्यो द्वितीयासप्तम्योर्बहुलम् ॥ ५,४.५६ ॥ अव्यक्तानुकरणाद्द्व्यजवरार्धादनितौ डाच् ॥ ५,४.५७ ॥ कृञो द्वितीयतृतीयशम्बबीजात्कृषौ ॥ ५,४.५८ ॥ सङ्ख्यायाश्च गुणान्तायाः ॥ ५,४.५९ ॥ समयाच्च यापनायाम् ॥ ५,४.६० ॥ सपत्रनिष्पत्रादतिव्यथने ॥ ५,४.६१ ॥ निष्कुलान्निष्कोषणे ॥ ५,४.६२ ॥ सुखप्रियादानुलोम्ये ॥ ५,४.६३ ॥ दुःखात्प्रातिलोम्ये ॥ ५,४.६४ ॥ शूलात्पाके ॥ ५,४.६५ ॥ सत्यादशपथे ॥ ५,४.६६ ॥ मद्रात्परिवापणे ॥ ५,४.६७ ॥ समासान्ताः ॥ ५,४.६८ ॥ न पूजनात् ॥ ५,४.६९ ॥ किमः क्षेपे ॥ ५,४.७० ॥ नञस्तत्पुरुषात् ॥ ५,४.७१ ॥ पथो विभाषा ॥ ५,४.७२ ॥ बहुव्रीहौ सङ्ख्येये डजबहुगणात् ॥ ५,४.७३ ॥ ऋक्पूरब्धूःपथामानक्षे ॥ ५,४.७४ ॥ अच्प्रत्यन्ववपूर्वात्सामलोम्नः ॥ ५,४.७५ ॥ अक्ष्णोऽदर्शनात् ॥ ५,४.७६ ॥ अचतुरविचतुरसुचतुरस्त्रीपुंसधेन्वनडुहर्क्षामवाङ्मनसाक्षिभ्रुवदारगवोर्वष्ठीवपदष्ठीवनक्तंदिवरात्रिंदिवाहर्दिवसरजसनिःश्रेयसपुरुषायुषद्व्यायुषत्र्यायुषर्ग्यजुषजातोक्षमहोक्षवृद्धोक्षोपशुनगोष्ठश्वाः ॥ ५,४.७७ ॥ ब्रह्महस्तिभ्यां वर्चसः ॥ ५,४.७८ ॥ अवसमन्धेभ्यस्तमसः ॥ ५,४.७९ ॥ श्वसो वसीयःश्रेयसः ॥ ५,४.८० ॥ अन्ववतप्ताद्रहसः ॥ ५,४.८१ ॥ प्रतेरुरसः सप्तमीस्थात् ॥ ५,४.८२ ॥ अनुगवमायामे ॥ ५,४.८३ ॥ द्विस्तावा तिर्स्तावा वेदिः ॥ ५,४.८४ ॥ उपसर्गादध्वनः ॥ ५,४.८५ ॥ तत्पुरुषस्याङ्गुलेः सङ्ख्याव्ययादेः ॥ ५,४.८६ ॥ अहःसर्वैकदेशसङ्ख्यातपुण्याच्च रात्रेः ॥ ५,४.८७ ॥ अह्नोऽह्न एतेभ्यः ॥ ५,४.८८ ॥ न सङ्ख्यादेः समाहारे ॥ ५,४.८९ ॥ उत्तमैकाभ्यां च ॥ ५,४.९० ॥ राजाहःसखिभ्यष्टच् ॥ ५,४.९१ ॥ गोरतद्धितलुकि ॥ ५,४.९२ ॥ अग्राख्यायामुरसः ॥ ५,४.९३ ॥ अनोऽश्मायस्सरसां जातिसञ्ज्ञायोः ॥ ५,४.९४ ॥ ग्रामकौटाभ्यां च तक्ष्णः ॥ ५,४.९५ ॥ अतेः शुनः ॥ ५,४.९६ ॥ उअप्मानादप्राणिषु ॥ ५,४.९७ ॥ उत्तरमृगपूर्वाच्च सक्थ्नः ॥ ५,४.९८ ॥ नावो द्विगोः ॥ ५,४.९९ ॥ अर्धाच्च ॥ ५,४.१०० ॥ खार्याः प्राचाम् ॥ ५,४.१०१ ॥ द्वित्रिभ्यामञ्जलेः ॥ ५,४.१०२ ॥ अनसन्तान्नपुंसकाच्छन्दसि ॥ ५,४.१०३ ॥ ब्रह्मणो जानपदाख्यायाम् ॥ ५,४.१०४ ॥ कुमहद्भ्यामन्यतरस्याम् ॥ ५,४.१०५ ॥ द्वन्द्वाच्चुदषहान्तात्समाहारे ॥ ५,४.१०६ ॥ अव्ययीभावे शरत्प्रभृतिभ्यः ॥ ५,४.१०७ ॥ अनश्च ॥ ५,४.१०८ ॥ नपुंसकादन्यतरस्याम् ॥ ५,४.१०९ ॥ नदी पौर्णमास्याग्रहायणीभ्यः ॥ ५,४.११० ॥ ज्ञयः ॥ ५,४.१११ ॥ गिरेश्च ॥ ५,४.११२ ॥ बहुव्रीहौ सक्थ्यक्ष्णोः स्वाङ्गात्षच् ॥ ५,४.११३ ॥ अङ्गुलेर्दारुणि ॥ ५,४.११४ ॥ द्वित्रिभ्यां ष मूर्ध्नः ॥ ५,४.११५ ॥ अप्पूरणीप्रमाण्योः ॥ ५,४.११६ ॥ अन्तर्बहिर्भ्यां च लोम्नः ॥ ५,४.११७ ॥ अञ्नासिकायाः सञ्ज्ञायां नसं चास्थूलात् ॥ ५,४.११८ ॥ उपसर्गाच्च ॥ ५,४.११९ ॥ सुप्रातसुश्वसुदिवशारिकुक्षचतुरश्रैणीपदाजपदप्रोष्ठपदाः ॥ ५,४.१२० ॥ नञ्दुःसुभ्यो हलिसक्थ्योरन्यारस्याम् ॥ ५,४.१२१ ॥ नित्यमसिच्प्रजामेधयोः ॥ ५,४.१२२ ॥ बहुप्रजाश्च्छन्दसि ॥ ५,४.१२३ ॥ धर्मादनिच्केवलात् ॥ ५,४.१२४ ॥ जम्भा सुहरिततृणसोमेभ्यः ॥ ५,४.१२५ ॥ दक्षिणेर्मा लुब्धयोगे ॥ ५,४.१२६ ॥ इच्कर्मव्यतिहारे ॥ ५,४.१२७ ॥ द्विदण्ड्यादिभ्यश्च ॥ ५,४.१२८ ॥ प्रसंभ्यां जानुनोर्ज्ञुः ॥ ५,४.१२९ ॥ ऊर्ध्वाद्विभाषा ॥ ५,४.१३० ॥ ऊधसोऽनङ् ॥ ५,४.१३१ ॥ धनुषश्च ॥ ५,४.१३२ ॥ वा सञ्ज्ञायाम् ॥ ५,४.१३३ ॥ जायाया निङ् ॥ ५,४.१३४ ॥ गन्धस्य+इदुत्पूतिसुसुरभिभ्यः ॥ ५,४.१३५ ॥ अल्पाख्यायाम् ॥ ५,४.१३६ ॥ उपमानाच्च ॥ ५,४.१३७ ॥ पादस्य लोपोऽहस्त्यादिभ्यः ॥ ५,४.१३८ ॥ कुम्भपदीषु च ॥ ५,४.१३९ ॥ सङ्ख्यासुपूर्वस्य ॥ ५,४.१४० ॥ वयसि दन्तस्य दतृ ॥ ५,४.१४१ ॥ छन्दसि च ॥ ५,४.१४२ ॥ स्त्रियां सञ्ज्ञायाम् ॥ ५,४.१४३ ॥ विभाषा श्यावारोकाभ्याम् ॥ ५,४.१४४ ॥ अग्रान्तशुद्धशुभ्रवृषवराहेभ्यश्च ॥ ५,४.१४५ ॥ ककुदस्यावस्थायां लोपः ॥ ५,४.१४६ ॥ त्रिककुत्पर्वते ॥ ५,४.१४७ ॥ उद्विभ्यां काकुदस्य ॥ ५,४.१४८ ॥ पूर्णाद्विभाषा ॥ ५,४.१४९ ॥ सुहृद्दुर्हृदौ मित्रामित्रयोः ॥ ५,४.१५० ॥ उरःप्रभृतिभ्यः कप् ॥ ५,४.१५१ ॥ इनः स्त्रियाम् ॥ ५,४.१५२ ॥ नद्यृतश्च ॥ ५,४.१५३ ॥ शेषाद्विभाषा ॥ ५,४.१५४ ॥ न सञ्ज्ञायाम् ॥ ५,४.१५५ ॥ ईयसश्च ॥ ५,४.१५६ ॥ वन्दिते भ्रातुः ॥ ५,४.१५७ ॥ ऋतश्छन्दसि ॥ ५,४.१५८ ॥ नाडीतन्त्र्योः स्वाङ्गे ॥ ५,४.१५९ ॥ निष्प्रवाणिश्च ॥ ५,४.१६० ॥ एकाचो द्वे प्रथमस्य ॥ ६,१.१ ॥ अजादेर्द्वितीयस्य ॥ ६,१.२ ॥ न न्द्राः संयोगादयः ॥ ६,१.३ ॥ पूर्वोऽभ्यासः ॥ ६,१.४ ॥ उभे अभ्यस्तम् ॥ ६,१.५ ॥ जक्षित्यादयः षट् ॥ ६,१.६ ॥ तुजादीनां दीर्घोऽभ्यासस्य ॥ ६,१.७ ॥ लिटि धातोरनभ्यासस्य ॥ ६,१.८ ॥ सन्यङोः ॥ ६,१.९ ॥ श्लौ ॥ ६,१.१० ॥ चङि ॥ ६,१.११ ॥ दाश्वान् साह्वान्मीड्वांश्च ॥ ६,१.१२ ॥ ष्यङः सम्प्रसारणं पुत्रपत्योस्तत्पुरुषे ॥ ६,१.१३ ॥ बन्धुनि बहुव्रीहौ ॥ ६,१.१४ ॥ वचिस्वपियजादीनां किति ॥ ६,१.१५ ॥ ग्रहिज्यावयिव्यधिवष्टिविचतिवृश्चतिपृच्छतिभृज्जतीनां ङिति च ॥ ६,१.१६ ॥ लिट्यभ्यासस्य+उभयेषाम् ॥ ६,१.१७ ॥ स्वापेश्चङि ॥ ६,१.१८ ॥ स्वपिस्यमिव्येञां यङि ॥ ६,१.१९ ॥ न वशः ॥ ६,१.२० ॥ चायः की ॥ ६,१.२१ ॥ स्फायः स्फी निष्ठायाम् ॥ ६,१.२२ ॥ स्त्यः प्रपूर्वस्य ॥ ६,१.२३ ॥ द्रवमूर्तिस्पर्शयोः श्यः ॥ ६,१.२४ ॥ प्रतेश्च ॥ ६,१.२५ ॥ विभाषाऽभ्यवपूर्वस्य ॥ ६,१.२६ ॥ शृतं पाके ॥ ६,१.२७ ॥ प्यायः पी ॥ ६,१.२८ ॥ लिड्यङोश्च ॥ ६,१.२९ ॥ विभाषा श्वेः ॥ ६,१.३० ॥ णौ च संश्चङोः ॥ ६,१.३१ ॥ ह्वः संप्रसारणम् ॥ ६,१.३२ ॥ अभ्यस्तस्य च ॥ ६,१.३३ ॥ बहुलं छन्दसि ॥ ६,१.३४ ॥ चायः की ॥ ६,१.३५ ॥ अपस्पृधेथामानृचुरानृहुश्चिच्युषेतित्याजश्राताः श्रितमाशीराशीर्ताः ॥ ६,१.३६ ॥ न सम्प्रसारणे सम्प्रसारणम् ॥ ६,१.३७ ॥ लिटि व्यो यः ॥ ६,१.३८ ॥ वश्चास्यान्यतरस्यां किति ॥ ६,१.३९ ॥ वेञः ॥ ६,१.४० ॥ ल्यपि च ॥ ६,१.४१ ॥ ज्यश्च ॥ ६,१.४२ ॥ व्यश्च ॥ ६,१.४३ ॥ विभाषा परेः ॥ ६,१.४४ ॥ आदेच उपदेशेऽशिति ॥ ६,१.४५ ॥ न व्यो लिटि ॥ ६,१.४६ ॥ स्फुरतिस्फुलत्योर्घञि ॥ ६,१.४७ ॥ क्रीङ्जीनां णौ ॥ ६,१.४८ ॥ सिध्यतेरपारलौकिके ॥ ६,१.४९ ॥ मीनातिमिनोतिदीङां ल्यपि च ॥ ६,१.५० ॥ विभाषा लीयतेः ॥ ६,१.५१ ॥ खिदेश्छन्दसि ॥ ६,१.५२ ॥ अपगुरो णमुलि ॥ ६,१.५३ ॥ चिस्फुरोर्णौ ॥ ६,१.५४ ॥ प्रजने वीयतेः ॥ ६,१.५५ ॥ बिभेतेर्हेतुभये ॥ ६,१.५६ ॥ नित्यं स्मयतेः ॥ ६,१.५७ ॥ सृजिदृशोर्ज्ञल्यमकिति ॥ ६,१.५८ ॥ अनुदात्तस्य च र्दुपधस्यान्यतर्स्याम् ॥ ६,१.५९ ॥ शीर्षंश्छन्दसि ॥ ६,१.६० ॥ ये च तद्धिते ॥ ६,१.६१ ॥ अचि शीर्षः ॥ ६,१.६२ ॥ पद्दन्नोमास्हृन्निशसन्यूषन्दोषन्यकञ्छकन्नुदन्नासञ्छस्प्रभृतिषु ॥ ६,१.६३ ॥ धात्वादेः षः सः ॥ ६,१.६४ ॥ णो नः ॥ ६,१.६५ ॥ लोपो व्योर्वलि ॥ ६,१.६६ ॥ वेरपृक्तस्य ॥ ६,१.६७ ॥ हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात्सुतिस्यपृक्तं हल् ॥ ६,१.६८ ॥ एङ्ह्रस्वात्सम्बुद्धेः ॥ ६,१.६९ ॥ शेः छन्दसि बहुलम् ॥ ६,१.७० ॥ ह्रस्वस्य पिति कृति तुक् ॥ ६,१.७१ ॥ संहितायाम् ॥ ६,१.७२ ॥ छे च ॥ ६,१.७३ ॥ आङ्माङोश्च ॥ ६,१.७४ ॥ दीर्घात् ॥ ६,१.७५ ॥ पदान्ताद्वा ॥ ६,१.७६ ॥ इको यणचि ॥ ६,१.७७ ॥ एचोऽयवायावः ॥ ६,१.७८ ॥ वान्तो यि प्रत्यये ॥ ६,१.७९ ॥ धातोस्तन्निमित्तस्य+एव ॥ ६,१.८० ॥ क्षय्यजय्यौ शक्यार्थे ॥ ६,१.८१ ॥ क्रय्यस्तदर्थे ॥ ६,१.८२ ॥ भ्य्यप्रवय्ये च च्छन्दसि ॥ ६,१.८३ ॥ एकः पूर्वपरयोः ॥ ६,१.८४ ॥ अन्तादिवच्च ॥ ६,१.८५ ॥ षत्वतुकोरसिद्धः ॥ ६,१.८६ ॥ आद्गुणः ॥ ६,१.८७ ॥ वृद्धिरेचि ॥ ६,१.८८ ॥ एत्येधत्यूठ्सु ॥ ६,१.८९ ॥ आटश्च ॥ ६,१.९० ॥ उपसर्गादृति धातौ ॥ ६,१.९१ ॥ वा सुप्यापिशलेः ॥ ६,१.९२ ॥ औतोऽम्शसोः ॥ ६,१.९३ ॥ एङि पररूपम् ॥ ६,१.९४ ॥ ओमाङोश्च ॥ ६,१.९५ ॥ उस्यपदान्तात् ॥ ६,१.९६ ॥ अतो गुणे ॥ ६,१.९७ ॥ अव्यक्तानुकरणस्यात इतौ ॥ ६,१.९८ ॥ न आम्रेडितस्यानत्यस्य तु वा ॥ ६,१.९९ ॥ नित्यमाम्रेडिते डाचि ॥ ६,१.१०० ॥ अकः सवर्णे दीर्घः ॥ ६,१.१०१ ॥ प्रथमयोः पूर्वसवर्णः ॥ ६,१.१०२ ॥ तस्माच्छसो नः पुंसि ॥ ६,१.१०३ ॥ नादिचि ॥ ६,१.१०४ ॥ दीर्घाज्जसि च ॥ ६,१.१०५ ॥ वा छन्दसि ॥ ६,१.१०६ ॥ अमि पूर्वः ॥ ६,१.१०७ ॥ सम्प्रसारणाच्च ॥ ६,१.१०८ ॥ एङः पदान्तादति ॥ ६,१.१०९ ॥ ङसिङसोश्च ॥ ६,१.११० ॥ ऋत उत् ॥ ६,१.१११ ॥ ख्यत्यात्परस्य ॥ ६,१.११२ ॥ अतो रोरप्लुतादप्लुते ॥ ६,१.११३ ॥ हशि च ॥ ६,१.११४ ॥ प्रकृत्याऽन्तःपादमव्यपरे ॥ ६,१.११५ ॥ अव्यादवद्यादवक्रमुरव्रतायमवन्त्ववस्युसु च ॥ ६,१.११६ ॥ यजुष्युरः ॥ ६,१.११७ ॥ आपोजुषणोवृष्णोवर्षिष्ठेऽम्बेऽम्बालेऽम्बिकेपूर्वे ॥ ६,१.११८ ॥ अङ्ग इत्यादौ च ॥ ६,१.११९ ॥ अनुदात्ते च कुधपरे ॥ ६,१.१२० ॥ अवपथासि च ॥ ६,१.१२१ ॥ सर्वत्र विभाषा गोः ॥ ६,१.१२२ ॥ अवङ्स्फोटायनस्य ॥ ६,१.१२३ ॥ इन्द्रे च नित्यम् ॥ ६,१.१२४ ॥ प्लुतप्रगृह्या अचि ॥ ६,१.१२५ ॥ आङोऽनुनासिकश्छन्दसि ॥ ६,१.१२६ ॥ इकोऽसवर्णे शाकल्यस्य ह्रस्वश्च ॥ ६,१.१२७ ॥ ऋत्यकः ॥ ६,१.१२८ ॥ अप्लुतवदुपस्थिते ॥ ६,१.१२९ ॥ ई३ चाक्रवर्मणस्य ॥ ६,१.१३० ॥ दिव उत् ॥ ६,१.१३१ ॥ एतत्तदोः सुलोपोऽकोरनञ्समासे हलि ॥ ६,१.१३२ ॥ स्यश्छन्दसि बहुलम् ॥ ६,१.१३३ ॥ सोऽचि लोपे चेत्पादपूरणम् ॥ ६,१.१३४ ॥ सुट्कात्पूर्वः ॥ ६,१.१३५ ॥ अडभ्यासव्यवायेऽपि ॥ ६,१.१३६ ॥ सम्पर्युपेभ्यः करोतौ भूषणे ॥ ६,१.१३७ ॥ समवाये च ॥ ६,१.१३८ ॥ उपात्प्रतियत्नवैकृतवाक्याध्याहारेसु ॥ ६,१.१३९ ॥ किरतौ लवने ॥ ६,१.१४० ॥ हिंसायां प्रतेश्च ॥ ६,१.१४१ ॥ अपाच्चतुष्पाच्छकुनिष्वालेखने ॥ ६,१.१४२ ॥ कुस्तुम्बुरूणि जातिः ॥ ६,१.१४३ ॥ अपरस्पराः क्रियासातत्ये ॥ ६,१.१४४ ॥ गोष्पदं सेवितासेवितप्रमाणेसु ॥ ६,१.१४५ ॥ आस्पदं प्रतिष्ठायाम् ॥ ६,१.१४६ ॥ आश्चर्यमनित्ये ॥ ६,१.१४७ ॥ वर्चस्केऽवस्करः ॥ ६,१.१४८ ॥ अपस्करो रथाङ्गम् ॥ ६,१.१४९ ॥ विष्किरः शुकुम्निर्विकिरो वा ॥ ६,१.१५० ॥ ह्वस्वाच्चन्द्रोत्तरपदे मन्त्रे ॥ ६,१.१५१ ॥ प्रतिष्कशश्च कशेः ॥ ६,१.१५२ ॥ प्रस्कण्वहरिश्चन्द्रावृषी ॥ ६,१.१५३ ॥ मस्करमस्करिणौ वेणुपरिव्राजकयोः ॥ ६,१.१५४ ॥ कास्तीराजस्तुन्दे नगरे ॥ ६,१.१५५ ॥ कारस्करो वृक्षः ॥ ६,१.१५६ ॥ पारस्करप्रभृतीनि च सञ्ज्ञायाम् ॥ ६,१.१५७ ॥ अनुदात्तं पदमेकवर्जम् ॥ ६,१.१५८ ॥ कर्षात्वतो घञोऽन्त उदात्तः ॥ ६,१.१५९ ॥ उच्छादीनां च ॥ ६,१.१६० ॥ अनुदात्तस्य च यत्र+उदात्तलोपः ॥ ६,१.१६१ ॥ धातोः ॥ ६,१.१६२ ॥ चितः ॥ ६,१.१६३ ॥ तद्धितस्य ॥ ६,१.१६४ ॥ कितः ॥ ६,१.१६५ ॥ तिसृभ्यो जसः ॥ ६,१.१६६ ॥ चतुरः शसि ॥ ६,१.१६७ ॥ सावेकाचस्तृतीयादिर्विभक्तिः ॥ ६,१.१६८ ॥ अन्तोदात्तादुत्तरपदादन्यतरस्यामनित्यसमासे ॥ ६,१.१६९ ॥ अञ्चेश्छन्दस्यसर्वनामस्थानम् ॥ ६,१.१७० ॥ ऊडिदंपदाद्यप्पुम्रैद्युभ्यः ॥ ६,१.१७१ ॥ अष्टनो दीर्घात् ॥ ६,१.१७२ ॥ शतुरनुमो नद्यजादी ॥ ६,१.१७३ ॥ उदात्तयणो हल्पूर्वात् ॥ ६,१.१७४ ॥ न+उङ्धात्वोः ॥ ६,१.१७५ ॥ ह्रस्वनुड्भ्यां मतुप् ॥ ६,१.१७६ ॥ नामन्यतरस्याम् ॥ ६,१.१७७ ॥ ङ्याश्छन्दसि बहुलम् ॥ ६,१.१७८ ॥ षट्त्रिचतुर्भ्यो हलादिः ॥ ६,१.१७९ ॥ ज्ञल्युपोत्तमम् ॥ ६,१.१८० ॥ विभाषा भाषायाम् ॥ ६,१.१८१ ॥ न गोश्वन्साववर्णराडङ्क्रुङ्कृद्भ्यः ॥ ६,१.१८२ ॥ दिवो झल् ॥ ६,१.१८३ ॥ नृ चान्यतरस्याम् ॥ ६,१.१८४ ॥ तित्स्वरितम् ॥ ६,१.१८५ ॥ तास्यनुदातेन्ङिददुपदेशाल्लसार्वधातुकमनुदात्तमह्न्विङोः ॥ ६,१.१८६ ॥ आदिः सिचोऽन्यतरस्याम् ॥ ६,१.१८७ ॥ स्वपादिहिंसामच्यनिटि ॥ ६,१.१८८ ॥ अभ्यस्तानामादिः ॥ ६,१.१८९ ॥ अनुदाते च ॥ ६,१.१९० ॥ सर्वस्य सुपि ॥ ६,१.१९१ ॥ भीह्रीभृहुमदजनधनदरिद्राजागरां प्रत्ययात्पूर्वं पिति ॥ ६,१.१९२ ॥ लिति ॥ ६,१.१९३ ॥ आदिर्णमुल्यन्यतरस्याम् ॥ ६,१.१९४ ॥ अचः कर्तृयकि ॥ ६,१.१९५ ॥ थलि च सेटीडन्तो वा ॥ ६,१.१९६ ॥ ञ्नित्यादिर्नित्यम् ॥ ६,१.१९७ ॥ आमन्त्रितस्य च ॥ ६,१.१९८ ॥ पथिमथोः सर्वनामस्थाने ॥ ६,१.१९९ ॥ अन्तश्च तवै युगपत् ॥ ६,१.२०० ॥ क्षयो निवासे ॥ ६,१.२०१ ॥ जयः करणम् ॥ ६,१.२०२ ॥ वृषादीनां च ॥ ६,१.२०३ ॥ सञ्ज्ञायामुपमानम् ॥ ६,१.२०४ ॥ निष्ठा च द्व्यजनात् ॥ ६,१.२०५ ॥ शुष्कधृष्तौ ॥ ६,१.२०६ ॥ आशितः कर्ता ॥ ६,१.२०७ ॥ रिक्ते विभाषा ॥ ६,१.२०८ ॥ जुष्टार्पिते च च्छन्दसि ॥ ६,१.२०९ ॥ नित्यं मन्त्रे ॥ ६,१.२१० ॥ युष्मदस्मदोर्ङसि ॥ ६,१.२११ ॥ ङयि च ॥ ६,१.२१२ ॥ यतोऽनावः ॥ ६,१.२१३ ॥ ईडवन्दवृशंसदुहां ण्यतः ॥ ६,१.२१४ ॥ विभाषा वेण्विन्धानयोः ॥ ६,१.२१५ ॥ त्यागरागहासकुहश्वठक्रथानाम् ॥ ६,१.२१६ ॥ उपोत्तमं रिति ॥ ६,१.२१७ ॥ चङ्यन्यतरस्याम् ॥ ६,१.२१८ ॥ मतोः पूर्वमात्सञ्ज्ञायां स्त्रियाम् ॥ ६,१.२१९ ॥ अन्तोऽवत्याः ॥ ६,१.२२० ॥ ईवत्याः ॥ ६,१.२२१ ॥ चौ ॥ ६,१.२२२ ॥ समासस्य ॥ ६,१.२२३ ॥ बहुव्रीहौ प्रकृत्या पूर्वपदम् ॥ ६,२.१ ॥ तत्पुरुषे तुल्यार्थतृतीयासप्तम्युपमानाव्ययद्वितीयाकृत्याः ॥ ६,२.२ ॥ वर्णो वर्नेष्वनेते ॥ ६,२.३ ॥ गाधलवनयोः प्रमाणे ॥ ६,२.४ ॥ दायाद्यं दायादे ॥ ६,२.५ ॥ प्रतिबन्धि चिरकृच्छ्रयोः ॥ ६,२.६ ॥ पदेऽपदेशे ॥ ६,२.७ ॥ निवाते वातत्राणे ॥ ६,२.८ ॥ शारदेऽनार्तवे ॥ ६,२.९ ॥ अध्वर्युकषाययोर्जातौ ॥ ६,२.१० ॥ सदृशप्रतिरूपयोः सादृश्ये ॥ ६,२.११ ॥ द्विगौ प्रमाणे ॥ ६,२.१२ ॥ गन्तव्यपण्य वाणिजे ॥ ६,२.१३ ॥ मात्रोपज्ञोपक्रमच्छाये नपुंसके ॥ ६,२.१४ ॥ सुखप्रिययोर्हिते ॥ ६,२.१५ ॥ प्रीतौ च ॥ ६,२.१६ ॥ स्वं स्वामिनि ॥ ६,२.१७ ॥ पत्यावैश्वर्ये ॥ ६,२.१८ ॥ न भूवाक्चिद्दिधिषु ॥ ६,२.१९ ॥ वा भूवनम् ॥ ६,२.२० ॥ आशङ्काबाधनेदीयस्सु सम्भावने ॥ ६,२.२१ ॥ पूर्वे भूतपूर्वे ॥ ६,२.२२ ॥ सविधसनीडसमर्यादसवेशसदेशेषु सामीप्ये ॥ ६,२.२३ ॥ विस्पष्टादीनि गुणवचनेषु ॥ ६,२.२४ ॥ श्रज्यावमकन्पापवत्सु भावे कर्मधारये ॥ ६,२.२५ ॥ कुमारश्च ॥ ६,२.२६ ॥ आदिः प्रत्येनसि ॥ ६,२.२७ ॥ पूगेष्वन्यतरस्याम् ॥ ६,२.२८ ॥ इगन्तकालकपालभगालशरावेषु द्विगौ ॥ ६,२.२९ ॥ बह्वन्यतरस्याम् ॥ ६,२.३० ॥ दिष्टिवितस्त्योश्च ॥ ६,२.३१ ॥ सप्तमी सिद्धशुष्कपक्वबन्धेष्वकालात् ॥ ६,२.३२ ॥ परिप्रत्युपापा वर्ज्यमानाहोरात्रावयवेषु ॥ ६,२.३३ ॥ राजन्यबहुवचनद्वन्द्वेऽन्धकवृष्णिषु ॥ ६,२.३४ ॥ सङ्ख्या ॥ ६,२.३५ ॥ आचार्योपसर्जनश्चान्तेवासी ॥ ६,२.३६ ॥ कार्तकौजपादयश्च ॥ ६,२.३७ ॥ महान् व्रीह्यपराह्णगृष्टीष्वासजाबालभारभारतहैलिहिलरौरवप्रवृद्धेषु ॥ ६,२.३८ ॥ क्षुल्लकश्च वैश्वदेवे ॥ ६,२.३९ ॥ उष्ट्रः सादिवाम्योः ॥ ६,२.४० ॥ गौः सादसादिसारथिषु ॥ ६,२.४१ ॥ कुरुगार्हपतरिक्तगुर्वसूतजरत्यश्लीलदृढरूपापारेवडवातैतिलकद्रूपण्यकम्बलो दासीभाराणां च ॥ ६,२.४२ ॥ चतुर्थी तदर्थे ॥ ६,२.४३ ॥ अर्थे ॥ ६,२.४४ ॥ क्ते च ॥ ६,२.४५ ॥ कर्मधारयेऽनिष्ठा ॥ ६,२.४६ ॥ अहीने द्वितीया ॥ ६,२.४७ ॥ तृतीया कर्मणि ॥ ६,२.४८ ॥ गतिरनन्तरः ॥ ६,२.४९ ॥ तादौ च निति कृत्यतौ ॥ ६,२.५० ॥ तवै चान्तश्च युगपत् ॥ ६,२.५१ ॥ अनिगन्तोऽञ्चतौ वप्रत्यये ॥ ६,२.५२ ॥ न्यधी च ॥ ६,२.५३ ॥ ईषदन्यतरस्याम् ॥ ६,२.५४ ॥ हिरण्यपरिमाणं धने ॥ ६,२.५५ ॥ प्रथमोऽचिरोपसम्पत्तौ ॥ ६,२.५६ ॥ कतरकतमौ कर्मधारये ॥ ६,२.५७ ॥ आर्यो ब्राह्मणकुमारयोः ॥ ६,२.५८ ॥ राजा च ॥ ६,२.५९ ॥ षष्ठी प्रत्येनसि ॥ ६,२.६० ॥ क्ते नित्यार्थे ॥ ६,२.६१ ॥ ग्रामः शिल्पिनि ॥ ६,२.६२ ॥ राजा च प्रशंसायाम् ॥ ६,२.६३ ॥ आदिरुदात्तः ॥ ६,२.६४ ॥ सप्तमीहारिणौ धर्म्येऽहरणे ॥ ६,२.६५ ॥ युक्ते च ॥ ६,२.६६ ॥ विभाषा अध्यक्षे ॥ ६,२.६७ ॥ पापं च शिल्पिनि ॥ ६,२.६८ ॥ गोत्रान्तेवासिमानवब्राह्मणेसु क्षेपे ॥ ६,२.६९ ॥ अङ्गानि मैरेये ॥ ६,२.७० ॥ भक्ताख्यास्तदर्थेषु ॥ ६,२.७१ ॥ गोबिडालसिंहसैन्धवेषु उपमाने ॥ ६,२.७२ ॥ अके जीविकार्थे ॥ ६,२.७३ ॥ प्राचां क्रीडायां ॥ ६,२.७४ ॥ अणि नियुक्ते ॥ ६,२.७५ ॥ शिल्पिनि चाकृञः ॥ ६,२.७६ ॥ सञ्ज्ञायां च ॥ ६,२.७७ ॥ गोतन्तियवं पाले ॥ ६,२.७८ ॥ णिनि ॥ ६,२.७९ ॥ उपमनं शब्दार्थप्रकृतावेव ॥ ६,२.८० ॥ युक्तारोह्यादयश्च ॥ ६,२.८१ ॥ दीर्घकाशतुषभ्राष्ट्रवटं जे ॥ ६,२.८२ ॥ अन्त्यात्पूर्वं बह्वचः ॥ ६,२.८३ ॥ ग्रामेऽनिवसन्तः ॥ ६,२.८४ ॥ घोषादिषु च ॥ ६,२.८५ ॥ छात्र्यादयः शालायाम् ॥ ६,२.८६ ॥ प्रस्थेऽवृद्धमकर्क्यादीनाम् ॥ ६,२.८७ ॥ मालादीनां च ॥ ६,२.८८ ॥ अमहन्नवं नगरेऽनुदीचाम् ॥ ६,२.८९ ॥ अर्मे चावर्णं द्व्यच्त्र्यच् ॥ ६,२.९० ॥ न भूताधिकसञ्जीवमद्राश्मकज्जलम् ॥ ६,२.९१ ॥ अन्तः ॥ ६,२.९२ ॥ व्क्ष्यति सर्वं गुणकार्त्स्न्ये ॥ ६,२.९३ ॥ सञ्ज्ञायां गिरिनिकाययोः ॥ ६,२.९४ ॥ कुमार्यां वयसि ॥ ६,२.९५ ॥ उदकेऽकेवले ॥ ६,२.९६ ॥ द्विगौ क्रतौ ॥ ६,२.९७ ॥ सभायां नपुंसके ॥ ६,२.९८ ॥ पुरे प्राचाम् ॥ ६,२.९९ ॥ अरिष्टगौडपूर्वे च ॥ ६,२.१०० ॥ न हास्तिनफलकमार्देयाः ॥ ६,२.१०१ ॥ कुसूलकूपकुम्भशालं बिले ॥ ६,२.१०२ ॥ दिक्शब्दा ग्रामजनपदाख्यानचानराटेषु ॥ ६,२.१०३ ॥ आचार्योपसर्जनश्चान्तेवासिनि ॥ ६,२.१०४ ॥ उत्तरपदवृद्धौ सर्वं च ॥ ६,२.१०५ ॥ बहुव्रीहौ विश्वं सञ्ज्ञायां ॥ ६,२.१०६ ॥ उदराश्वेषुषु ॥ ६,२.१०७ ॥ क्षेपे ॥ ६,२.१०८ ॥ नदी बन्धुनि ॥ ६,२.१०९ ॥ निष्ठोपसर्गपूर्वमन्यतरस्याम् ॥ ६,२.११० ॥ उत्तरपदादिः ॥ ६,२.१११ ॥ कर्णो वर्णलक्षणात् ॥ ६,२.११२ ॥ सञ्ज्ञाउपम्ययोश्च ॥ ६,२.११३ ॥ कण्ठपृष्थग्रीवाजङ्घं च ॥ ६,२.११४ ॥ शृङ्गमवस्थायां च ॥ ६,२.११५ ॥ नञो जरमरमित्रमृताः ॥ ६,२.११६ ॥ सोर्मनसी अलोमोषसी ॥ ६,२.११७ ॥ क्रत्वादयश्च ॥ ६,२.११८ ॥ आद्युदात्तं द्व्यच्छन्दसि ॥ ६,२.११९ ॥ वीरवीर्यौ च ॥ ६,२.१२० ॥ कूलतीरतूलमूलशालाक्षसममव्ययीभावे ॥ ६,२.१२१ ॥ किंसमन्थशूर्पपाय्यकाण्डं द्विगौ ॥ ६,२.१२२ ॥ तत्पुरुषे शालायां नपुंसके ॥ ६,२.१२३ ॥ कन्था च ॥ ६,२.१२४ ॥ आदिश्चिहणादीनां ॥ ६,२.१२५ ॥ चेलखेटकटुककाण्डं गर्हायाम् ॥ ६,२.१२६ ॥ चीरमुपमानम् ॥ ६,२.१२७ ॥ पललसूपशाकं मिश्रे ॥ ६,२.१२८ ॥ कूलसूदस्थलकर्षाः सञ्ज्ञायाम् ॥ ६,२.१२९ ॥ अकमधारये राज्यम् ॥ ६,२.१३० ॥ वर्ग्यादयश्च ॥ ६,२.१३१ ॥ पुत्रः पुम्भ्यः ॥ ६,२.१३२ ॥ न आचार्यराजर्त्विक्संयुक्तज्ञात्याख्येभ्यः ॥ ६,२.१३३ ॥ चूर्णादीन्यप्राणिषष्ठ्याः ॥ ६,२.१३४ ॥ षट्च काण्डादीनि ॥ ६,२.१३५ ॥ कुण्डं वनम् ॥ ६,२.१३६ ॥ प्रकृत्या भगालम् ॥ ६,२.१३७ ॥ शितेर्नित्याबह्वज्बहुव्रीहावभसत् ॥ ६,२.१३८ ॥ गतिकारकोपपदात्कृत् ॥ ६,२.१३९ ॥ उभे वनस्पत्यादिषु युगपत् ॥ ६,२.१४० ॥ देवताद्वन्द्वे च ॥ ६,२.१४१ ॥ न+उत्तरपदेऽनुदात्तादावपृथिवीरुद्रपूषमन्थिषु ॥ ६,२.१४२ ॥ अन्तः ॥ ६,२.१४३ ॥ थाथघञ्क्ताजबित्रकाणाम् ॥ ६,२.१४४ ॥ सूपमानात्क्तः ॥ ६,२.१४५ ॥ सञ्ज्ञायामनाचितादीनाम् ॥ ६,२.१४६ ॥ प्रवृद्धादीनां च ॥ ६,२.१४७ ॥ कारकाद्दत्तश्रुतयोरेव आशिषि ॥ ६,२.१४८ ॥ इत्थंभूतेन कृतमिति च ॥ ६,२.१४९ ॥ अनो भावकर्मवचनः ॥ ६,२.१५० ॥ मन्क्तिन्व्याख्यानशयनासनस्थानयाजकादिक्रीताः ॥ ६,२.१५१ ॥ सप्तम्याः पुण्यम् ॥ ६,२.१५२ ॥ ऊनार्थकलहं तृतीआयाः ॥ ६,२.१५३ ॥ मिश्रं चानुपसर्गमसन्धौ ॥ ६,२.१५४ ॥ नञो गुणप्रतिषेधे सम्पाद्यर्हहितालमर्थास्तद्धिताः ॥ ६,२.१५५ ॥ ययतोश्चातदर्थे ॥ ६,२.१५६ ॥ अच्कावशक्तौ ॥ ६,२.१५७ ॥ आक्रोशे च ॥ ६,२.१५८ ॥ सञ्ज्ञायाम् ॥ ६,२.१५९ ॥ कृत्योकेष्णुच्चार्वादयश्च ॥ ६,२.१६० ॥ विभाषा तृन्नन्नतीक्ष्णशुचिषु ॥ ६,२.१६१ ॥ बहुव्रीहाविदमेतत्तद्भ्यः प्रथमपूरनयोः क्रियागणने ॥ ६,२.१६२ ॥ सङ्ख्यायाः स्तनः ॥ ६,२.१६३ ॥ विभाषा ॥ ६,२.१६४ ॥ सञ्ज्ञायां मित्राजिनयोः ॥ ६,२.१६५ ॥ व्यवायिनोऽन्तरम् ॥ ६,२.१६६ ॥ मुखं स्वाङ्गं ॥ ६,२.१६७ ॥ नाव्ययदिक्शब्दगोमहत्स्थूलमुष्टिपृथुवत्सेभ्यः ॥ ६,२.१६८ ॥ निष्ठोपमानादन्यतरस्याम् ॥ ६,२.१६९ ॥ जातिकालसुखादिभ्योऽनाच्छादनात्क्तोऽकृतमितप्रतिपन्नाः ॥ ६,२.१७० ॥ वा जाते ॥ ६,२.१७१ ॥ नञ्सुभ्याम् ॥ ६,२.१७२ ॥ कपि पूर्वम् ॥ ६,२.१७३ ॥ ह्रस्वान्तेऽन्त्यात्पूर्वम् ॥ ६,२.१७४ ॥ बहोर्नञ्वदुत्तरपदभूम्नि ॥ ६,२.१७५ ॥ न गुणादयोऽवयवाः ॥ ६,२.१७६ ॥ उपसर्गात्स्वाङ्गं ध्रुवमपर्शु ॥ ६,२.१७७ ॥ वनं समासे ॥ ६,२.१७८ ॥ अन्तः ॥ ६,२.१७९ ॥ अन्तश्च ॥ ६,२.१८० ॥ न निविभ्याम् ॥ ६,२.१८१ ॥ परेरभितोभावि मण्डलम् ॥ ६,२.१८२ ॥ प्रादस्वङ्गं सञ्ज्ञायाम् ॥ ६,२.१८३ ॥ निरुदकादीनि च ॥ ६,२.१८४ ॥ अभेर्मुखम् ॥ ६,२.१८५ ॥ अपाच्च ॥ ६,२.१८६ ॥ स्फिगपूतवीणाञ्जोऽध्वकुक्षिसीरनामनाम च ॥ ६,२.१८७ ॥ अधेरुपरिस्थम् ॥ ६,२.१८८ ॥ अनोरप्रधानकनीयसी ॥ ६,२.१८९ ॥ पुरुषश्चान्वादिष्टः ॥ ६,२.१९० ॥ अतेरकृत्पदे ॥ ६,२.१९१ ॥ नेरनिधाने ॥ ६,२.१९२ ॥ प्रतेरंश्वादयस्तत्पुरुषे ॥ ६,२.१९३ ॥ उपाद्द्व्यजजिनमगौरादयः ॥ ६,२.१९४ ॥ सोरवक्षेपणे ॥ ६,२.१९५ ॥ विभाषा+उत्पुच्छे ॥ ६,२.१९६ ॥ द्वित्रिभ्यां पाद्दन्मूर्धसु बहुव्रीहौ ॥ ६,२.१९७ ॥ सक्थं चाक्रान्तात् ॥ ६,२.१९८ ॥ परादिश्छन्दसि बहुलम् ॥ ६,२.१९९ ॥ अलुगुत्तरपदे ॥ ६,३.१ ॥ पञ्चम्याः स्तोकादिभ्यः ॥ ६,३.२ ॥ ओजःसहोऽम्भस्तमसस्तृतीययाः ॥ ६,३.३ ॥ मनसः सञ्ज्ञायाम् ॥ ६,३.४ ॥ आज्ञायिनि च ॥ ६,३.५ ॥ आत्मनश्च पूरणे ॥ ६,३.६ ॥ वैयाकरणाख्यायां चतुर्थ्याः ॥ ६,३.७ ॥ परस्य च ॥ ६,३.८ ॥ हलदन्तात्सप्तम्याः सञ्ज्ञायाम् ॥ ६,३.९ ॥ कारनाम्नि च प्राचां हलादौ ॥ ६,३.१० ॥ मध्याद्गुरौ ॥ ६,३.११ ॥ अमूर्धमस्तकात्स्वाङ्गादकामे ॥ ६,३.१२ ॥ भन्धे च विभाषा ॥ ६,३.१३ ॥ तत्पुरुषे कृति बहुलम् ॥ ६,३.१४ ॥ प्रावृट्शरत्कालदिवां जे ॥ ६,३.१५ ॥ विभाषा ॥ ६,३.१६ ॥ घकालतनेसु कालनाम्नः ॥ ६,३.१७ ॥ शयवासवासिष्वकलात् ॥ ६,३.१८ ॥ नेन्सिद्धबध्नातिषु च ॥ ६,३.१९ ॥ स्थे च भाषायाम् ॥ ६,३.२० ॥ षष्ठ्या आक्रोशे ॥ ६,३.२१ ॥ पुत्रेऽन्यतरस्याम् ॥ ६,३.२२ ॥ ऋतो विद्यायोनिसम्बन्धेभ्यः ॥ ६,३.२३ ॥ विभाषा स्वसृपत्योः ॥ ६,३.२४ ॥ अनङृतो द्वन्द्वे ॥ ६,३.२५ ॥ देवताद्वन्द्वे च ॥ ६,३.२६ ॥ ईदग्नेः सोमवरुणयोः ॥ ६,३.२७ ॥ इद्वृद्धौ ॥ ६,३.२८ ॥ देवो द्यावा ॥ ६,३.२९ ॥ दिवसश्च पृथिव्याम् ॥ ६,३.३० ॥ उषासोषसः ॥ ६,३.३१ ॥ मातरपितरावुदीचम् ॥ ६,३.३२ ॥ पितरामातरा च च्छन्दसि ॥ ६,३.३३ ॥ स्त्रियाः पुंवद्भाषीतपुंस्कादनूङ्समानाधिकरणे स्त्रियामपूरणीप्रियादिषु ॥ ६,३.३४ ॥ तसिलादिष्वा कृत्वसुचः ॥ ६,३.३५ ॥ क्यङ्मानिनोश्च ॥ ६,३.३६ ॥ न कोपधायाः ॥ ६,३.३७ ॥ सञ्ज्ञापूरण्योश्च ॥ ६,३.३८ ॥ वृद्धिनिमित्तस्य च तद्धितस्यारक्तविकारे ॥ ६,३.३९ ॥ स्वाङ्गाच्च+इतोऽमानिनि ॥ ६,३.४० ॥ जातेश्च ॥ ६,३.४१ ॥ पुंवत्कर्मधारयजातीयदेशीयेषु ॥ ६,३.४२ ॥ घरूपकल्पचेलड्ब्रूवगोत्रमतहतेषु ङ्योऽनेकाचो ह्रस्वः ॥ ६,३.४३ ॥ नद्याः शेषस्यान्यतरस्याम् ॥ ६,३.४४ ॥ उगितश्च ॥ ६,३.४५ ॥ आन्महतः समानाधिकरनजातीययोः ॥ ६,३.४६ ॥ द्व्यष्टनः सङ्ख्यायामबहुव्रीह्यशीत्योः ॥ ६,३.४७ ॥ त्रेस्त्रयः ॥ ६,३.४८ ॥ विभाषा चत्वारिंशत्प्रभृतौ सर्वेषाम् ॥ ६,३.४९ ॥ हृदयस्य हृल्लेखयदण्लासेषु ॥ ६,३.५० ॥ वा शोकष्यञ्रोगेषु ॥ ६,३.५१ ॥ पादस्य पदाज्यातिगोपहतेसु ॥ ६,३.५२ ॥ पद्यत्यतदर्थे ॥ ६,३.५३ ॥ हिमकाषिहतिसु च ॥ ६,३.५४ ॥ ऋचः शे ॥ ६,३.५५ ॥ वा घोषमिश्रशब्देषु ॥ ६,३.५६ ॥ उदकस्य+उदः सञ्ज्ञायाम् ॥ ६,३.५७ ॥ पेषम्वासवाहनधिषु च ॥ ६,३.५८ ॥ एकहलादौ पूरयितव्येऽन्यतरस्याम् ॥ ६,३.५९ ॥ मन्थौदनसक्तुबिन्दुवज्रभारहारवीवधगाहेषु च ॥ ६,३.६० ॥ इको ह्रस्वोऽङ्यो गालवस्य ॥ ६,३.६१ ॥ एक तद्धिते च ॥ ६,३.६२ ॥ ङ्यापोः सञ्ज्ञाछन्दसोर्बहुलम् ॥ ६,३.६३ ॥ त्वे च ॥ ६,३.६४ ॥ इष्टकेषीकामालानां चिततूलभारिषु ॥ ६,३.६५ ॥ खित्यनव्ययस्य ॥ ६,३.६६ ॥ अरुर्द्विषदजन्तस्य मुम् ॥ ६,३.६७ ॥ इच एकाचोऽम्प्रत्ययवच्च ॥ ६,३.६८ ॥ वाचंयमपुरन्दरौ च ॥ ६,३.६९ ॥ कारे सत्यागदस्य ॥ ६,३.७० ॥ श्येनतिलस्य पाते ञे ॥ ६,३.७१ ॥ रात्रेः कृति विभाषा ॥ ६,३.७२ ॥ नलोपो नञः ॥ ६,३.७३ ॥ तस्मान्नुडचि ॥ ६,३.७४ ॥ नभ्राण्नपान्नवेदानासत्यानमुचिनकुलनखनपुंसकनक्षत्रनक्रनाकेषु प्रकृत्या ॥ ६,३.७५ ॥ एकादिश्च+एकस्य च आदुक् ॥ ६,३.७६ ॥ नगोऽप्राणिष्वन्यतरस्याम् ॥ ६,३.७७ ॥ सहस्य सः सञ्ज्ञायाम् ॥ ६,३.७८ ॥ ग्रन्थान्ताधिके च ॥ ६,३.७९ ॥ द्वितीये चानुपाख्ये ॥ ६,३.८० ॥ अव्ययीभावे चाकाले ॥ ६,३.८१ ॥ वा+उपसर्जनस्य ॥ ६,३.८२ ॥ प्रकृत्या आशिष्यगोवत्सहलेषु ॥ ६,३.८३ ॥ समानस्य छन्दस्यपूर्धप्रभृत्युदर्केषु ॥ ६,३.८४ ॥ ज्योतिर्जनपदरात्रिनाभिनामगोत्ररूपस्थानवर्णवर्योवचनबन्धुषु ॥ ६,३.८५ ॥ चरणे ब्रह्मचारिणि ॥ ६,३.८६ ॥ तीर्थे ये ॥ ६,३.८७ ॥ विभाषा+उदरे ॥ ६,३.८८ ॥ दृग्दृशवतुषु ॥ ६,३.८९ ॥ इदं किमोरीश्की ॥ ६,३.९० ॥ आ सर्वनाम्नः ॥ ६,३.९१ ॥ विष्वग्देवयोश्च टेरद्र्यञ्चतौ वप्रत्यये ॥ ६,३.९२ ॥ समः समि ॥ ६,३.९३ ॥ तिरसस्तिर्यलोपे ॥ ६,३.९४ ॥ सहस्य सध्रिः ॥ ६,३.९५ ॥ सध मादस्थयोश्छन्दसि ॥ ६,३.९६ ॥ द्व्यन्तरुपसर्गेभ्योऽप ईत् ॥ ६,३.९७ ॥ ऊदनोर्देशे ॥ ६,३.९८ ॥ अषष्थ्यतृतीयास्थस्यानयस्य दुगाशीराशास्थास्थितोत्सुकोतिकारकरागच्छेषु ॥ ६,३.९९ ॥ अर्थे विभाषा ॥ ६,३.१०० ॥ कोः कत्तत्पुरुषेऽचि ॥ ६,३.१०१ ॥ रथवदयोश्च ॥ ६,३.१०२ ॥ दृणे च जातौ ॥ ६,३.१०३ ॥ का पथ्यक्षयोः ॥ ६,३.१०४ ॥ ईषदर्थे च ॥ ६,३.१०५ ॥ विभाषा पुरुषे ॥ ६,३.१०६ ॥ कवञ्चोष्णे ॥ ६,३.१०७ ॥ पथि च च्छन्दसि ॥ ६,३.१०८ ॥ पृषोदरादीनि यथोपदिष्टम् ॥ ६,३.१०९ ॥ सङ्ख्याविसायपूर्वस्याह्नस्याहन्नन्यतरस्यां ङौ ॥ ६,३.११० ॥ ढ्रलोपे पूर्वस्य दीर्घोऽणः ॥ ६,३.१११ ॥ सहिवहोरोदवर्णस्य ॥ ६,३.११२ ॥ साढ्यै साढ्वा साढ+इति निगमे ॥ ६,३.११३ ॥ संहितायाम् ॥ ६,३.११४ ॥ कर्णे लक्षणस्याविष्टाष्टपञ्चमणिभिन्नच्छिन्नच्छिद्रस्रुवस्वस्तिकस्य ॥ ६,३.११५ ॥ नहिवृतिवृषिव्यधिरुचिसहितनिषु क्वौ ॥ ६,३.११६ ॥ वनगिर्योः सज्ञायां कोटरकिंशुलुकादीनाम् ॥ ६,३.११७ ॥ वले ॥ ६,३.११८ ॥ मतौ बह्वचोऽनजिरादीनाम् ॥ ६,३.११९ ॥ शरादीनां च ॥ ६,३.१२० ॥ इको वहेऽपीलोः ॥ ६,३.१२१ ॥ उपसर्गस्य घञ्यमनुष्ये बहुलम् ॥ ६,३.१२२ ॥ इकः काशे ॥ ६,३.१२३ ॥ दस्ति ॥ ६,३.१२४ ॥ अष्टनः सञ्ज्ञायाम् ॥ ६,३.१२५ ॥ छन्दसि च ॥ ६,३.१२६ ॥ चितेः कपि ॥ ६,३.१२७ ॥ विश्वस्य वसुराटोः ॥ ६,३.१२८ ॥ नरे सञ्ज्ञायाम् ॥ ६,३.१२९ ॥ मित्रे चर्षौ ॥ ६,३.१३० ॥ मन्त्रे सोमाश्वेन्द्रियविश्वदेव्यस्य मतौ ॥ ६,३.१३१ ॥ ओषधेश्च विभक्तावप्रथमायाम् ॥ ६,३.१३२ ॥ ऋचि तुनुघमक्षुतङ्कुत्रोरुष्याणाम् ॥ ६,३.१३३ ॥ इकः सुञि ॥ ६,३.१३४ ॥ द्व्यचोऽतस्तिङः ॥ ६,३.१३५ ॥ निपातस्य च ॥ ६,३.१३६ ॥ अन्येषामपि दृश्यते ॥ ६,३.१३७ ॥ चौ ॥ ६,३.१३८ ॥ सम्प्रसारणस्य ॥ ६,३.१३९ ॥ अङ्गस्य ॥ ६,४.१ ॥ हलः ॥ ६,४.२ ॥ नामि ॥ ६,४.३ ॥ न तिसृचतसृ ॥ ६,४.४ ॥ छन्दस्युभयथा ॥ ६,४.५ ॥ नृ च ॥ ६,४.६ ॥ नोपधायाः ॥ ६,४.७ ॥ सर्वनामस्थाने चासम्बुद्धौ ॥ ६,४.८ ॥ वा षपूर्वस्य निगमे ॥ ६,४.९ ॥ सान्तमहतः संयोगस्य ॥ ६,४.१० ॥ अप्तृन्तृच्स्वसृनप्तृनेष्टृत्वष्टृक्षत्तृहोतृपोतृप्रशास्तॄणाम् ॥ ६,४.११ ॥ इन्हन्पूषार्यम्णां शौ ॥ ६,४.१२ ॥ सौ च ॥ ६,४.१३ ॥ अत्वसन्तस्य चाधातोः ॥ ६,४.१४ ॥ अनुनासिकस्य क्विझलोः क्ङिति ॥ ६,४.१५ ॥ अज्झनगमां सनि ॥ ६,४.१६ ॥ तनोतेर्विभाषा ॥ ६,४.१७ ॥ क्रमश्च क्त्वि ॥ ६,४.१८ ॥ च्च्ःवोः शूड्ःनुनासिके च ॥ ६,४.१९ ॥ ज्वरत्वरस्रिव्यविमवामुपधायाश्च ॥ ६,४.२० ॥ राल्लोपः ॥ ६,४.२१ ॥ असिद्धवत्रा भात् ॥ ६,४.२२ ॥ श्नान्नलोपः ॥ ६,४.२३ ॥ अनिदितां हल उपधायाः क्ङिति ॥ ६,४.२४ ॥ दंशसञ्जस्वञ्जां शपि ॥ ६,४.२५ ॥ रञ्जेश्च ॥ ६,४.२६ ॥ घञि च भावकरनयोः ॥ ६,४.२७ ॥ स्यदो जवे ॥ ६,४.२८ ॥ अवोदैद्ःोद्मप्रश्रथहिमश्रथाः ॥ ६,४.२९ ॥ नाञ्चेः पूजायाम् ॥ ६,४.३० ॥ क्त्वि स्कन्दिस्यन्दोः ॥ ६,४.३१ ॥ जान्तनशां विभाषा ॥ ६,४.३२ ॥ भञ्जेश्च चिणि ॥ ६,४.३३ ॥ शास इदङ्हलोः ॥ ६,४.३४ ॥ शा हौ ॥ ६,४.३५ ॥ हन्तेर्जः ॥ ६,४.३६ ॥ अनुदात्तोपदेशवनतितनोत्यादीनामनुनासिकलोपो झलि क्ङिति ॥ ६,४.३७ ॥ वा ल्यपि ॥ ६,४.३८ ॥ न क्तिचि दीर्घश्च ॥ ६,४.३९ ॥ गमः क्वौ ॥ ६,४.४० ॥ विड्वनोरनुनासिकस्य आत् ॥ ६,४.४१ ॥ जनसनखनां सञ्झलोः ॥ ६,४.४२ ॥ ये विभाषा ॥ ६,४.४३ ॥ तनोतेर्यकि ॥ ६,४.४४ ॥ सनः क्तिचि लोपश्चास्यान्यतरस्याम् ॥ ६,४.४५ ॥ आर्धधातुके ॥ ६,४.४६ ॥ भ्रस्जो रोपधयो रमन्यतरस्याम् ॥ ६,४.४७ ॥ अतो लोपः ॥ ६,४.४८ ॥ यस्य हलः ॥ ६,४.४९ ॥ क्यस्य विभाषा ॥ ६,४.५० ॥ णेरनिटि ॥ ६,४.५१ ॥ निष्ठायां सेटि ॥ ६,४.५२ ॥ जनिता मन्त्रे ॥ ६,४.५३ ॥ शमिता यज्ञे ॥ ६,४.५४ ॥ अयामन्ताल्वाय्येत्न्विष्णुषु ॥ ६,४.५५ ॥ ल्यपि लघुपूर्वात् ॥ ६,४.५६ ॥ विभाषा+आपः ॥ ६,४.५७ ॥ युप्लुवोर्दीर्घश्छन्दसि ॥ ६,४.५८ ॥ क्षियः ॥ ६,४.५९ ॥ नष्ठायामण्यदर्थे ॥ ६,४.६० ॥ वा+आक्रोशदैन्ययोः ॥ ६,४.६१ ॥ स्यसिच्सीयुट्तासिषु भावकर्मणोरुपदेशेऽज्झनग्रहदृशां वा चिण्वदिट्च ॥ ६,४.६२ ॥ दीङो युडचि क्ङिति ॥ ६,४.६३ ॥ आतो लोप इटि च ॥ ६,४.६४ ॥ ईद्यति ॥ ६,४.६५ ॥ घुमास्थागापाजहातिसा हलि ॥ ६,४.६६ ॥ एर्लिङि ॥ ६,४.६७ ॥ वाऽन्यस्य संयोगादेः ॥ ६,४.६८ ॥ न ल्यपि ॥ ६,४.६९ ॥ मयतेरिदन्यतरस्याम् ॥ ६,४.७० ॥ लुङ्लङ्लृङ्क्ष्वडुदात्तः ॥ ६,४.७१ ॥ आडजादीनाम् ॥ ६,४.७२ ॥ छन्दस्यपि दृश्यते ॥ ६,४.७३ ॥ न माङ्योगे ॥ ६,४.७४ ॥ बहुलं छन्दस्यमाङ्योगेऽपि ॥ ६,४.७५ ॥ इरयो रे ॥ ६,४.७६ ॥ अचि श्नुधातुभ्रुवां य्वोरियङुवङौ ॥ ६,४.७७ ॥ अभ्यासस्यासवर्णे ॥ ६,४.७८ ॥ स्त्रियाः ॥ ६,४.७९ ॥ वाऽम्‌शसोः ॥ ६,४.८० ॥ इणो यण् ॥ ६,४.८१ ॥ एरनेकाचोऽसम्योगपूर्वस्य ॥ ६,४.८२ ॥ ओः सुपि ॥ ६,४.८३ ॥ वर्षाभ्वश्च ॥ ६,४.८४ ॥ न भूसुधियोः ॥ ६,४.८५ ॥ छन्दस्युभयथा ॥ ६,४.८६ ॥ हुश्नुवोः सार्वधातुके ॥ ६,४.८७ ॥ भुवो वुग्लुङ्लिटोः ॥ ६,४.८८ ॥ ऊदुपधाया गोहः ॥ ६,४.८९ ॥ दोषो णौ ॥ ६,४.९० ॥ वा चित्तविरागे ॥ ६,४.९१ ॥ मितां ह्रस्वः ॥ ६,४.९२ ॥ चिण्णमुलोर्दीर्घोऽन्यतरस्याम् ॥ ६,४.९३ ॥ खचि ह्रस्वः ॥ ६,४.९४ ॥ ह्लादो निष्ठायाम् ॥ ६,४.९५ ॥ छादेर्घेऽद्व्युपसर्गस्य ॥ ६,४.९६ ॥ इस्मन्त्रन्क्विषु च ॥ ६,४.९७ ॥ गमहनजनखनघसां लोपः क्ङित्यनङि ॥ ६,४.९८ ॥ तनिपत्योश्छन्दसि ॥ ६,४.९९ ॥ घसिभसोर्हलि च ॥ ६,४.१०० ॥ हुझल्भ्यो हेर्धिः ॥ ६,४.१०१ ॥ श्रुशृणुपॄकृवृभ्यश्छन्दसि ॥ ६,४.१०२ ॥ अङितश्च ॥ ६,४.१०३ ॥ चिणो लुक् ॥ ६,४.१०४ ॥ अतो हेः ॥ ६,४.१०५ ॥ उतश्च प्रत्ययादसंयोगपूर्वात् ॥ ६,४.१०६ ॥ लोपश्चास्यान्यतरस्यां ंवोः ॥ ६,४.१०७ ॥ नित्यं करोतेः ॥ ६,४.१०८ ॥ ये च ॥ ६,४.१०९ ॥ अत उत्सार्वधातुके ॥ ६,४.११० ॥ श्नसोरल्लोपः ॥ ६,४.१११ ॥ श्नाभ्यस्तयोरातः ॥ ६,४.११२ ॥ ई हल्यधोः ॥ ६,४.११३ ॥ इद्दरिद्रस्य ॥ ६,४.११४ ॥ भियोऽन्यतरस्यम् ॥ ६,४.११५ ॥ जहातेश्च ॥ ६,४.११६ ॥ आ च हौ ॥ ६,४.११७ ॥ लोपो यि ॥ ६,४.११८ ॥ घ्वसोरेद्धावभ्यासलोपश्च ॥ ६,४.११९ ॥ अत एकहल्मध्येऽनादेशादेर्लिटि ॥ ६,४.१२० ॥ थलि च सेति ॥ ६,४.१२१ ॥ तॄफलभजत्रपश्च ॥ ६,४.१२२ ॥ रधो हिंसायाम् ॥ ६,४.१२३ ॥ वा जॄभ्रमुत्रसाम् ॥ ६,४.१२४ ॥ फणां च सप्तानाम् ॥ ६,४.१२५ ॥ न शसददवादिगुणानाम् ॥ ६,४.१२६ ॥ अर्वणस्त्रसावनञः ॥ ६,४.१२७ ॥ मघवा बहुलम् ॥ ६,४.१२८ ॥ भस्य ॥ ६,४.१२९ ॥ वक्ष्यति पादः पत् ॥ ६,४.१३० ॥ वसोः सम्प्रसारणं ॥ ६,४.१३१ ॥ वाह ऊट्ः ॥ ६,४.१३२ ॥ श्वयुवमघोनामतद्धिते ॥ ६,४.१३३ ॥ अल्लोपोऽनः ॥ ६,४.१३४ ॥ षपूर्वहन्धृतराज्ञामणि ॥ ६,४.१३५ ॥ विभाषा ङिश्योः ॥ ६,४.१३६ ॥ न संयोगाद्वमन्तात् ॥ ६,४.१३७ ॥ अचः ॥ ६,४.१३८ ॥ उद ईत् ॥ ६,४.१३९ ॥ आतो धातोः ॥ ६,४.१४० ॥ मन्त्रेष्वाङ्यादेरात्मनः ॥ ६,४.१४१ ॥ ति विंशतेर्डिति ॥ ६,४.१४२ ॥ टेः ॥ ६,४.१४३ ॥ नस्तद्धिते ॥ ६,४.१४४ ॥ अह्नष्टखेरेव ॥ ६,४.१४५ ॥ ओर्गुणः ॥ ६,४.१४६ ॥ ढे लोपोऽकद्र्वाः ॥ ६,४.१४७ ॥ यस्य+इति च ॥ ६,४.१४८ ॥ सूर्यतिष्यागस्त्यमत्स्यानां य उपधायाः ॥ ६,४.१४९ ॥ हलस्तद्धितस्य ॥ ६,४.१५० ॥ आपत्यस्य च तद्धितेऽनाति ॥ ६,४.१५१ ॥ क्यच्व्योश्च ॥ ६,४.१५२ ॥ बिल्वकादिभ्यश्छस्य लुक् ॥ ६,४.१५३ ॥ तुरिष्ठेमेयस्सु ॥ ६,४.१५४ ॥ टेः ॥ ६,४.१५५ ॥ स्थूलदूरयुवह्रस्वक्षिप्रक्षुद्राणां यणादिपरं पूर्वस्य च गुणः ॥ ६,४.१५६ ॥ प्रियस्थिरस्फिरोरुबहुलगुरुवृद्धतृप्रदीर्घवृन्दारकाणां प्रस्थस्फवर्बंहिगर्वर्षित्रब्द्राघिवृन्दाः ॥ ६,४.१५७ ॥ बहोर्लोपो भू च बहोः ॥ ६,४.१५८ ॥ इष्ठस्य यिट्च ॥ ६,४.१५९ ॥ ज्यादादीयसः ॥ ६,४.१६० ॥ र ऋतो हलादेर्लघोः ॥ ६,४.१६१ ॥ विभाषा र्जोश्छन्दसि ॥ ६,४.१६२ ॥ प्रकृत्या+एकाच् ॥ ६,४.१६३ ॥ इनण्यनपत्ये ॥ ६,४.१६४ ॥ गाथिविदथिकेशिगणिपणिनश्च ॥ ६,४.१६५ ॥ संयोगादिश्च ॥ ६,४.१६६ ॥ अन् ॥ ६,४.१६७ ॥ ये चाभावकर्मणोः ॥ ६,४.१६८ ॥ आत्माध्वानौ खे ॥ ६,४.१६९ ॥ न मपूर्वोऽपत्येऽवर्मणः ॥ ६,४.१७० ॥ ब्राह्मोऽजातौ ॥ ६,४.१७१ ॥ कार्मस्ताच्छील्ये ॥ ६,४.१७२ ॥ औक्षमनपत्ये ॥ ६,४.१७३ ॥ दाण्डिनायनहास्तिनायनाथर्वणिकजैह्माशिनेयवासिनायनिभ्रौणहत्यधैवत्यसारवाइक्ष्वाकमैत्रेयहिरण्मयानि ॥ ६,४.१७४ ॥ ऋत्व्यवास्त्व्यवास्त्वमाध्वीहिरण्ययानि च्छन्दसि ॥ ६,४.१७५ ॥ युवोरनाकौ ॥ ७,१.१ ॥ आयनेयीनीयियः फढखछघां प्रत्ययाअदीनाम् ॥ ७,१.२ ॥ झोऽन्तः ॥ ७,१.३ ॥ अदभ्यस्तात् ॥ ७,१.४ ॥ आत्मनेपदेष्वनतः ॥ ७,१.५ ॥ शीङो रुट् ॥ ७,१.६ ॥ वेत्तेर्विभाषा ॥ ७,१.७ ॥ बहुलं छन्दसि ॥ ७,१.८ ॥ अतो भिसाइस् ॥ ७,१.९ ॥ बहुलं छन्दसि ॥ ७,१.१० ॥ न+इदमदसोरकोः ॥ ७,१.११ ॥ टाङसिङसामिनात्स्याः ॥ ७,१.१२ ॥ ङेर्यः ॥ ७,१.१३ ॥ सर्वनाम्नः स्मै ॥ ७,१.१४ ॥ ङसिङ्योः समात्स्मिनौ ॥ ७,१.१५ ॥ पूर्वादिभ्यो नवभ्यो वा ॥ ७,१.१६ ॥ जसः शी ॥ ७,१.१७ ॥ औङ आपः ॥ ७,१.१८ ॥ नपुंसकाच्च ॥ ७,१.१९ ॥ जश्शसोः शिः ॥ ७,१.२० ॥ अष्टाभ्याउश् ॥ ७,१.२१ ॥ षड्भ्यो लुक् ॥ ७,१.२२ ॥ स्वमोर्नपुंसकात् ॥ ७,१.२३ ॥ अतोऽम् ॥ ७,१.२४ ॥ अद्ड्डतरादिभ्यः पञ्चभ्यः ॥ ७,१.२५ ॥ न+इतराच्छन्दसि ॥ ७,१.२६ ॥ युष्मदस्मद्भ्यां ङसोऽश् ॥ ७,१.२७ ॥ ङे प्रथमयोरम् ॥ ७,१.२८ ॥ शसो न ॥ ७,१.२९ ॥ भ्यसो भ्यम् ॥ ७,१.३० ॥ पञ्चम्या अत् ॥ ७,१.३१ ॥ एकवचनस्य च ॥ ७,१.३२ ॥ साम आकम् ॥ ७,१.३३ ॥ आताउ णलः ॥ ७,१.३४ ॥ तुह्योस्तातङाशिष्यन्यतरस्याम् ॥ ७,१.३५ ॥ विदेः शतुर्वसुः ॥ ७,१.३६ ॥ समासेऽनञ्पूर्वे क्त्वो ल्यप् ॥ ७,१.३७ ॥ क्त्वा अपि छन्दसि ॥ ७,१.३८ ॥ सुपां सुलुक्पूर्वसवर्नाच्छेयाडाड्यायाजालः ॥ ७,१.३९ ॥ अमो मश् ॥ ७,१.४० ॥ लोपस्त आत्मनेपदेषु ॥ ७,१.४१ ॥ ध्वमो ध्वात् ॥ ७,१.४२ ॥ यजध्वैनमिति च ॥ ७,१.४३ ॥ तस्य तात् ॥ ७,१.४४ ॥ तप्तनप्तनथनाश्च ॥ ७,१.४५ ॥ इदन्तो मसि ॥ ७,१.४६ ॥ क्त्वो यक् ॥ ७,१.४७ ॥ इष्ट्वीनमिति च ॥ ७,१.४८ ॥ स्नात्व्यादयश्च ॥ ७,१.४९ ॥ आज्जसेरसुक् ॥ ७,१.५० ॥ अश्वक्षीरवृषलवणानामात्मप्रीतौ क्यचि ॥ ७,१.५१ ॥ आमि सर्वनाम्नः सुट् ॥ ७,१.५२ ॥ त्रेस्त्रयः ॥ ७,१.५३ ॥ ह्रस्वनद्यापो नुट् ॥ ७,१.५४ ॥ षट्चतुर्भ्यश्च ॥ ७,१.५५ ॥ श्रीग्रामण्योश्छन्दसि ॥ ७,१.५६ ॥ गोः पादान्ते ॥ ७,१.५७ ॥ इदतो नुं धातोः ॥ ७,१.५८ ॥ शे मुचादीनाम् ॥ ७,१.५९ ॥ मस्जिनशोर्झलि ॥ ७,१.६० ॥ रधिजभोरचि ॥ ७,१.६१ ॥ नेट्यलिटि रधेः ॥ ७,१.६२ ॥ रभेरशब्लिटोः ॥ ७,१.६३ ॥ लभेश्च ॥ ७,१.६४ ॥ आङो यि ॥ ७,१.६५ ॥ उपात्प्रशंसायाम् ॥ ७,१.६६ ॥ उपसर्गात्खल्घञोः ॥ ७,१.६७ ॥ न सुदुर्भ्यां केवलाभ्याम् ॥ ७,१.६८ ॥ विभाषा चिण्णमुलोः ॥ ७,१.६९ ॥ उगिदचां सर्वनामस्थानेऽधातोः ॥ ७,१.७० ॥ युजेरसमासे ॥ ७,१.७१ ॥ नपुंसकस्य झलचः ॥ ७,१.७२ ॥ इकोऽचि विभक्तौ ॥ ७,१.७३ ॥ तृतीयादिषु भाषितपुंस्कं पुंवद्गालवस्य ॥ ७,१.७४ ॥ अस्थिदधिसक्थ्यक्ष्णामनङुदात्तः ॥ ७,१.७५ ॥ छन्दस्यपि दृश्यते ॥ ७,१.७६ ॥ ई च द्विवचने ॥ ७,१.७७ ॥ नाभ्यस्ताच्छतुः ॥ ७,१.७८ ॥ वा नपुंसकस्य ॥ ७,१.७९ ॥ आच्छीनद्योर्नुम् ॥ ७,१.८० ॥ शप्श्यनोर्नित्यम् ॥ ७,१.८१ ॥ सावनडुह ॥ ७,१.८२ ॥ दृक्स्ववस्स्वतवसां छन्दसि ॥ ७,१.८३ ॥ दिवाउत् ॥ ७,१.८४ ॥ पथिमथ्यृभुक्षामात् ॥ ७,१.८५ ॥ इतोऽत्सर्वनामस्थाने ॥ ७,१.८६ ॥ थो न्थः ॥ ७,१.८७ ॥ भस्य टेर्लोपः ॥ ७,१.८८ ॥ पुंसोऽसुङ् ॥ ७,१.८९ ॥ गोतो णित् ॥ ७,१.९० ॥ णलुत्तमो वा ॥ ७,१.९१ ॥ सख्युरसम्बुद्धौ ॥ ७,१.९२ ॥ अनङ्सौ ॥ ७,१.९३ ॥ ऋदुशनस्पुरुदंसोऽनेहसां च ॥ ७,१.९४ ॥ तृज्वत्क्रोष्टुः ॥ ७,१.९५ ॥ स्त्रियां च ॥ ७,१.९६ ॥ विभाषा तृतीयादिष्वचि ॥ ७,१.९७ ॥ चतुरनडुहोरामुदात्तः ॥ ७,१.९८ ॥ अं सम्बुद्धौ ॥ ७,१.९९ ॥ ॠत इद्धतोः ॥ ७,१.१०० ॥ उपधायाश्च ॥ ७,१.१०१ ॥ उदोष्ठ्यपूर्वस्य ॥ ७,१.१०२ ॥ बहुलं छन्दसि ॥ ७,१.१०३ ॥ सिचि वृद्धिः परस्मैपदेषु ॥ ७,२.१ ॥ अतो ल्रान्तस्य ॥ ७,२.२ ॥ वदव्रजहलन्तस्याचः ॥ ७,२.३ ॥ नेटि ॥ ७,२.४ ॥ ह्म्यन्तक्षणश्वसजागृणिश्व्येदिताम् ॥ ७,२.५ ॥ ऊर्णोतेर्विभाषा ॥ ७,२.६ ॥ अतो हलादेर्लघोः ॥ ७,२.७ ॥ नेड्वशि कृति ॥ ७,२.८ ॥ तितुत्रतथसिसुसरकसेषु च ॥ ७,२.९ ॥ एकाच उपदेशेऽनुदात्तात् ॥ ७,२.१० ॥ श्र्युकः किति ॥ ७,२.११ ॥ सनि ग्रहगुहोश्च ॥ ७,२.१२ ॥ कृसृभृवृस्तुद्रुस्रुश्रुवो लिटि ॥ ७,२.१३ ॥ श्वीदितो निष्थायाम् ॥ ७,२.१४ ॥ यस्य विभाषा ॥ ७,२.१५ ॥ आदितश्च ॥ ७,२.१६ ॥ विभाषा भावादिकर्मणोः ॥ ७,२.१७ ॥ क्षुब्धस्वान्तध्वान्तलग्नम्लिष्टविरिब्धफाण्टबाढानि मन्थमनस्तमःसक्ताविस्पष्टस्वरानायासभृशेषु ॥ ७,२.१८ ॥ धृषी शसी वैयात्ये ॥ ७,२.१९ ॥ दृढः स्थूलबलयोः ॥ ७,२.२० ॥ प्रभौ परिवृढः ॥ ७,२.२१ ॥ कृच्छ्रगहनयोः कषः ॥ ७,२.२२ ॥ घुषिरविशब्दने ॥ ७,२.२३ ॥ अर्देः संनिविभ्यः ॥ ७,२.२४ ॥ अभेश्च आविदूर्ये ॥ ७,२.२५ ॥ णेरध्ययने वृत्तम् ॥ ७,२.२६ ॥ वा दान्तशान्तपूर्णदस्तस्पष्टच्छन्नज्ञप्ताः ॥ ७,२.२७ ॥ रुष्यमत्वरसङ्घुषास्वनाम् ॥ ७,२.२८ ॥ हृषेर्लोमसु ॥ ७,२.२९ ॥ अपचितश्च ॥ ७,२.३० ॥ ह्रु ह्वरेश्छन्दसि ॥ ७,२.३१ ॥ अपरिह्वृताश्च ॥ ७,२.३२ ॥ सोमे ह्वरितः ॥ ७,२.३३ ॥ ग्रसितस्कभितस्तभितोत्तभितचत्तविकस्ता विशस्तृशंस्तृशास्तृतरुतृतरूतृवरुतृवरूतृवरूत्रीरुज्ज्वलितिक्षरितिक्षमितिवमित्यमिति इति च ॥ ७,२.३४ ॥ आर्धधातुकस्य+इड्वलादेः ॥ ७,२.३५ ॥ स्नुक्रमोरनात्मनेपदनिमित्ते ॥ ७,२.३६ ॥ ग्रहोऽलिटि दीर्घः ॥ ७,२.३७ ॥ वॄतो वा ॥ ७,२.३८ ॥ न लिङि ॥ ७,२.३९ ॥ सिचि च परस्मैपदेषु ॥ ७,२.४० ॥ इट्सनि वा ॥ ७,२.४१ ॥ लिङ्सिचोरात्मनेपदेषु ॥ ७,२.४२ ॥ ऋतश्च संयोगादेः ॥ ७,२.४३ ॥ स्वरतिसूतिसूयतिधूञूदितो वा ॥ ७,२.४४ ॥ रधादिभ्यश्च ॥ ७,२.४५ ॥ निरः कुषः ॥ ७,२.४६ ॥ इण्निष्ठायाम् ॥ ७,२.४७ ॥ तीषसहलुभरुषरिषः ॥ ७,२.४८ ॥ सनि इवन्तर्धभ्रस्जदम्भुश्रिस्वृयूर्णुभरज्ञपिसनाम् ॥ ७,२.४९ ॥ क्लिशः क्त्वानिष्ठयोः ॥ ७,२.५० ॥ पूङश्च ॥ ७,२.५१ ॥ वसतिक्षुधोरिट् ॥ ७,२.५२ ॥ अञ्चेः पूजायाम् ॥ ७,२.५३ ॥ लुभो विमोहने ॥ ७,२.५४ ॥ जॄव्रश्च्योः क्त्वि ॥ ७,२.५५ ॥ उदितो वा ॥ ७,२.५६ ॥ सेऽसिचि कृतचृतच्छृदतृदनृतः ॥ ७,२.५७ ॥ गमेरिट्परस्मैपदेषु ॥ ७,२.५८ ॥ न वृद्भ्यश्चतुर्भ्यः ॥ ७,२.५९ ॥ तासि च कॢपः ॥ ७,२.६० ॥ अचस्तास्वत्थल्यनिटो नित्यम् ॥ ७,२.६१ ॥ उपदेशेऽत्वतः ॥ ७,२.६२ ॥ ऋतो भारद्वाजस्य ॥ ७,२.६३ ॥ वभूथाततन्थजगृभ्मववर्थ+इति निगमे ॥ ७,२.६४ ॥ विभाषा सृजिदृशोः ॥ ७,२.६५ ॥ इडत्त्यर्तिव्ययतीनाम् ॥ ७,२.६६ ॥ वस्वेकाजाद्घसाम् ॥ ७,२.६७ ॥ विभाषा गमहनविदविशाम् ॥ ७,२.६८ ॥ सनिंससनिवांसम् ॥ ७,२.६९ ॥ ऋद्धनोः स्ये ॥ ७,२.७० ॥ अज्ञेः सिचि ॥ ७,२.७१ ॥ स्तुसुधूञ्भ्यः परस्मैपदेषु ॥ ७,२.७२ ॥ यमरमनमातां सक्च ॥ ७,२.७३ ॥ स्मिपूङ्रञ्ज्वशां सनि ॥ ७,२.७४ ॥ किरश्च पञ्चभ्यः ॥ ७,२.७५ ॥ रुदादिभ्यः सार्वधातुके ॥ ७,२.७६ ॥ ईशः से ॥ ७,२.७७ ॥ ईडजनोर्ध्वे च ॥ ७,२.७८ ॥ लिङः सलोपोऽनन्त्यस्य ॥ ७,२.७९ ॥ अतो येयः ॥ ७,२.८० ॥ आतो ङितः ॥ ७,२.८१ ॥ आने मुक् ॥ ७,२.८२ ॥ ईदासः ॥ ७,२.८३ ॥ अष्टन आ विभक्तौ ॥ ७,२.८४ ॥ रायो हलि ॥ ७,२.८५ ॥ युष्मदस्मदोरनादेशे ॥ ७,२.८६ ॥ द्वितीयायां च ॥ ७,२.८७ ॥ प्रथमायाश्च द्विवचने भाषायाम् ॥ ७,२.८८ ॥ योऽचि ॥ ७,२.८९ ॥ शेषे लोपः ॥ ७,२.९० ॥ मपर्यन्तस्य ॥ ७,२.९१ ॥ वक्ष्यति युवावौ द्विवचने ॥ ७,२.९२ ॥ यूयवयौ जसि ॥ ७,२.९३ ॥ त्वाहौ सौ ॥ ७,२.९४ ॥ तुभ्यमह्यौ ङयि ॥ ७,२.९५ ॥ तवममौ ङसि ॥ ७,२.९६ ॥ त्वमावेकवचने ॥ ७,२.९७ ॥ प्रत्ययोत्तरपदयोश्च ॥ ७,२.९८ ॥ त्रिचतुरोः स्त्रियां तिसृचतसृ ॥ ७,२.९९ ॥ अचि र ऋतः ॥ ७,२.१०० ॥ जराया जरसन्यतरस्याम् ॥ ७,२.१०१ ॥ त्यदादीनामः ॥ ७,२.१०२ ॥ किमः कः ॥ ७,२.१०३ ॥ कु तिहोः ॥ ७,२.१०४ ॥ क्वाति ॥ ७,२.१०५ ॥ तदोः सः सावनन्त्ययोः ॥ ७,२.१०६ ॥ अदसाउ सुलोपश्च ॥ ७,२.१०७ ॥ इदमो मः ॥ ७,२.१०८ ॥ दश्च ॥ ७,२.१०९ ॥ यः सौ ॥ ७,२.११० ॥ इदोऽय्पुंसि ॥ ७,२.१११ ॥ अनाप्यकः ॥ ७,२.११२ ॥ हलि लोपः ॥ ७,२.११३ ॥ मृजेर्वृद्धिः ॥ ७,२.११४ ॥ अचो ञ्णिति ॥ ७,२.११५ ॥ अत उपधायाः ॥ ७,२.११६ ॥ तद्धितेष्वचामादेः ॥ ७,२.११७ ॥ किति च ॥ ७,२.११८ ॥ देविकाशिंशपादित्यवाड्दीर्घसत्रश्रेयसामात् ॥ ७,३.१ ॥ केकयमित्रयुप्रलयानां यादेरियः ॥ ७,३.२ ॥ न य्वाभ्यां पदान्ताभ्यां पूर्वौ तु ताभ्यामैच् ॥ ७,३.३ ॥ द्वारादीनां च ॥ ७,३.४ ॥ न्यग्रोधस्य च केवलस्य ॥ ७,३.५ ॥ न कर्मव्यतिहारे ॥ ७,३.६ ॥ स्वागतादीनां च ॥ ७,३.७ ॥ श्वादेरिञि ॥ ७,३.८ ॥ पदान्तस्यान्यतरस्याम् ॥ ७,३.९ ॥ उत्तरपदस्य ॥ ७,३.१० ॥ वक्ष्यति अवयवादृतोः ॥ ७,३.११ ॥ सुसर्वार्धाज्जनपदस्य ॥ ७,३.१२ ॥ दिशोऽमद्राणाम् ॥ ७,३.१३ ॥ प्राचां ग्रामनगराणाम् ॥ ७,३.१४ ॥ सङ्ख्यायाः संवत्सरसङ्ख्यस्य च ॥ ७,३.१५ ॥ वर्षस्याभविष्यति ॥ ७,३.१६ ॥ परिमाणान्तस्यासञ्ज्ञाशाणयोः ॥ ७,३.१७ ॥ जे प्रोष्ठपदानाम् ॥ ७,३.१८ ॥ हृद्भगसिन्ध्वन्ते पूर्वपदस्य च ॥ ७,३.१९ ॥ अनुशतिकादीनां च ॥ ७,३.२० ॥ देवताद्वन्द्वे च ॥ ७,३.२१ ॥ न+इन्द्रस्य परस्य ॥ ७,३.२२ ॥ दिर्घाच्च वरुणस्य ॥ ७,३.२३ ॥ प्राचां नगरान्ते ॥ ७,३.२४ ॥ जङ्गलधेनुवलजान्तस्य विभाषितमुत्तरम् ॥ ७,३.२५ ॥ अर्धात्परिमाणस्य पूर्वस्य तु वा ॥ ७,३.२६ ॥ नातः परस्य ॥ ७,३.२७ ॥ प्रवाहणस्य ढे ॥ ७,३.२८ ॥ तत्प्रत्ययस्य च ॥ ७,३.२९ ॥ नञः शुचीश्वरक्षेत्रज्ञकुशलनिपुणानाम् ॥ ७,३.३० ॥ यथातथयथापुरयोः पर्यायेण ॥ ७,३.३१ ॥ हनस्तोऽचिण्णलोः ॥ ७,३.३२ ॥ आतो युक्चिण्कृतोः ॥ ७,३.३३ ॥ न+उदात्तोपदेशस्य मान्तस्यानाचमेः ॥ ७,३.३४ ॥ जनिवध्योश्च ॥ ७,३.३५ ॥ अर्तिह्वीव्लीरीक्नूयीक्ष्माय्यातां पुग्णौ ॥ ७,३.३६ ॥ शाच्छासाह्वाव्यावेपां युक् ॥ ७,३.३७ ॥ वो विधूनने जुक् ॥ ७,३.३८ ॥ लीलोर्नुग्लुकावन्यतरस्यां स्नेहविपातने ॥ ७,३.३९ ॥ भियो हेतुभये षुक् ॥ ७,३.४० ॥ स्फायो वः ॥ ७,३.४१ ॥ शदेरगतौ तः ॥ ७,३.४२ ॥ रुहः पोऽन्यतरस्याम् ॥ ७,३.४३ ॥ प्रत्ययस्थात्कात्पूर्वस्यात इदाप्यसुपः ॥ ७,३.४४ ॥ न यासयोः ॥ ७,३.४५ ॥ उदीचामातः स्थाने यकपूर्वायाः ॥ ७,३.४६ ॥ भस्त्रैषाजाज्ञाद्वास्वा नञ्पूर्वाणामपि ॥ ७,३.४७ ॥ अभाषितपुंस्काच्च ॥ ७,३.४८ ॥ आदाचार्याणाम् ॥ ७,३.४९ ॥ ठस्य+इकः ॥ ७,३.५० ॥ इसुसुक्तान्तात्कः ॥ ७,३.५१ ॥ चजोः कु घिण्ण्यतोः ॥ ७,३.५२ ॥ न्यङ्क्वादीनां च ॥ ७,३.५३ ॥ हो हन्तेर्ञ्णिन्नेषु ॥ ७,३.५४ ॥ अभ्यासाच्च ॥ ७,३.५५ ॥ हेरचङि ॥ ७,३.५६ ॥ सन्लिटोर्जेः ॥ ७,३.५७ ॥ विभाषा चेः ॥ ७,३.५८ ॥ न क्वादेः ॥ ७,३.५९ ॥ अजिव्रज्योश्च ॥ ७,३.६० ॥ भुजन्युब्जौ पाण्युपतापयोः ॥ ७,३.६१ ॥ प्रयाजानुयाजौ यज्ञाङ्गे ॥ ७,३.६२ ॥ वञ्चेर्गतौ ॥ ७,३.६३ ॥ ओक उचः के ॥ ७,३.६४ ॥ ण्य आवश्यके ॥ ७,३.६५ ॥ यजयाचरुचप्रवचर्चश्च ॥ ७,३.६६ ॥ वचोऽशब्दसञ्ज्ञायां ॥ ७,३.६७ ॥ प्रयोज्यनियोज्यौ शक्यार्थे ॥ ७,३.६८ ॥ भोज्यं भक्ष्ये ॥ ७,३.६९ ॥ घोर्लोपो लेटि वा ॥ ७,३.७० ॥ ओतः श्यनि ॥ ७,३.७१ ॥ क्षस्याचि ॥ ७,३.७२ ॥ लुग्वा दुहदिहलिहगुहामात्मनेपदे दन्त्ये ॥ ७,३.७३ ॥ शमामष्टानां दीर्घः श्यनि ॥ ७,३.७४ ॥ ष्ठिवुक्लम्याचमां शिति ॥ ७,३.७५ ॥ क्रमः परस्मैपदेषु ॥ ७,३.७६ ॥ इषुगमियमां छः ॥ ७,३.७७ ॥ पाघ्राध्मास्हाम्नादाण्दृश्यर्तिसर्तिशदसदां पिबजिघ्रधमतिष्थमनयच्छपश्यर्च्छधौशीयसीदाः ॥ ७,३.७८ ॥ ज्ञाजनोर्जा ॥ ७,३.७९ ॥ प्वादीनां ह्रस्वः ॥ ७,३.८० ॥ मीनातेर्निगमे ॥ ७,३.८१ ॥ मिदेर्गुणः ॥ ७,३.८२ ॥ जुसि च ॥ ७,३.८३ ॥ सार्वधातुकार्धधातुकयोः ॥ ७,३.८४ ॥ जाग्रोऽविचिण्णल्ङित्सु ॥ ७,३.८५ ॥ पुगन्तलघूपधस्य च ॥ ७,३.८६ ॥ नाभ्यस्तस्याचि पिति सार्वधातुके ॥ ७,३.८७ ॥ भूसुवोस्तिङि ॥ ७,३.८८ ॥ उतो वृद्धिर्लुकि हलि ॥ ७,३.८९ ॥ ऊर्णोतेर्विभाषा ॥ ७,३.९० ॥ गुणोऽपृक्तो ॥ ७,३.९१ ॥ तृणह इम् ॥ ७,३.९२ ॥ ब्रुव ईट् ॥ ७,३.९३ ॥ यङो वा ॥ ७,३.९४ ॥ तुरुस्तुशम्यमः सार्वधातुके ॥ ७,३.९५ ॥ अस्तिसिचोऽपृक्ते ॥ ७,३.९६ ॥ बहुलं छन्दसि ॥ ७,३.९७ ॥ रुदश्च पञ्चभ्यः ॥ ७,३.९८ ॥ अड्गार्ग्यगालवयोः ॥ ७,३.९९ ॥ अदः सर्वेषाम् ॥ ७,३.१०० ॥ अतो दीर्घो यञि ॥ ७,३.१०१ ॥ सुपि च ॥ ७,३.१०२ ॥ बहुवचने झल्येत् ॥ ७,३.१०३ ॥ ओसि च ॥ ७,३.१०४ ॥ आङि चापः ॥ ७,३.१०५ ॥ सम्बुद्धौ च ॥ ७,३.१०६ ॥ अम्बार्थनद्योर्ह्रस्वः ॥ ७,३.१०७ ॥ ह्रस्वस्य गुणः ॥ ७,३.१०८ ॥ जसि च ॥ ७,३.१०९ ॥ ऋतो ङिसर्वनामस्थानयोः ॥ ७,३.११० ॥ घेर्ङिति ॥ ७,३.१११ ॥ आण्नद्याः ॥ ७,३.११२ ॥ याडापः ॥ ७,३.११३ ॥ सर्वनाम्नः स्याड्ढ्रस्वश्च ॥ ७,३.११४ ॥ विभाषा द्वितीयातृतीयाभ्याम् ॥ ७,३.११५ ॥ ङेरां नद्याम्नीभ्यः ॥ ७,३.११६ ॥ इदुद्भ्याम् ॥ ७,३.११७ ॥ औत् ॥ ७,३.११८ ॥ अच्च घेः ॥ ७,३.११९ ॥ आङो नाऽस्त्रियाम् ॥ ७,३.१२० ॥ णौ चङ्युपधाया ह्रस्वः ॥ ७,४.१ ॥ नाग्लोपिशास्वृदिताम् ॥ ७,४.२ ॥ भ्राजभासभाषदीपजीवमीलपीडामन्यतरस्याम् ॥ ७,४.३ ॥ लोपः पिबतेरीच्चाभ्यासस्य ॥ ७,४.४ ॥ तिष्ठतेरित् ॥ ७,४.५ ॥ जिघ्रतेर्वा ॥ ७,४.६ ॥ उरृत् ॥ ७,४.७ ॥ नित्यं छन्दसि ॥ ७,४.८ ॥ दयतेर्दिगि लिटि ॥ ७,४.९ ॥ ऋतश्च संयोगादेर्गुणः ॥ ७,४.१० ॥ ऋच्छत्य्ताम् ॥ ७,४.११ ॥ शॄदॄप्रां ह्रस्वो वा ॥ ७,४.१२ ॥ केऽणः ॥ ७,४.१३ ॥ न कपि ॥ ७,४.१४ ॥ अपोऽन्यतरस्याम् ॥ ७,४.१५ ॥ ऋदृशोऽङि गुणः ॥ ७,४.१६ ॥ अस्यतेस्थुक् ॥ ७,४.१७ ॥ श्वयतेरः ॥ ७,४.१८ ॥ पतः पुम् ॥ ७,४.१९ ॥ वच उम् ॥ ७,४.२० ॥ शीङः सार्वधातुके गुणः ॥ ७,४.२१ ॥ अयङ्यि क्ङिति ॥ ७,४.२२ ॥ उपसर्गाद्ध्रस्व ऊहतेः ॥ ७,४.२३ ॥ एतेर्लिगि ॥ ७,४.२४ ॥ अकृत्सार्वधातुकयोर्दीर्घः ॥ ७,४.२५ ॥ च्वौ च ॥ ७,४.२६ ॥ रीङृतः ॥ ७,४.२७ ॥ रिङ्शयग्लिङ्क्षु ॥ ७,४.२८ ॥ गुणोऽर्तिसंयोगाद्योः ॥ ७,४.२९ ॥ यङि च ॥ ७,४.३० ॥ ई घ्राध्मोः ॥ ७,४.३१ ॥ अस्य च्वौ ॥ ७,४.३२ ॥ क्यचि च ॥ ७,४.३३ ॥ अशनायोदन्यधानाया बुभुक्षापिपासागर्धेषु ॥ ७,४.३४ ॥ न च्छन्दस्यपुत्रस्य ॥ ७,४.३५ ॥ दुरस्युर्द्रविणस्युर्वृषण्यति रिषण्यति ॥ ७,४.३६ ॥ अश्वाघस्य आत् ॥ ७,४.३७ ॥ देवसुम्नयोर्यजुषि काठके ॥ ७,४.३८ ॥ कव्यधवरपृतनस्यर्चि लोपः ॥ ७,४.३९ ॥ द्यतिस्यतिमास्थामित्ति किति ॥ ७,४.४० ॥ शाछोरन्यतरस्याम् ॥ ७,४.४१ ॥ दधातेर्हिः ॥ ७,४.४२ ॥ जहातेश्च क्त्वि ॥ ७,४.४३ ॥ विभाषा छन्दसि ॥ ७,४.४४ ॥ सुधितवसुधितनेमधितधिष्वधिषीय च ॥ ७,४.४५ ॥ दो दद्घोः ॥ ७,४.४६ ॥ अच उपसर्गात्तः ॥ ७,४.४७ ॥ अपो भि ॥ ७,४.४८ ॥ सः स्यार्धधातुके ॥ ७,४.४९ ॥ तासस्त्योर्लोपः ॥ ७,४.५० ॥ रि च ॥ ७,४.५१ ॥ ह एति ॥ ७,४.५२ ॥ यीवर्नयोर्दीधीवेव्योः ॥ ७,४.५३ ॥ सनि मीमाघुरभलभशकपतपदामच इस् ॥ ७,४.५४ ॥ आप्ज्ञप्यृधामीत् ॥ ७,४.५५ ॥ दम्भ इच्च ॥ ७,४.५६ ॥ मुचोऽकर्मकस्य गुणो वा ॥ ७,४.५७ ॥ अत्र लोपोऽभ्यासस्य ॥ ७,४.५८ ॥ ह्रस्वः ॥ ७,४.५९ ॥ हलादिः शेषः ॥ ७,४.६० ॥ शर्पूर्वाः खयः ॥ ७,४.६१ ॥ कुहोश्चुः ॥ ७,४.६२ ॥ न कवतेर्यङि ॥ ७,४.६३ ॥ कृषेश्छन्दसि ॥ ७,४.६४ ॥ दाधर्तिदर्धर्तिदर्धर्षिबोभूतुतेतिक्तेऽलर्ष्यापनीफणत्संसनिष्यदत्करिक्रत्कनिक्रदत्भरिभ्रद्दविध्वतोदविद्युतत्तरित्रतःसरीसृपतंवरीवृजन्मर्मृज्यागनीगन्ति इति च ॥ ७,४.६५ ॥ उरत् ॥ ७,४.६६ ॥ द्युतिस्वाप्योः सम्प्रसारणम् ॥ ७,४.६७ ॥ व्यथो लिटि ॥ ७,४.६८ ॥ दीर्घ इणः किति ॥ ७,४.६९ ॥ अत आदेः ॥ ७,४.७० ॥ तस्मान्नुड्द्विहलः ॥ ७,४.७१ ॥ अश्नोतेश्च ॥ ७,४.७२ ॥ भवतेरः ॥ ७,४.७३ ॥ ससूवेति निगमे ॥ ७,४.७४ ॥ णिजां त्रयाणां गुणः श्लौ ॥ ७,४.७५ ॥ भृञामित् ॥ ७,४.७६ ॥ अर्तिपिपर्त्योश्च ॥ ७,४.७७ ॥ बहुलं छन्दसि ॥ ७,४.७८ ॥ सन्यतः ॥ ७,४.७९ ॥ ओः पुयण्ज्यपरे ॥ ७,४.८० ॥ स्त्रवतिशृणोतिद्रवतिप्रवतिप्लवतिच्यवतीनां वा ॥ ७,४.८१ ॥ गुणो यङ्लुकोः ॥ ७,४.८२ ॥ दीर्घोऽकितः ॥ ७,४.८३ ॥ नीग्वञ्चुस्रंसुध्वंसुभ्रंसुकसपतपदस्कन्दाम् ॥ ७,४.८४ ॥ नुगतोऽनुनासिकान्तस्य ॥ ७,४.८५ ॥ जपजभदहदशभञ्जपशां च ॥ ७,४.८६ ॥ चरफलोश्च ॥ ७,४.८७ ॥ उत्परस्यातः ॥ ७,४.८८ ॥ ति च ॥ ७,४.८९ ॥ रीगृदुपधस्य च ॥ ७,४.९० ॥ रुग्रिकौ च लुकि ॥ ७,४.९१ ॥ ऋतश्च ॥ ७,४.९२ ॥ सन्वल्लघुनि चङ्परेऽनग्लोपे ॥ ७,४.९३ ॥ दीर्घो लघोः ॥ ७,४.९४ ॥ अत्स्मृदॄत्वरप्रथम्रदस्तॄस्पशाम् ॥ ७,४.९५ ॥ विभाषा वेष्टिचेष्ट्योः ॥ ७,४.९६ ॥ ई च गणः ॥ ७,४.९७ ॥ सर्वस्य द्वे ॥ ८,१.१ ॥ तस्य परमाम्रेडितम् ॥ ८,१.२ ॥ अनुदात्तं च ॥ ८,१.३ ॥ नित्यवीप्सयोः ॥ ८,१.४ ॥ परेर्वर्जने ॥ ८,१.५ ॥ प्रसमुपोदः पादपूरणे ॥ ८,१.६ ॥ उपर्यध्यधसः सामीप्ये ॥ ८,१.७ ॥ वाक्यादेरामन्त्रितस्यासूयासम्मतिकोपकुत्सनभर्त्सनेषु ॥ ८,१.८ ॥ एकं बहुव्रीहिवत् ॥ ८,१.९ ॥ आबाधे च ॥ ८,१.१० ॥ कर्मधारयवदुत्तरेषु ॥ ८,१.११ ॥ प्रकारे गुणवचनस्य ॥ ८,१.१२ ॥ अकृच्छ्रे प्रियसुखयोरन्यतरस्याम् ॥ ८,१.१३ ॥ यथास्वे यथायथम् ॥ ८,१.१४ ॥ द्वन्द्वं रहस्यमर्यादावचनव्युत्क्रमणयज्ञपात्रप्रयोगाभिव्यक्तिषु ॥ ८,१.१५ ॥ पदस्य ॥ ८,१.१६ ॥ पदात् ॥ ८,१.१७ ॥ अनुदात्तं सर्वमपादादौ ॥ ८,१.१८ ॥ आमन्त्रितस्य च ॥ ८,१.१९ ॥ युष्मदस्मदोः षष्ठीचतुर्थीद्वितीयास्थयोर्वान्नावौ ॥ ८,१.२० ॥ बहुवचनस्य वस्नसौ ॥ ८,१.२१ ॥ तेमयावेकवचनस्य ॥ ८,१.२२ ॥ त्वामौ द्वितीयायाः ॥ ८,१.२३ ॥ न चवाहाहैवयुक्ते ॥ ८,१.२४ ॥ पश्यार्थैश्चानालोचने ॥ ८,१.२५ ॥ सपूर्वायाः प्रथमाया विभाषा ॥ ८,१.२६ ॥ तिङो गोत्रादीनि कुत्सनाभीक्ष्ण्ययोः ॥ ८,१.२७ ॥ तिङ्ङतिङः ॥ ८,१.२८ ॥ न लुट् ॥ ८,१.२९ ॥ निपातैर्यद्यदिहन्तकुविन्नेच्चेच्चण्कच्चिद्यत्रयुतम् ॥ ८,१.३० ॥ नह प्रत्यारम्भे ॥ ८,१.३१ ॥ सत्यं प्रश्ने ॥ ८,१.३२ ॥ अङ्गाप्रातिलोम्ये ॥ ८,१.३३ ॥ हि च ॥ ८,१.३४ ॥ छन्दस्यनेकमपि साकाङ्क्षम् ॥ ८,१.३५ ॥ यावद्यथाभ्याम् ॥ ८,१.३६ ॥ पूजायां नानन्तरम् ॥ ८,१.३७ ॥ उपसर्गव्यपेतं च ॥ ८,१.३८ ॥ तुपश्यपश्यताहैः पूजायाम् ॥ ८,१.३९ ॥ अहो च ॥ ८,१.४० ॥ शेषे विभाषा ॥ ८,१.४१ ॥ पुरा च परीप्सायाम् ॥ ८,१.४२ ॥ नन्वित्यनुज्ञैषणायाम् ॥ ८,१.४३ ॥ किं क्रियाप्रश्नेऽनुपसर्गमप्रतिषिद्धम् ॥ ८,१.४४ ॥ लोपे विभाषा ॥ ८,१.४५ ॥ एहि मन्ये प्रहासे लृट् ॥ ८,१.४६ ॥ जात्वपूर्वम् ॥ ८,१.४७ ॥ किंवृत्तं च चिदुत्तरम् ॥ ८,१.४८ ॥ आहो उताहो चानन्तरम् ॥ ८,१.४९ ॥ शेषे विभाषा ॥ ८,१.५० ॥ गत्यर्थलोटा लृण्न चेत्कारकं सर्वान्यत् ॥ ८,१.५१ ॥ लोट्च ॥ ८,१.५२ ॥ विभाषितं सोपसर्गमनुत्तमम् ॥ ८,१.५३ ॥ हन्त च ॥ ८,१.५४ ॥ आम एकान्तरमामन्त्रितमनन्तिके ॥ ८,१.५५ ॥ यद्धितुपरं छन्दसि ॥ ८,१.५६ ॥ चनचिदिवगोत्रादितद्धिताम्रेडितेष्वगतेः ॥ ८,१.५७ ॥ चादिषु च ॥ ८,१.५८ ॥ चवायोगे प्रथमा ॥ ८,१.५९ ॥ हेति क्षियायाम् ॥ ८,१.६० ॥ अह+इति विनियोगे च ॥ ८,१.६१ ॥ चाहलोप एव+इत्यवधारणम् ॥ ८,१.६२ ॥ चदिलोपे विभाषा ॥ ८,१.६३ ॥ वैवाव+इति च च्छन्दसि ॥ ८,१.६४ ॥ एकान्याभ्यां समर्थाभ्याम् ॥ ८,१.६५ ॥ यद्वृत्तान्नित्यम् ॥ ८,१.६६ ॥ पूजनात्पूजितमनुदात्तं काष्ठादिभ्यः ॥ ८,१.६७ ॥ सगतिरपि तिङ् ॥ ८,१.६८ ॥ कुत्सने च सुप्यगोत्रादौ ॥ ८,१.६९ ॥ गतिर्गतौ ॥ ८,१.७० ॥ तिङि च+उदात्तवति ॥ ८,१.७१ ॥ आमन्त्रितं पूर्वमविद्यमानवत् ॥ ८,१.७२ ॥ न आमन्त्रिते समानाधिकरणे सामान्यवचनम् ॥ ८,१.७३ ॥ विभाषितं विशेषवचने बहुवचनम् ॥ ८,१.७४ ॥ पूर्वत्रासिद्धम् ॥ ८,२.१ ॥ नलोपः सुप्स्वरसञ्ज्ञातुग्विधिषु कृति ॥ ८,२.२ ॥ न मु ने ॥ ८,२.३ ॥ उदात्तस्वरितयोर्यणः स्वरितोऽनुदात्तस्य ॥ ८,२.४ ॥ एकादेश उदातेन+उदात्तः ॥ ८,२.५ ॥ स्वरितो वाऽनुदात्ते पदादौ ॥ ८,२.६ ॥ नलोपः प्रातिपदिकान्तस्य ॥ ८,२.७ ॥ न ङिसम्बुद्ध्योः ॥ ८,२.८ ॥ मादुपधायाश्च मतोर्वोऽयवादिभ्यः ॥ ८,२.९ ॥ झयः ॥ ८,२.१० ॥ सञ्ज्ञायाम् ॥ ८,२.११ ॥ आसन्दीवदष्ठीवच्चक्रीवत्कक्षीवद्रुमण्वच्चर्मण्वती ॥ ८,२.१२ ॥ उदन्वनुदधौ च ॥ ८,२.१३ ॥ राजन्वान् सौराज्ये ॥ ८,२.१४ ॥ छन्दसि इरः ॥ ८,२.१५ ॥ अनो नुट् ॥ ८,२.१६ ॥ नाद्घस्य ॥ ८,२.१७ ॥ कृपो रो लः ॥ ८,२.१८ ॥ उपसर्गयायतौ ॥ ८,२.१९ ॥ ग्रो यङि ॥ ८,२.२० ॥ अचि विभाषा ॥ ८,२.२१ ॥ परेश्च घाङ्कयोः ॥ ८,२.२२ ॥ संयोगान्तस्य लोपः ॥ ८,२.२३ ॥ रात्सस्य ॥ ८,२.२४ ॥ धि च ॥ ८,२.२५ ॥ झलो झलि ॥ ८,२.२६ ॥ ह्रस्वादङ्गात् ॥ ८,२.२७ ॥ इट ईटि ॥ ८,२.२८ ॥ स्कोः संयोगाद्योरन्ते च ॥ ८,२.२९ ॥ चोः कुः ॥ ८,२.३० ॥ हो ढः ॥ ८,२.३१ ॥ दादेर्धातोर्घः ॥ ८,२.३२ ॥ वा द्रुहमुहष्णुहष्णिहाम् ॥ ८,२.३३ ॥ नहो धः ॥ ८,२.३४ ॥ आहस्थः ॥ ८,२.३५ ॥ व्रश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां षः ॥ ८,२.३६ ॥ एकाचो बशो भष्झषन्तस्य स्ध्वोः ॥ ८,२.३७ ॥ दधस्तथोश्च ॥ ८,२.३८ ॥ झलां जशोऽन्ते ॥ ८,२.३९ ॥ झषस्तथोर्धोऽधः ॥ ८,२.४० ॥ षढोः कः सि ॥ ८,२.४१ ॥ रदाभ्यां निष्थातो नः पूर्वस्य च दः ॥ ८,२.४२ ॥ संयोगादेरातो धातोर्यण्वतः ॥ ८,२.४३ ॥ ल्वादिभ्यः ॥ ८,२.४४ ॥ ओदितश्च ॥ ८,२.४५ ॥ क्षियो दीर्घात् ॥ ८,२.४६ ॥ श्योऽस्पर्शे ॥ ८,२.४७ ॥ अञ्चोऽनपादाने ॥ ८,२.४८ ॥ दिवोऽविजिगीषायाम् ॥ ८,२.४९ ॥ निर्वाणोऽवाते ॥ ८,२.५० ॥ शुषः कः ॥ ८,२.५१ ॥ पचो वः ॥ ८,२.५२ ॥ क्षायो मः ॥ ८,२.५३ ॥ प्रस्त्योऽन्यतरस्याम् ॥ ८,२.५४ ॥ अनुपसर्गात्फुल्लक्षीबकृशोल्लाघाः ॥ ८,२.५५ ॥ नुदविदोन्दत्राघ्राह्रीभ्योऽन्यतरस्याम् ॥ ८,२.५६ ॥ न ध्याख्यापॄमूर्च्छिमदाम् ॥ ८,२.५७ ॥ वित्तो भोगप्रत्यययोः ॥ ८,२.५८ ॥ भित्तं शकलम् ॥ ८,२.५९ ॥ ऋणमाधमर्ण्ये ॥ ८,२.६० ॥ नसत्तनिषत्तानुत्तप्रतूर्तसूर्तगूर्तानि छन्दसि ॥ ८,२.६१ ॥ क्विन्प्रत्ययस्य कुः ॥ ८,२.६२ ॥ नशेर्वा ॥ ८,२.६३ ॥ मो नो धातोः ॥ ८,२.६४ ॥ म्वोश्च ॥ ८,२.६५ ॥ ससजुषो रुः ॥ ८,२.६६ ॥ अवयाः श्वेतवाः पूरोडाश्च ॥ ८,२.६७ ॥ अहन् ॥ ८,२.६८ ॥ रोऽसुपि ॥ ८,२.६९ ॥ अम्नरूधरवरित्युभयथा छन्दसि ॥ ८,२.७० ॥ भुवश्च महाव्याहृतेः ॥ ८,२.७१ ॥ वसुस्रंसुध्वंस्वनडुहां दः ॥ ८,२.७२ ॥ तिप्यनस्तेः ॥ ८,२.७३ ॥ सिपि धातो रुर्वा ॥ ८,२.७४ ॥ दश्च ॥ ८,२.७५ ॥ र्वोरुपधाया दीर्घ इकः ॥ ८,२.७६ ॥ हलि च ॥ ८,२.७७ ॥ उपधायां च ॥ ८,२.७८ ॥ न भकुर्छुराम् ॥ ८,२.७९ ॥ अदसोऽसेर्दादु दो मः ॥ ८,२.८० ॥ एत ईद्बहुवचने ॥ ८,२.८१ ॥ वाक्यस्य टेः प्लुत उदात्तः ॥ ८,२.८२ ॥ वक्ष्यति प्रत्यभिवादेऽशूद्रे ॥ ८,२.८३ ॥ दूराद्धूते च ॥ ८,२.८४ ॥ हैहेप्रयोगे हैहयोः ॥ ८,२.८५ ॥ गुरोरनृतोऽनन्त्यस्याप्येकैकस्य प्राचाम् ॥ ८,२.८६ ॥ ओमभ्यादाने ॥ ८,२.८७ ॥ ये यज्ञकर्मणि ॥ ८,२.८८ ॥ प्रणवष्टेः ॥ ८,२.८९ ॥ याज्यान्तः ॥ ८,२.९० ॥ ब्रूहिप्रेष्यश्रौषड्वौषडावहानामादेः ॥ ८,२.९१ ॥ अग्नीत्प्रेषणे परस्य च ॥ ८,२.९२ ॥ विभाषा पृष्टप्रतिवचने हेः ॥ ८,२.९३ ॥ निगृह्यानुयोगे च ॥ ८,२.९४ ॥ आम्रेडितं भर्त्सने ॥ ८,२.९५ ॥ अङ्गयुक्तं तिङाकाङ्क्षम् ॥ ८,२.९६ ॥ विचार्यमाणानाम् ॥ ८,२.९७ ॥ पूर्वं तु भाषायाम् ॥ ८,२.९८ ॥ प्रतिश्रवणे च ॥ ८,२.९९ ॥ अनुदात्तं प्रश्नान्ताभिपूजितयोः ॥ ८,२.१०० ॥ चिदिति च+उपमार्थे प्रयुज्यमाने ॥ ८,२.१०१ ॥ उपरिस्विदासीदिति च ॥ ८,२.१०२ ॥ स्वरितमाम्रेडितेऽसूयासम्मतिकोपकुत्सनेषु ॥ ८,२.१०३ ॥ क्षियाशीःप्रैषेषु तिङाकाङ्क्षम् ॥ ८,२.१०४ ॥ अनन्त्यस्यापि प्रश्नाख्यानयोः ॥ ८,२.१०५ ॥ प्लुतावैच इदुतौ ॥ ८,२.१०६ ॥ एचोऽप्रगृह्यस्यादूराध्दूते पूर्वस्यार्धस्यादुत्तरस्य+इदुतौ ॥ ८,२.१०७ ॥ तयोर्य्वावचि संहितायाम् ॥ ८,२.१०८ ॥ मतुवसो रु सम्बुद्धौ छन्दसि ॥ ८,३.१ ॥ अत्रानुनासिकः पूर्वस्य तु वा ॥ ८,३.२ ॥ अतोऽटि नित्यम् ॥ ८,३.३ ॥ अनुनासिकात्परोऽनुस्वारः ॥ ८,३.४ ॥ वक्ष्यति समः सुति ॥ ८,३.५ ॥ पुमः खय्यम्परे ॥ ८,३.६ ॥ नश्छव्यप्रशान् ॥ ८,३.७ ॥ उभयथ र्क्षु ॥ ८,३.८ ॥ दीर्घादटि समानपादे ॥ ८,३.९ ॥ नॄन् पे ॥ ८,३.१० ॥ स्वतवान् पायौ ॥ ८,३.११ ॥ कानाम्रेडिते ॥ ८,३.१२ ॥ ढो ढे लोपः ॥ ८,३.१३ ॥ रो रि ॥ ८,३.१४ ॥ खरवसानयोर्विसर्जनीयः ॥ ८,३.१५ ॥ रोः सुपि ॥ ८,३.१६ ॥ भोभगोअघोअपूर्वस्य योऽशि ॥ ८,३.१७ ॥ व्योर्लघुप्रयत्नतरः शाकटायनस्य ॥ ८,३.१८ ॥ लोपः शाकल्यस्य ॥ ८,३.१९ ॥ ओतो गर्ग्यस्य ॥ ८,३.२० ॥ उञि च पदे ॥ ८,३.२१ ॥ हलि सर्वेषां ॥ ८,३.२२ ॥ मोऽनुस्वारः ॥ ८,३.२३ ॥ नश्चापदान्तस्य झलि ॥ ८,३.२४ ॥ मो राजि समः क्वौ ॥ ८,३.२५ ॥ हे मपरे वा ॥ ८,३.२६ ॥ नपरे नः ॥ ८,३.२७ ॥ ङ्णोः कुक्टुक्शरि ॥ ८,३.२८ ॥ डः सि ढुट् ॥ ८,३.२९ ॥ नश्च ॥ ८,३.३० ॥ शि तुक् ॥ ८,३.३१ ॥ ङमो ह्रस्वादचि ङमुण्नित्यम् ॥ ८,३.३२ ॥ मय उञो वो वा ॥ ८,३.३३ ॥ विसर्जनीयस्य सः ॥ ८,३.३४ ॥ शर्परे विसर्जनीयः ॥ ८,३.३५ ॥ वा शरि ॥ ८,३.३६ ॥ कुप्वोः ःकःपौ च (रेअद्: [जिह्वामूलीय]क[उपध्मानीय]पौ) ॥ ८,३.३७ ॥ सोऽपदादौ ॥ ८,३.३८ ॥ इणः षः ॥ ८,३.३९ ॥ नमस्पुरसोर्गत्योः ॥ ८,३.४० ॥ इदुदुपधस्य चाप्रत्ययस्य ॥ ८,३.४१ ॥ तिरसोऽन्यतरस्याम् ॥ ८,३.४२ ॥ द्विस्त्रिश्चतुरिति कृत्वोऽर्थे ॥ ८,३.४३ ॥ इसुसोः सामर्थ्ये ॥ ८,३.४४ ॥ नित्यं समासेऽनुत्तरपदस्थस्य ॥ ८,३.४५ ॥ अतः कृकमिकंसकुम्भपात्रकुशाकर्णीष्वनव्ययस्य ॥ ८,३.४६ ॥ अधःशिरसी पदे ॥ ८,३.४७ ॥ कस्कादिषु च ॥ ८,३.४८ ॥ छन्दसि वाऽप्राम्रेडितयोः ॥ ८,३.४९ ॥ कःकरत्करतिकृधिकृतेष्वनदितेः ॥ ८,३.५० ॥ पञ्चम्याः परावध्यर्थे ॥ ८,३.५१ ॥ पातौ च बहुलम् ॥ ८,३.५२ ॥ षष्ठ्याः पतिपुत्रपृष्ठपारपदपयस्पोषेषु ॥ ८,३.५३ ॥ इडाया वा ॥ ८,३.५४ ॥ अपदान्तस्य मूर्धन्यः ॥ ८,३.५५ ॥ सहेः साडः सः ॥ ८,३.५६ ॥ इण्कोः ॥ ८,३.५७ ॥ नम्विसर्जनीयशर्व्यवायेऽपि ॥ ८,३.५८ ॥ आदेशप्रत्यययोः ॥ ८,३.५९ ॥ शासिवसिघसीनां च ॥ ८,३.६० ॥ स्तौतिण्योरेव षण्यभ्यासात् ॥ ८,३.६१ ॥ सः स्विदिस्वदिसहीनां च ॥ ८,३.६२ ॥ प्राक्सितादड्व्यवायेऽपि ॥ ८,३.६३ ॥ स्वादिष्वभ्यासेन चाभ्यासस्य ॥ ८,३.६४ ॥ उपसर्गात्सुनोतिसुवतिस्यतिस्तौतिस्तोभतिस्थासेनयसेधसिचसञ्जस्वञ्जाम् ॥ ८,३.६५ ॥ सदिरप्रतेः ॥ ८,३.६६ ॥ स्तन्भेः ॥ ८,३.६७ ॥ अवाच्च आलंवनाविदूर्ययोः ॥ ८,३.६८ ॥ वेश्च स्वनो भोजने ॥ ८,३.६९ ॥ परिनिविभ्यः सेवसितसयसिवुसहसुट्स्तुस्वञ्जाम् ॥ ८,३.७० ॥ सिवादीनां वा अड्व्यवायेऽपि ॥ ८,३.७१ ॥ अनुविपर्यभिनिभ्यः स्यन्दतेरप्राणिषु ॥ ८,३.७२ ॥ वेः स्कन्देरनिष्ठायाम् ॥ ८,३.७३ ॥ परेश्च ॥ ८,३.७४ ॥ परिस्कन्दः प्राच्यभरतेषु ॥ ८,३.७५ ॥ स्फुरतिस्फुलत्योर्निर्निविभ्यः ॥ ८,३.७६ ॥ वेः स्कभ्नातेर्नित्यम् ॥ ८,३.७७ ॥ इणः षीध्वंलुङ्लिटां धोऽङ्गात् ॥ ८,३.७८ ॥ विभाषा+इटः ॥ ८,३.७९ ॥ समासेऽङ्गुलेः सङ्गः ॥ ८,३.८० ॥ भीरोः स्थानम् ॥ ८,३.८१ ॥ अग्नेः स्तुत्स्तोमसोमाः ॥ ८,३.८२ ॥ ज्योतिरायुषः स्तोमः ॥ ८,३.८३ ॥ मातृपितृभ्यां स्वसा ॥ ८,३.८४ ॥ मातुःपितुर्भ्यामन्यतरस्याम् ॥ ८,३.८५ ॥ अभिनिसः स्तनः शब्दसञ्ज्ञायाम् ॥ ८,३.८६ ॥ उपसर्गप्रादुर्भ्यामस्तिर्यच्परः ॥ ८,३.८७ ॥ सुविनिर्दुर्भ्यः सुपिसूतिसमाः ॥ ८,३.८८ ॥ निनदीभ्यां स्नातेः कौशले ॥ ८,३.८९ ॥ सूत्रं प्रतिष्णातम् ॥ ८,३.९० ॥ कपिष्ठलो गोत्रे ॥ ८,३.९१ ॥ प्रष्ठोऽग्रगामिनि ॥ ८,३.९२ ॥ वृक्षासनयोर्विष्टरः ॥ ८,३.९३ ॥ छन्दोनाम्नि च ॥ ८,३.९४ ॥ गवियुधिभ्यां स्थिरः ॥ ८,३.९५ ॥ विकुशमिपरिभ्यः स्थलम् ॥ ८,३.९६ ॥ अम्बाम्बगोभूमिसव्यापद्वित्रिकुशेकुशङ्क्वङ्गुमञ्जिपुञ्जिपरमेबर्हिर्दिव्यग्निभ्यः स्थः ॥ ८,३.९७ ॥ सुषामादिषु च ॥ ८,३.९८ ॥ ह्रस्वात्तादौ तद्धिते ॥ ८,३.९९ ॥ निसस्तपतावनसेवने ॥ ८,३.१०० ॥ युष्मत्तत्ततक्षुःष्वन्तःपादम् ॥ ८,३.१०१ ॥ युजुष्येकेषाम् ॥ ८,३.१०२ ॥ स्तुतस्तोमयोश्छन्दसि ॥ ८,३.१०३ ॥ पूर्वपदात् ॥ ८,३.१०४ ॥ सुञः ॥ ८,३.१०५ ॥ सनोतेरनः ॥ ८,३.१०६ ॥ सहेः पृतनर्ताभ्यां च ॥ ८,३.१०७ ॥ न रपरसृपिसृजिस्पृशिस्पृहिसवनादीनाम् ॥ ८,३.१०८ ॥ सात्पदाद्योः ॥ ८,३.१०९ ॥ सिचो यङि ॥ ८,३.११० ॥ सेधतेर्गतौ ॥ ८,३.१११ ॥ प्रतिस्तब्धनिस्तब्धौ च ॥ ८,३.११२ ॥ सोढः ॥ ८,३.११३ ॥ स्तम्भुसिवुसहां चङि ॥ ८,३.११४ ॥ सनोतेः स्यसनोः ॥ ८,३.११५ ॥ सदिष्वञ्जोः परस्य लिटि ॥ ८,३.११६ ॥ निव्यभिभ्योऽड्व्यवाये वा छन्दसि ॥ ८,३.११७ ॥ रषाभ्यां नो णः समानपदे ॥ ८,४.१ ॥ अट्कुप्वाङ्नुम्व्यवायेऽपि ॥ ८,४.२ ॥ पूर्वपदात्सञ्ज्ञायामगः ॥ ८,४.३ ॥ वनं पुरगामिश्रकासिध्रकाशारिकाकोटराग्रेभ्यः ॥ ८,४.४ ॥ प्रनिरन्तःशरेक्षुप्लक्षाम्रकार्ष्यखदिरपीयूक्षाभ्योऽसञ्ज्ञायामपि ॥ ८,४.५ ॥ विभाषौषधिवनस्पतिभ्यः ॥ ८,४.६ ॥ अह्नोऽदन्तात् ॥ ८,४.७ ॥ वाहनमाहितात् ॥ ८,४.८ ॥ पानं देशे ॥ ८,४.९ ॥ वा भावकरणयोः ॥ ८,४.१० ॥ प्रातिपदिकान्तनुम्विभक्तिषु च ॥ ८,४.११ ॥ एकाजुत्तरपदे णः ॥ ८,४.१२ ॥ कुमति च ॥ ८,४.१३ ॥ उपसर्गादसमासेऽपि णोपदेशस्य ॥ ८,४.१४ ॥ हिनुमीना ॥ ८,४.१५ ॥ आनि लोट् ॥ ८,४.१६ ॥ नेर्गदनदपतपदघुमास्यतिहन्तियातिवातिद्रातिप्सातिवपतिवहतिशाम्यतिचिनोतिदेग्धिषु च ॥ ८,४.१७ ॥ शेषे विभाषाऽकखादावषान्त उपदेशे ॥ ८,४.१८ ॥ अनितेः ॥ ८,४.१९ ॥ अन्तः ॥ ८,४.२० ॥ उभौ साभ्यासस्य ॥ ८,४.२१ ॥ हन्तेरत्पूर्वस्य ॥ ८,४.२२ ॥ वमोर्वा ॥ ८,४.२३ ॥ अन्तरदेशे ॥ ८,४.२४ ॥ अयनं च ॥ ८,४.२५ ॥ छन्दस्यृदवग्रहात् ॥ ८,४.२६ ॥ नश्च धातुस्थोरुषुभ्यः ॥ ८,४.२७ ॥ उपसर्गाद्बहुलम् ॥ ८,४.२८ ॥ कृत्यचः ॥ ८,४.२९ ॥ णेर्विभाषा ॥ ८,४.३० ॥ हलश्चेजुपधात् ॥ ८,४.३१ ॥ इजादेः सनुमः ॥ ८,४.३२ ॥ वा निंसनिक्षनिन्दाम् ॥ ८,४.३३ ॥ न भाभूपूकमिगमिप्यायीवेपाम् ॥ ८,४.३४ ॥ षात्पदान्तात् ॥ ८,४.३५ ॥ नशेः षान्तस्य ॥ ८,४.३६ ॥ पदान्तस्य ॥ ८,४.३७ ॥ पदव्यवायेऽपि ॥ ८,४.३८ ॥ क्षुभ्नादिषु च ॥ ८,४.३९ ॥ स्तोः श्चुना श्चुः ॥ ८,४.४० ॥ ष्टुना षुः ॥ ८,४.४१ ॥ न पदान्ताट्टोरनाम् ॥ ८,४.४२ ॥ तोः षि ॥ ८,४.४३ ॥ शात् ॥ ८,४.४४ ॥ यरोऽनुनासिकेऽनुनासिको वा ॥ ८,४.४५ ॥ अचो रहाभ्यां द्वे ॥ ८,४.४६ ॥ अनचि च ॥ ८,४.४७ ॥ न आदिन्याक्रोशे पुत्रस्य ॥ ८,४.४८ ॥ शरोऽचि ॥ ८,४.४९ ॥ त्रिप्रभृतिषु शाकटायनस्य ॥ ८,४.५० ॥ सर्वत्र शाकल्यस्य ॥ ८,४.५१ ॥ दीर्घादाचार्याणाम् ॥ ८,४.५२ ॥ झलं जश्झशि ॥ ८,४.५३ ॥ अभ्यासे चर्च ॥ ८,४.५४ ॥ खरि च ॥ ८,४.५५ ॥ वा+अवसाने ॥ ८,४.५६ ॥ अणोऽप्रगृह्यस्यानुनासिकः ॥ ८,४.५७ ॥ अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः ॥ ८,४.५८ ॥ वा पदान्तस्य ॥ ८,४.५९ ॥ तोर्लि ॥ ८,४.६० ॥ उदः स्थास्तम्भोः पूर्वस्य ॥ ८,४.६१ ॥ झयो होऽन्यतरस्याम् ॥ ८,४.६२ ॥ शश्छोऽटि ॥ ८,४.६३ ॥ हलो यमां यमि लोपः ॥ ८,४.६४ ॥ झरो झरि सवर्णे ॥ ८,४.६५ ॥ उदत्तादनुदात्तस्य स्वरितः ॥ ८,४.६६ ॥ न+उदात्तस्वरितोदयमगार्घ्यकाश्यपगालवानाम् ॥ ८,४.६७ ॥ आ इति ॥ ८,४.६८ ॥